fundamental rights in hindi pdf free download -1
Hi friends आज मैं आप सब के लिए fundamental rights के महत्वपूर्ण notes लाया हु जो आप सब को आने वाले ssc rly up gov. and other oneday परीक्षाओ के लिए काफी useful होगा। तो चलिए शुरू करते है-
मूल अधिकार ( Fundamental Rights )
- मूल अधिकार का सर्वप्रथम विकास ब्रिटेन में हुआ था।
- ब्रिटिश नागरिको को सर्वप्रथम लिखित रूप में मूल अधिकार प्रदान करने वाले दस्तावेज का नाम अधिकार पत्र (Magna Carta ) है।
- ब्रिटिश सम्राट जॉन ने 1215 ई. में मैग्ना कार्टा पर हस्ताक्षर किया था।
- फ्रांस ने 1789 ई. में 'मानव एवं नागरिकों के अधिकार घोषणा पत्र ' द्वारा , अपने नागरिकों को मूल अधिकार प्रदान किया।
- फ्रांस के शासक लुई सोलहवें को मूल अधिकारों के उलंघन के कारण फांसी पर चढ़ा दिया गया था।
- अमेरिकी संविधान में संविधान सशोधनों द्वारा 1791 ई. में मूल अधिकारों को शामिल किया गया था।
- सर्वप्रथम अमेरिका के संविधान में मूल अधिकार का प्रावधान किया गया था।
- अमेरिका के सर्वोच्च न्यायलय ने राज्य शक्ति ( Polic Power ) का सिद्धांत को प्रतिपादित कर राज्य को मूल अधिकारों पर निर्वंधन लगाने की शक्ति प्रदान किया।
- भारत में सर्वप्रथम मूल अधिकार की माँग संविधान विधेयक 1895 ई. के माध्यम से की गई।
- 1925 ई. में कामन वेल्थ ऑफ़ इंडिया बिल के माध्यम से श्रीमती एनी बेसेन्ट ने मूल अधिकार की मांग किया।
- 1928 ई. में नेहरू रिपोर्ट के माध्यम से मोती लाल नेहरू ने मूल अधिकार की मांग रखी।
- संविधान सभा द्वारा सरदार वल्लभ भाई पटेल की अध्यक्षता में मूल अधिकार पर परामर्श हेतु एक समिति का गठन किया गया था।
- अल्पसंख्यक एवं मूल अधिकार पर परामर्श हेतु जे. बी. कृपलानी की अध्यक्षता में उपसमिति गठित की गयी थी।
- भारतीय संविधान में अनुच्छेद 12 से 35 के अंतर्गत नागरिकों को मूल अधिकार प्रदान किया है।
- भारतीय संविधान के भाग-3 द्वारा प्रदत्त मूल अधिकार अमेरिका के संविधान से लिया गया है।
- सामान्यतः मूल अधिकार राज्य कृत्य के विरुद्ध एक गारंटी है किन्तु अनुच्छेद- 15 (2 ), 17 , 23 एवं 24 द्वारा प्रदत्त मूल अधिकार व्यक्तियों के विरुद्ध भी प्रदान किये गए है।
- 44वे संविधान संशोधन द्वारा यह उपबंध किया गया कि आपात के दौरान भी अनुच्छेद 20 तथा 21 निलंबित नहीं किये जा सकते है।
- युद्ध एवं बाह्य आक्रमण के आधार पर घोषित आपात के दौरान अनुच्छेद-19 द्वारा प्रदत्त मूल अधिकार स्वतः निलंबित हो जाता है।
- संविधान का अनुच्छेद-13 न्यायलय को यह शक्ति प्रदान करता है कि वह विधानमंडल द्वारा निर्मित मूल अधिकारों का उलंघन करने वाली विधियों का न्यायिक पुनर्विलोकन कर सकते है।
- न्यायायिक पुनर्विलोकन का अधिकार उच्चतम न्यायालय ( अनुच्छेद-32 तथा उच्च न्यायालयों (अनुच्छेद-226 ) को प्राप्त है।
- भारत में न्यायिक पुनर्विलोकन का सिद्धांत USA के संविधान से लिया गया है।
- संविधान का अनुच्छेद-13 उच्चतम न्यायलय को मूल अधिकारों का सजग प्रहरी बनाता है।
- अनुच्छेद-13 (2 ) के तहत यह कहा गया है कि राज्य कोई ऐसी विधि नहीं बना सकता है जो भाग-3 में उपबंधित मूल अधिकार को छिनता हो या न्यून करता हो।
- अधित्याग का सिद्धांत (Doctrine of Waiver ) अनुच्छेद-13 से सम्बंधित है।
- भारत के मूल संविधान में कुल सात मौलिक अधिकार का उपबंध किया गया था।
- संपत्ति के मूल अधिकार को 44 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1978 द्वारा मूल अधिकार से अलग कर दिया गया।
- संपत्ति का मूल अधिकार अनु.-19(1 )(च ) तथा अनु.-31 के तहत उपबंधित किया गया था।
- संपत्ति का अधिकार अब अनु.-300(क ) के तहत एक विधिक अधिकार है।
- वर्तमान भारतीय संविधान के अंतर्गत नागरिकों को कुल 6 मूल अधिकार प्रदान किया गया है।
- 'समता के अधिकार का वर्णन संविधान के अनु.-14 से 18 तक किया गया है।
- विधि के समक्ष समता और विधियों का समान संरक्षण का मूल अधिकार अनु.-14 के तहत प्रदान किया गया है।
- अनु.-15 यह उपबंधित करता है कि राज्य, धर्म, मूल वंश, जाति , लिंग या जन्म स्थान के आधार पर विभेद नहीं करेगा।
- अनुच्छेद-16 के तहत अवसर की समानता प्रत्याभूत की गयी है।
- अनु.-18 के द्वारा उपाधियों का अंत कर दिया गया।
- अनु.-14 में वाक्यांश 'विधियों का समान संरक्षण' अमेरिका के संविधान से लिया गया है।
- 'विधि के समक्ष समता 'वाक्यांश ब्रिटिश संविधान से लिया गया है।
- भारतीय संविधान के अनु.-14 में 'विधि का शासन ' निहित है।
- अनु.-14 द्वारा प्रदत्त समता के मूल अधिकार का दावा एक कंपनी भी कर सकती है।
- चिरंजीत लाल बनाम भारत संघ वाद में यह धारित किया गया कि एक व्यक्ति स्वयं एक वर्ग हो सकता है।
- अनु.-15 द्वारा प्रदत्त मूल अधिकार केवल नागरिकों को प्राप्त है।
- समाज के कमजोर वर्गों के संरक्षण के लिए प्रावधान अनु.-15 में दिया गया है।
- अनु.-15 (3 ) के तहत राज्य को यह शक्ति प्रदान की गयी है की वह स्त्रियों और बालकों के सम्बन्ध में विशेष प्रावधान कर सकता है।
- अनु.-15 (4 ) के तहत राज्य को सामाजिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों के लिए विशेष प्रावधान करने की शक्ति दी गयी है।
- 1951 में, प्रथम संविधान संशोधन द्वारा अनुच्छेद-15 (4 ) संविधान में जोड़ा गया।
- 93 वें संविधान संशोधन अधिनियम 2005 द्वारा अनु.-15 (5 ) को जोड़ा गया।
- अनु.-15 (5 ) के अनुसार राज्य निजी शिक्षण संस्थाओं में छात्रों के प्रवेश के लिए स्थानों के आरक्षण का उपबंध कर सकती है।
- अनु.-16 में लोक नियोजन में अवसर की समानता का उपबंध किया गया है।
- अनु.-16 (3 ) के तहत किसी राज्य की सरकारी सेवाओं हेतु उस राज्य में निवास की योग्यता विहित करने वाली विधि बनाई जा सकती है
इस पोस्ट या साइट सम्बन्धित किसी भी प्रकार की सुझाव या शिकायत के लिए हमारे कमेंट बॉक्स में कमेंट जरूर करें धन्यवाद
Post a Comment