Hindi me NCERT History Class-6 (Chapter-2) Notes in Hindi-2

                                                                       

Chapter-2

आरंभिक मानव की खोज में 



 हम उन लोगो के बारे जानते है,जो इस महाद्वीप में बीस लाख पहले रहा करते थे। आज हम उन्हें आखेटक खाद्य संग्राहक के नाम से जानते है। 

आखेटक खाद्य-संग्राहक लोगों के घूमते रहने के कारण 

पहला कारण -

पहला कारण था कि अगर वे एक ही जगह पर ज्यादा दिनों तक रहते तो आस-पास के पौधों ,फलों और जानवरों को खाकर समाप्त कर देते थे। 


दूसरा कारण 

दूसरा कारण यह था कि जानववर अपने शिकार के लिए या फिर हिरण और मवेशी अपना चारा ढूंढने के लिए एक जगह से दूसरी जगह जाया करते थे। इसलिए ,इन जानवरों का शिकार करने वाले लोग भी इनके पीछे-पीछे जाते थे। 

तीसरा कारण 

पेड़ों और पौधों में फल-फूल अलग-अलग मौसम में आते है,इसीलिए लोग उनकी तलाश में उपयुक्त मौसम के अनुसार अन्य इलाके में घूमते थे। 

चौथा कारण 

पानी के बिना किसी भी प्राणी या पेड़-पौधे का जीवित रहना संभव नहीं होता और पानी झीलों,झरनों तथा नदियों में ही मिलता है। इसीलिए वे पानी की तलाश में इधर-उधर घूमते थे। 
  • चूँकि पत्थर के उपकरण बहुत महत्वपूर्ण थे , इसलिए लोग ऐसी जगह ढूंढते रहते थे ,जहाँ अच्छे पत्थर मिल सके। जहाँ लोग पत्थरों से औजार बनाते थे,उन स्थलों को उद्योग-स्थल कहते है 

नोट  :   पुजस्थल 

  • पुरास्थल उस स्थान को कहते है जहाँ औजार,वर्तन और इमारतों जैसी वस्तुओं के अवशेष मिलते है। 
  • ऐसी वस्तुओं का निर्माण लोगों ने अपने काम के लिए किया था और बाद में वे उन्हें वहीं छोड़ गए। 
  • ये जमीन के ऊपर , अंदर कभी-कभी समुद्र और नदी तल में भी पाए जाते है। 

पाषाण उपकरणों की निर्माण की तकनीकें 

पत्थरो से पत्थर को टकराना  : आघात करने वाले पत्थर से दूसरे पत्थर पर तब तक शल्क निकाले जाते हैं जब तक वांछित आकार वाला उपकरण न बन जाए। 

दबाव शल्क तकनीक :  इसमें क्रोड को एक स्थिर सतह पर टिकाया जाता है और इस क्रोड पर हड्डी या पत्थर रखकर उस पर हथौड़ी नुमा पत्थर से शल्क निकले जाते है।  जिससे वांछित उपकरण बनाए जाते है। 




आग की खोज :

  • आग की खोज सर्वप्रथम कुरनूल गुफा ( आंध्रा प्रदेश ) में। 
  • इस काल में मछली भी महत्वपूर्ण भोजन का स्त्रोत बन गयी।


नाम एवं तिथियाँ :

आरंभिक काल :इसे पुरापाषाण काल कहते है। 
  • यह नाम पुरास्थलों से प्राप्त पत्थर के औजारों के महत्त्व को बताता है। 
  • पुरापाषाण काल बीस लाख साल पहले से बारह हजार साल पहले के दौरान माना जाता है। 
  • इस काल को भी तीन भागों में बाटा गया है। 
  1. आरंभिक काल : बीस लाख साल से बारह हजार साल तक। मानव इतिहास की लगभग 99 % घटनाए इसी के दौरान हुई। 
  2. मध्य पाषाण काल : जिस काल में हमें पर्यावरणीय बदलाव मिलते है, उसे 'मेसोलिथ ' यानी मध्यपाषाण युग कहते है। इसका समय लगभग बारह हजार साल पहले से लेकर दस हजार साल तक माना गया है। इस काल के पाषाण औजार आमतौर पर बहुत छोटे होते थे। इन्हे ' मैक्रोलिथ ' यानी लघु पाषाण कहा जाता है। प्रायः इन औजारों में हड्डियों या लकड़ियों के मुट्ठे लगे हसिया और आरी जैसे औजार मिलते थे। साथ-साथ पुरापाषाण युग वाले औजार भी इस दौरान बनाए जाते रहे। 
  3. नवपाषाण युग /उत्तर पाषाण युग : इसकी शुरुआत लगभग दस हजार साल पहले से होती है। इसे नवपाषाण युग कहा जाता है। 

शैलचित्र कला : 

मध्य प्रदेश और दक्षिणी उत्तर प्रदेश की गुफाओं से शैल चित्र मिले है। इनमें जंगली जानवरों का बड़ी कुशलता से सजीव चित्रण किया गया है। 

भारत में शुतुरमुर्ग :


भारत में पुरापाषाण युग के दौरान शुतुरमुर्ग होते थे। महाराष्ट्र के पटने पुरास्थल से शुतुरमुर्ग के अंडो के अवशेष मिले।  इनके कुछ छिलकों पर चित्रांकन भी मिलता है। इन अण्डों से मनके भी बनाए जाते थे। 


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