Administration of Union Territories,Scheduled andTribal Areas in hindi
संघ राज्य क्षेत्र, अनुसूचित तथा जनजातीय क्षेत्रों का प्रशासन/Administration of Union Territories,Scheduled andTribal Areas
संघ राज्य क्षेत्रों का प्रशासन:-
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अनुच्छेद 239(1) के अनुसार
प्रत्येक संघ राज्य क्षेत्र का प्रशासन राष्ट्रपति द्वारा चलाया जाएगा। इनका प्रशासन
राष्ट्रपति अपने द्वारा नियुक्त प्रशासक के माध्यम से करेगा।
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अनुच्छेद 239 (2) के अनुसार
राष्ट्रपति किसी राज्य के राज्यपाल को निकटवर्ती संघ राज्य क्षेत्र का प्रशासक नियुक्त
कर सकेगा। इस प्रकार प्रशासक के रूप में नियुक्त होने वाला राज्यपाल,
प्रशासक के रूप में अपने कार्यों के संबंध में अपनी मंत्रिपरिषद् से
स्वतन्त्र होगा।
संघ राज्य क्षेत्र के लिए विधानसभा
और मंत्रिपरिषद्:-
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संविधान में संघ राज्य क्षेत्रों
के लिए विधानसभा तथा मंत्रिपरिषद् की व्यवस्था नहीं की गई थी।
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1962 में 14वें संविधान संशोधन
द्वारा संसद को यह अधिकार दिया गया कि वह संघ राज्य क्षेत्रों के लिए विधि द्वारा अवधारित
विधानसभा एवं मंत्रिपरिषद् का गठन कर सकती है।
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1963 में पांडिचेरी के लिए
30 सदस्यीय विधानसभा की स्थापना की।
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1991 में संविधान के 69वें
संशोधन द्वारा दिल्ली के लिए 70 सदस्यीय विधानसभा की स्थापना की गई।
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दिल्ली और पाण्डिचेरी की अपनी
अपनी विधान सभाएँ और मंत्रिपरिषद् हैं।
संघ राज्य क्षेत्रों के लिए विनियम
बनाने की राष्ट्रपति की शक्ति
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अनुच्छेद 240 में इस संबंध
में निम्न व्यवस्थाएं हैं:
a. अण्डमान
और निकोबार द्वीप समूह, सीप दादरा और नगर हवेली,
दमन और दीव तथा पांडिचेरी संघ राज्य क्षेत्रों की शान्ति, प्रगति और सुशासन के लिए विनियम बनाने की राष्ट्रपति को अनन्य अधिकारिता होगी।
b. राष्ट्रपति
द्वारा इन राज्य क्षेत्रों के सम्बन्ध में बनाया गया कोई विनियम संसद के उस अधिनियम
को निरसित या संशोधित कर सकता है जो संघ राज्य क्षेत्र में तत्समय लागू किया गया है।
ऐसे किसी राज्य क्षेत्र में विधानसभा कार्य करती है तब राष्ट्रपति को विनियम बनाने
की शक्ति निलंबित रहेगी। विधानमंडल के विघटित या निलंबित किए जाने पर राष्ट्रपति की
अधिकारिता पुनः जीवित हो जाएगी।
संघ राज्य क्षेत्रों के उच्च
न्यायालय
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अनुच्छेद 241 में यह व्यवस्था
की गई है कि संसद विधि द्वारा किसी संघ राज्य क्षेत्र के लिए उच्च न्यायायल गठित कर
सकेगी या ऐसे किसी राज्य क्षेत्र के लिए किसी अन्य निकटवर्ती उच्च न्यायालय को इस संविधान
के सभी या किन्हीं प्रयोजनों के लिए उच्च न्यायालय घोषित कर सकेगी।
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केवल संघ शासित क्षेत्र दिल्ली
का ही अपना उच्च न्यायालय है, जो वर्ष 1966 में स्थापित
हुआ था। शेष अन्य संप राज्य क्षेत्र अपने निकटवर्ती उच्च न्यायालयों से जुड़े हुए हैं
अर्थात् पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायायल चंडीगढ़ उच्च न्यायालय के रूप में कार्य कर
रहा है।
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लक्षद्वीप केरल उच्च न्यायालय
की अधिकारिता में आता है।
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अण्डमान और निकोबार द्वीप
कोलकाता उच्च न्यायालय की अधिकारिता में आता है।
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चेन्नई उच्च न्यायालय की अधिकारिता
में पांडिचेरी है दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव
मुम्बई उच्च न्यायालय की अधिकारिता में आते हैं।
अर्जित राज्य क्षेत्र:-
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अनुच्छेद 366 (30) में पहली
अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत के राज्य क्षेत्र में कोई ऐसा अन्य राज्य क्षेत्र भी
शामिल होगा जो भारत के राज्य क्षेत्र में समाविष्ट है अर्थात् जिसे भारत द्वारा अर्जित
किया गया है, किंतु जो पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट
नहीं है।
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इस प्रकार अर्जित किये गए
राज्य क्षेत्र का अनुच्छेद 246(4) के तहत् भारत के राष्ट्रपति के माध्यम से संसद के
विधान के अधीन प्रशासन चलाया जाएगा।
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1962 तक पाण्डिचेरी,
करेकल, वनम और महे का प्रशासन अर्जित राज्य क्षेत्र
के रूप में चलाया जाता था, किन्तु 1962 में इन्हें सम्मिलित रूप
से "पांडिचेरी संप राज्य क्षेत्र" का दर्जा दे दिया गया।
अनुसूचित तथा जनजाति क्षेत्र:-
अनुसूचित क्षेत्रों का प्रशासन:-
a. इन
क्षेत्रों के संबंध में संविधान को पांचवीं अनुसूची में उपबन्धित प्रशासन के प्रमुख
लक्षण इस प्रकार हैं:-
b. भारत
सरकार किसी भी राज्य सरकार को उक्त क्षेत्रों के प्रशासन के बारे में उचित निर्देश
दे सकेगी।
c. इन
क्षेत्रों से सम्बन्धित राज्य का राज्यपाल प्रति वर्ष या जब भी राष्ट्रपति इस प्रकार
की अपेक्षा करे, उस राज्य के अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन
के संबंध में राष्ट्रपति को अपना प्रतिवेदन देगा
d. राष्ट्रपति
की अनुमति से राज्यपाल को यह अधिकारिता होगी कि वह यह निर्देश दे सके कि संसद या उस
राज्य के विधानमण्डल का कोई विशिष्ट अधिनियम उस राज्य के अनुसूचित क्षेत्र में लागू
नहीं होगा या कुछ अपवादों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए लागू होगा।
e. पांचवीं
अनुसूची में असोम, मेघालय, त्रिपुरा तथा मिजोरम (आन्ध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड, गुजरात, मध्य प्रदेश,
छत्तीसगढ़ महाराष्ट्र, उड़ीसा तथा राजस्थान) के
कुछ क्षेत्रों को अनुसूचित क्षेत्र घोषित किया गया है।
जनजाति क्षेत्रों का प्रशासन
इन क्षेत्रों के संबंध में विशेष प्रावधान संविधान
की छठी अनुसूची में दिए गए हैं:
a. ये
जनजाति क्षेत्र स्वशासी जिले के रूप में प्रशासित किए जाएंगे।
b. इन
क्षेत्रों में जिला परिषद् तथा प्रादेशिक परिषदों का गठन किया जाएगा।
c. यदि
किसी स्वशासी जिले में भिन्न-भिन्न अनुसूचित जनजातियां हैं,
तो राज्यपाल, लोक अधिसूचना द्वारा ऐसे क्षेत्र
या क्षेत्रों को, जिनमें ये बसे हुए हैं, स्वशासी प्रदेशों में विभाजित कर सकेगा।
जनजाति सलाहकार परिषद्:-
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ऐसे प्रत्येक राज्य में,
जिसमें अनुसूचित क्षेत्र हैं और यदि राष्ट्रपति ऐसा निर्देश दे तो किसी
राज्य में भी जिसमें अनुसूचित जनजातियां हैं, किंतु अनुसूचित
क्षेत्र नहीं है, एक जनजाति सलाहकार परिषद् स्थापित की जाएगी।
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इस परिषद् में 20 से अधिक
सदस्य होंगे। इसमें से यथासम्भव तीन-चौथाई सदस्य उस राज्य की विधानसभा में अनुसूचित
जनजातियों के प्रतिनिधि होंगे।
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राज्यपाल परिषद् की संरचना
और कार्यप्रणाली से संबंधित नियम बना सकेगा।
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यदि उस राज्य की विधान सभा
में अनुसूचित जनजातियों के प्रतिनिधियों की संख्या जनजाति सलाहकार परिषद् में ऐसे प्रतिनिधियों
से भरे जाने वाले स्थानों की संख्या से कम है तो शेष स्थान उन जनजातियों के अन्य सदस्यों
से भरे जाएंगे।
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जनजाति सलाहकार परिषद् का
यह कर्त्तव्य होगा कि वह उस राज्य की अनुसूचित जनजातियों के कल्याण और उन्नति से संबंधित
ऐसे विषयों पर सलाह दे जो उसको राज्यपाल द्वारा निर्दिष्ट किए जाएं।
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अनुसूचित क्षेत्रों और जनजातियों
के प्रशासन से संबंधित संविधान के इन उपबंधों को संसद द्वारा सामान्य विधान से परिवर्तित
किया जा सकता है। इसे संविधान का संशोधन नहीं माना जाएगा।
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अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन
और जनजातियों के कल्याण से सम्बन्धित प्रतिवेदन देने के लिए संविधान में एक आयोग के
गठन की व्यवस्था की गई है। इस व्यवस्था के अनुसार 1960 में श्री ढेबर की अध्यक्षता
में एक आयोग की स्थापना की गई. जिसने 1961 में अपना प्रतिवेदन दिया।
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