Preamble in hindi notes/प्रस्तावना

 


Preamble/प्रस्तावना-


परिचय

·        संविधान नियमों का समूह होता है, जिनके आधार पर सरकार, जनता पर शासन करती है।

·        संविधान में जनता सरकार संबंध तथा सरकार के विभिन्न अंगों में शक्तियों के विभाजन को स्पष्ट करता है।

·        भारतीय संविधान में 395 अनुच्छेद 22 भाग और 12 अनुसूचियां है।

·        भारतीय संविधान ब्रिटिश संसदीय प्रणाली पर आधारित है, फिर भी, ब्रिटिश संसदीय प्रणाली से भिन्न है क्योंकि वहां संसद को सर्वोच्च माना जाता है, जबकि भारत में संसद की अपेक्षा संविधान को सर्वोच्चता का दर्जा प्राप्त है।

·        भारतीय न्यायालयों को यह अधिकार प्राप्त है कि वे संसद द्वारा पारित विधेयकों (कानूनों) की विधिमान्यता अथवा संवैधानिकता की जांच कर सकते हैं।

·        संविधान की यह सर्वोच्चता संविधान के विभिन्न भागों, उपभागों, खंडों, उपखंडों आदि में वर्णित है।

·        वर्तमान संविधान के अन्तर्गत निम्न भाग सम्मिलित हैं-

a.     प्रस्तावना

b.     संविधान भाग 1 से 22-संविधान के इन भागों में अनुच्छेद 1 से अनुच्छेद 395 तक वर्णित हैं

c.      अनुसूची 1 से 12 तक

भारतीय संविधान की प्रस्तावना:-

·        "हम भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतन्त्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतन्त्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर, 1949 ई. (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी संवत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।"

·        1976 के 42वें संविधान संशोधन के द्वारा प्रस्तावना में समाजवादी. पंथनिरपेक्ष तथा अखंडता शब्द जोड़े गए हैं।

 प्रस्तावना का उद्देश्य:-

·        प्रस्तावना यह स्पष्ट करती है कि हमारा संविधान लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक-आर्थिक न्याय की अभिन्नता पर आधारित है।

·        प्रस्तावना का महत्त्व है कि जब कोई अनुच्छेद अस्पष्ट हो और उसका ठीक-ठीक अर्थ जानने में कठिनाई हो तो स्पष्टीकरण के लिए प्रस्तावना की भाषा का सहारा लिया जा सकता है।

·        प्रस्तावना में संविधान का सार निहित है।

·        संविधान की शब्दावली यदि अस्पष्ट है तो संविधान निर्माताओं के आशय को समझने के लिए प्रस्तावना का सहारा लिया जा सकता है।

·        प्रस्तावना संविधान की आत्मा है।

·        सभी संवैधानिक और संसदीय अधिनियमों की इसके प्रकाश में व्याख्या की जा सकती है।

·        उच्चतम न्यायालय ने 1969 में कहा था, "यदि विधानमंडल द्वारा प्रयुक्त किसी शब्दावली पर कोई शंका उत्पन्न हो जाए तो उसे दूर करने का सबसे विश्वसनीय तरीका यह है कि उसके मूल में निहित भावनाओं, उसके आधारों तथा कानून निर्माण के कारणों पर विचार किया जाए तथा संविधान की प्रस्तावना का आश्रय लिया जाए।"

·        प्रस्तावना का लक्ष्य एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था स्थापित करना है, जहाँ जनता संप्रभु हो. शासन निर्वाचित और जनता के प्रति उत्तरदायी हो, शासन की सत्ता जनता के मौलिक अधिकारों की रक्षक तथा जनता को अपने विकास का समुचित अवसर प्राप्त हो।

·        भारत के संविधान की प्रस्तावना का उद्देश्य, राजनीतिक व्यवस्था का लक्ष्य निर्धारित करना तथा उसकी नीति सुनिश्चित करना है।

प्रस्तावना की विशेषताएँ:

·        सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न या सार्वभौम शब्द का प्रयोग किया जाना इस बात का द्योतक है कि भारत के आंतरिक तथा वैदेशिक मामलों में भारत सरकार सार्वभौम तथा स्वतन्त्र है।

·        पाकिस्तान 1956 तक ब्रिटिश डोमिनियन बना रहा. किन्तु भारत ने 1949 में ही अपने संविधान की रचना के बाद से अपने आपको गणराज्य घोषित किया, जिसका अर्थ है-भारत का राष्ट्र प्रमुख जनता द्वारा निर्वाचित है। उसे किसी वंश परम्परा के कारण पद प्राप्त नहीं है।

·        आयरलैंड ने रिपब्लिक ऑफ आयरलैंड एक्ट 1948 बनाकर ब्रिटिश राष्ट्रकुल से अपने सम्बन्ध समाप्त कर लिए थे, किन्तु भारत ने अपने आप को गणराज्य घोषित करने के बावजूद राष्ट्रकुल में बने रहने का निश्चय किया, जिसके कारण राष्ट्रकुल की संकल्पना ही बदल गयी, क्योंकि भारत ने ब्रिटिश सम्राट के प्रति निष्ठा रखना स्वीकार नहीं किया। अतः ब्रिटिश राष्ट्रकुल जो कि साम्राज्यवाद का प्रतीक था, अब स्वाधीन राष्ट्रों का एक स्वतंत्र संघ हो गया।

·        "लोकतंत्रात्मक गणराज्य" का तात्पर्य यह है कि न केवल शासन में लोकतंत्र होगा, बल्कि समाज भी लोकतंत्रात्मक होगा, जिसमें 'न्याय, स्वतंत्रता, समता और बंधुता' की भावना होगी।

·        बंधुत्व, बंधुत्व का अर्थ सभी भारतीयों के सर्वमान्य भाईचारे की, सभी भारतीयों के एक होने की भावना है। यही सिद्धान्त सामाजिक जीवन को एकता तथा अखंडता प्रदान करता है। हमारे देश में अनेक मूलवंश, धर्म, भाषा और संस्कृति को मानने वाले लोग रहते हैं, जिनमें एकता और बन्धुत्व की भावना स्थापित करने के लिए संविधान में पंथनिरपेक्ष राज्य का आदर्श रखा गया है। बंधुत्व की संकल्पना, वसुधैव कुटुंबकम्, अर्थात् समूचा एक परिवार है—के प्राचीन भारतीय आदर्श की ओर ले जाती है। विश्व इसे संविधान के अनुच्छेद 51 में नीति निर्देशक तत्त्वों के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है।

·        संविधान द्वारा प्रत्येक नागरिक को समान रूप से मौलिक अधिकार प्राप्त हैं और इनकी सुरक्षा लिए न्यायपालिका की शरण ली जा सकती है, तथापि यदि व्यक्ति को अभाव और दुःख से छुटकारा न मिले तो उसके लिए इन अधिकारों का कोई अर्थ नहीं है। अतः संविधान के भाग 4 में राज्य को यह निर्देश दिया गया है कि वह अपनी कल्याणकारी नीतियों का संचालन इस प्रकार करे कि प्रत्येक स्त्री और पुरुष को जीविका के पर्याप्त साधन समान रूप से प्राप्त हों (अनुच्छेद 39)।

·        पंथ निरपेक्ष राज्य : पंथ निरपेक्ष का अर्थ धर्म के आधार पर भेदभाव का अभाव है तथा जहाँ सभी धर्मों को समान भाव से देखा जाए, वही पंथ निरपेक्षता है। 1976 में 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से यह व्यवस्था संविधान में जोड़ी गई। इसे अनुच्छेद 25 से 29 में धर्म की स्वतन्त्रता से संबंधित सभी नागरिकों के मूल अधिकार के रूप में समाविष्ट करके क्रियान्वित किया गया है। इसका प्रयोग धर्म पर आधारित भेदभावों के अभाव तथा सभी धर्मों को समान सम्मान देने के रूप में किया गया है। इसका अर्थ है— सर्वधर्म समभाव अर्थात् सभी धर्मो को समान आदर देना चाहे वह धर्म अल्पसंख्यक का हो या बहुसंख्यक का ।

·        भारत के लोग अपनी संप्रभुता का प्रयोग केन्द्र में संसद और राज्यों के विधानमंडल में अपने द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से करते हैं। संविधान सभी वयस्क नागरिकों को अपने प्रतिनिधि चुनने के विषय में समानता प्रदान करता है।

·        जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता का शासनः प्रस्तावना में जिस राजनीतिक न्याय की घोषणा की गई है. उसे सुनिश्चित करने के लिए भारत के राज्यक्षेत्र में प्रत्येक वयस्क नागरिक को बिना किसी आर्थिक, शैक्षिक अथवा सामाजिक भेदभाव के मताधिकार दिया गया है अर्थात् प्रत्येक पांच वर्ष में संघ और प्रत्येक राज्य के विधानमंडल के सदस्य समस्त वयस्क जनता को मत से निर्वाचित होंगे और इस निर्वाचन का सिद्धांत होगा 'एक व्यक्ति एक मत'

·        लोकतांत्रिक समाजः सविधान में जिस लोकतंत्र को दृष्टि में रखा गया, वह 'राजनीतिक लोकतंत्र" को सीमित नहीं है, बल्कि आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में भी व्याप्त है, क्योंकि वोट उस के लिए कोई महत्त्व नहीं रखता जो निर्धन और निर्बल है।

·        आर्थिक न्याय संविधान के भाग 4 में वर्णित निदेशक तत्वों अनुसार राज्य का उद्देश्य किसी से धन छीनकर निर्धनता का उन्मूलन करना नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय धन और संसाधनों में वृद्धि करके समस्त लोगों में उनका समानतापूर्वक उचित वितरण करना है। यही आर्थिक न्याय है।

·        संविधान द्वारा समाज में स्वतंत्र और सभ्य जीवन के लिए आवश्यक तत्त्वों-विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता' की संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 19 से 22 एवं 25 से 28 (धार्मिक स्वतंत्रता) के अर्न्तगत व्यवस्था की गई है।

·        प्रत्येक व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व के समुचित विकास के लिए समान अवसर प्राप्त होने चाहिये। इस उद्देश्य की पूर्ति संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 तक नागरिकों को दिए गए समानता के मूल अधिकार द्वारा की गई है। इसके अतिरिक्त राजनीतिक समानता के लिए अनुच्छेद 326 के तहत् सार्वजनिक वयस्क मताधिकार की व्यवस्था है।

·        संविधान का उद्देश्य 'कल्याणकारी' और समाजवादी राज्य की स्थापना करना है। 1976 में संविधान के 42वें संशोधन द्वारा प्रस्तावना में "समाजवाद" शब्द जोड़ा गया. किन्तु भारत का समाजवाद धन के सभी साधनों का राष्ट्रीयकरण  करके निजी सम्पत्ति को समाप्त करने वाला समाजवाद नहीं है। 1978 में किये गए संविधान के 44वें संशोधन द्वारा अनुच्छेद 31 का निरसन करके राज्य द्वारा सम्पत्ति के अर्जन पर निजी स्वामियों को प्रतिकर संदाय करने की संवैधानिक बाध्यता समाप्त कर दी गई।

·        1976 के 42वें संवैधानिक संशोधन द्वारा प्रस्तावना में 'अखंडता' शब्द को जोड़कर राष्ट्र की एकता के आदर्श को बल प्रदान किया गया। राष्ट्र की एकता एवं अखंडता के बिना हम अपने आर्थिक विकास के प्रयासों में फल नहीं हो सकते और न ही हम लोकतन्त्र या देश की स्वाधीनता तथा देशवासियों के सम्मान की रक्षा करने की आशा कर सकते हैं। इसलिए अनुच्छेद 51 (क) के अन्तर्गत सभी नागरिकों का यह कर्त्तव्य बन जाता है कि वे भारत की संप्रभुता, एकता एवं अखंडता की रक्षा करें।

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संविधान का निर्माण

भारतीय संविधान के स्रोत एवं विशेषताएं

संघ और उसका राज्य क्षेत्र

नागरिकता

मौलिक अधिकार

राज्य के नीति निर्देशक तत्व

मौलिक कर्त्तव्य

केन्द्रीय कार्यपालिका

राज्य की कार्यपालिका

राज्य विधानमंडल

भारत में स्थानीय स्वशासन

संघ राज्य क्षेत्र, अनुसूचित तथा जनजातीय क्षेत्रों का प्रशासन


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