संविधान का निर्माण/Constitution making
संविधान का निर्माण/Constitution making
संविधान:-
- संविधान एक सामाजिक राजनीतिक दस्तावेज है।
- यह स्वतंत्रता समानता, न्याय और भ्रातृत्त्व के आदर्शों पर आधारित है।
- यह मौलिक विधियों तथा आधारभूत राजनीतिक सिद्धांतों का एक आलेख है, जिस पर किसी देश का शासन आधारित होता है।
- यह सरकार और शासन के अंगों की शक्तियों और उत्तरदायित्त्वों को परिभाषित करता है।
- यह सरकार के विभिन्न अंगों की व्याख्या करता है तथा सरकार और नागरिकों के संबंधों के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास करता है।
- संविधान की सबसे महत्त्वपूर्ण उपयोगिता इस बात में है कि यह शासन अथवा सरकार द्वारा सत्ता के दुरुपयोग को रोकने में समर्थ होता है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:-
- संविधान का विकास भारत में औपनिवेशिक ब्रिटिश शासन के विरुद्ध हुए संघर्षों का परिणाम है।
- 1757 के पश्चात् ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी व्यापारिक और राजनीतिक भूमिकाओं के संयुक्त प्रयास से भारत में एक विशाल साम्राज्य स्थापित कर लिया।
- ब्रिटिश सरकार ने ईस्ट इंडिया कंपनी को ब्रिटिश राजसत्ता के दायरे में लाने के लिए चार्टरों और अधिनियमों का सहारा लिया।
- 1857 की क्रांति से पूर्व ब्रिटिश सरकार द्वारा पारित किए गए प्रमुख कानून अथवा अधिनियम इस प्रकार थे-
- 1773 का नियामक (रेग्यूलेटिंग) अधिनियम, 1781 का संशोधन अधिनियम, 1784 का पिट्स इंडिया एक्ट 1786 का अधिनियम, 1793 का चार्टर अधिनियम, 1813 का चार्टर अधिनियम, 1833 का चार्टर अधिनियम और 1853 का चार्टर अधिनियम आदि।
- 1857 की क्रांति के पश्चात् ब्रिटिश सरकार ने भारत में कंपनी की शासन सत्ता को समाप्त कर भारत की सत्ता को ब्रिटिश ताज के अंतर्गत दिया।
- देश की शासन व्यवस्था में सुधार के लिए अनेक अधिनियम, जैसे भारत सरकार अधिनियम 1858 इण्डियन कॉउन्सिल एक्ट, 1892 और 1909, भारत सरकार अधिनियम 1919 और 1935 आदि पारित किए गए। इन अधिनियमों ने भारतीय संविधान के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
संविधान सभा
- संविधान निर्माण के लिए गठित प्रतिनिधि सभा को संविधान सभा कहा जाता है, जो नवीन संविधान पर विचार करने और अपनाने या विद्यमान संविधान में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन करने के लिए गठित की जाती है।
- किसी प्रभुसत्ता संपन्न लोकतांत्रिक राष्ट्र के संविधान की रचना का कार्य सामान्यतया उसकी जनता के प्रतिनिधि निकाय द्वारा किया जाता है। इस प्रकार के निकाय को ही संविधान सभा कहते हैं।
- भारत में संविधान की मांग को निम्न अवसरों पर देखा जा सकता है:-
a.1919 के अधिनियम के विरोध के रूप में संविधान सभा की मांगः पहली बार भारत शासन अधिनियम, 1919 के लागू होने के बाद 1922 में महात्मा गांधी ने किया था। उन्होंने यह भी कहा था कि "भारतीय संविधान भारतीयों की इच्छानुसार ही होगा "।
सर्वदलीय सम्मेलन में संविधान सभा की मांग:
- फरवरी 1923. में दिल्ली में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें केंद्रीय तथा प्रांतीय विधानमंडलों के सदस्यों ने हिस्सा लिया।
- इस सम्मेलन में भारत को ब्रिटिश साम्राज्य के स्वशासी डोमिनियनों के समतुल्य रखते हुए संविधान के आवश्यक तत्त्वों की रूपरेखा प्रस्तुत की गई।
- 24 अप्रैल को गुरु तेज बहादुर सप्रू की अध्यक्षता में एक 'राष्ट्रीय सम्मेलन' बुलाया गया। इस सम्मेलन में "कामनवेल्थ ऑफ इंडिया बिल' का प्रारूप तैयार किया गया।
- प्रारूप बिल, थोड़े से संशोधित रूप में जनवरी 1925 में दिल्ली में हुए सर्वदलीय सम्मेलन के समक्ष पेश किया गया, जिसकी अध्यक्षता महात्मा गांधी ने की।
- भारत के लिए एक संवैधानिक प्रणाली की रूपरेखा प्रस्तुत करने का यह प्रथम प्रमुख प्रयास था।
1928 नेहरू समिति की रिपोर्ट-
- 19 मई 1928 को बंबई में आयोजित सर्वदलीय सम्मेलन में "भारत के संविधान के सिद्धांत निर्धारित करने के लिए" मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की गई।
- इस समिति के अन्य सदस्यों में सुभाष चन्द्र बोस तथा गुरु तेज बहादुर सप्रू शामिल थे।
- 10 अगस्त, 1928 को प्रस्तुत की गई समिति की रिपोर्ट 'नेहरू रिपोर्ट' के नाम से प्रसिद्ध है।
- यह भारतवासियों द्वारा अपने देश के लिए सर्वागपूर्ण संविधान बनाए जाने का प्रथम प्रयास था।
1934 कांग्रेस कार्यकारिणी की घोषणा:-
- लंदन में सम्पन्न हुए तीसरे गोलमेज सम्मेलन के बाद जारी किए गए श्वेतपत्र में भारत में संवैधानिकः सुधारों के लिए ब्रिटिश सरकार के प्रस्तावों की रूपरेखा दी गई थी।
- जून 1934 में यह घोषणा की कि "श्वेतपत्र का एकमात्र विकल्प यह है कि वयस्क मताधिकार के आधार पर निर्वाचित संविधान सभा द्वारा एक संविधान तैयार किया जाए।"
- इसी वर्ष कांग्रेस ने एक संसदीय बोर्ड की स्थापना की, जिसका मुख्य उद्देश्य भारतीयों के लिए नवीन सविधान बनाने के लिए संविधान सभा का गठन करना था।
- यह पहला अवसर था, जब संविधान सभा के लिए औपचारिक रूप से एक निश्चित मांग प्रस्तुत की गई।
- 1936 1937 और 1938 के कांग्रेस अधिवेशनों में भारतीय संविधान सभा के विषय में चर्चा की गयी और यह मांग की गयी कि भारतीय संविधान का निर्माण भारतवासियों द्वारा होगा।
- 1939 में विश्वयुद्ध छिड़ने के बाद, संविधान सभा की मांग को 14 सितंबर 1939 को कांग्रेस कार्यकारिणी द्वारा जारी किए गए एक लंबे वक्तव्य में दोहराया गया।
1940 में पं. जवाहरलाल नेहरू द्वारा संविधान सभा की मांग:-
- 1940 में पंडित नेहरू ने इस मांग को मूर्त रूप प्रदान किया। उन्हीं के प्रयत्नों के परिणामस्वरूप कांग्रेस ने यह घोषणा की कि "यदि भारत को आत्मनिर्णय का अवसर मिलता है तो भारत के सभी विचारों के लोगों की प्रतिनिधि सभा बुलाई जाएगी, जो सर्वसम्मत संविधान का निर्माण करेगी। संविधान सभा के अतिरिक्त संविधान निर्माण का अन्य कोई विकल्प नहीं है।"
- 1940 में मुस्लिम लीग ने भी पृथक पाकिस्तान की मांग प्रस्तुत कर दी
- फिर भी वह संविधान सभा की मांग के प्रति सहमत हो गई।
- 1940 के 'अगस्त प्रस्ताव' में ब्रिटिश सरकार ने भी संविधान सभा की मांग को पहली बार अधिकारिक रूप से स्वीकार किया
क्रिप्स मिशन व संविधान सभा की मांगः-
- 1942 को क्रिप्स योजना को ब्रिटेन ने स्पष्टतया स्वीकार कर लिया, जिसके तहत भारत में एक निर्वाचित संविधान सभा का गठन किया जाना था, जो युध्द के बाद भारत के लिए संविधान का निर्माण करेगी।
- भारतीयों द्वारा इसे अस्वीकार कर दिया गया।
- क्रिप्स मिशन की विफलता के बाद तथा यूरोप में विश्व युद्ध की समाप्ति तक अर्थात् मई 1945 तक भारत की संवैधानिक समस्या के समाधान के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा कोई कदम नहीं उठाया गया।
कैबिनेट मिशन और संविधान सभा की मांगः-
- जुलाई 1945 में, इंग्लैंड में लेबर पार्टी की सरकार सत्ता में आई. तब 19 सितंबर 1945 को वॉयसराय लॉर्ड वेवेल ने भारत के संबंध में सरकार की नीति की घोषणा की तथा 'यथा शीघ्र' संविधान निर्माण निकाय का गठन करने के लिए महामहिम की सरकार के इरादे की पुष्टि की। इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु एक मिशन भारत भेजा गया, जो कैबिनेट मिशन कहलाया।
- 1946 की कैबिनेट मिशन योजना ने भारतीय संविधान सभा के प्रस्ताव को स्वीकार कर इसे व्यावहारिक रूप प्रदान किया।
- मिशन का विचार था कि वर्तमान परिस्थितियों में वयस्क मताधिकार के माध्यम से संविधान सभा का गठन असम्भव है।
- इसके लिए प्रान्तीय विधानसभाओं का निर्वाचनकारी संस्थाओं के रूप में उपयोग किया जाना ही व्यवहारिक होगा।
- कैबिनेट मिशन ने संविधान सभा के गठन के संबंध में निम्न प्रस्ताव रखे:-
(1) संविधान सभा में कुल 389 सदस्य होंगे, जिनमें से 296 प्रान्तों से तथा 93 भारतीय रियासतों से आएंगे।
(2) संविधान सभा में प्रान्तों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में स्थान दिए जाएंगे। प्रत्येक दस लाख जनसंख्या पर एक सदस्य निर्वाचित होगा।
(3) प्रान्तों की इस प्रकार निर्धारित सीटें प्रान्तों में निवास करने वाली प्रमुख जातियों में वितरित कर दी जाएंगी और प्रत्येक जाति के लोग अपने प्रतिनिधि चुनेंगे।
(4) देशी रियासतों के प्रतिनिधि भी सविधान सभा में शामिल होंगे। और दस लाख की जनसंख्या पर एक प्रतिनिधि होगा, किन्तु उनके चुनने की विधि का निर्माण शासकों के परामर्श से किया जाएगा।
- कैबिनेट मिशन ने संविधान के लिए बुनियादी ढांचे का प्रारूप पेश किया तथा संविधान निर्माण-निकाय द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया का कुछ विस्तार के साथ निर्धारण किया।
भारत की संविधान सभा की रचना:-
- संविधान सभा के लिए कुल 389 सदस्यों का निर्वाचन किया जाना था, जिसमें 292 सदस्यों को ब्रिटिश प्रान्तों की विधान सभाओं से चुनना था, 4 सदस्यों को चीफ कमिश्नर के प्रान्तों से चुनना था और 93 भारतीय रियासतों के प्रतिनिधि होने थे।
- संविधान सभा के सदस्यों के निर्वाचन के लिए जनसंख्या निश्चित की गई थी और इसी आधार पर प्रान्तों एवं भारतीय रियासतों से लिए जाने वाले प्रतिनिधियों की संख्या निश्चित की गई थी।
- ब्रिटिश भारत के प्रांतों को आवंटित (292+4) 296 में से 208 स्थानों पर कांग्रेस को, जिनमें नौ को छोड़कर शेष सभी सामान्य स्थान शामिल थे, विजय प्राप्त हुई और मुस्लिम लीग को मुसलमानों को आवंटित स्थानों को मिलाकर 73 स्थानों पर सफलता मिली।
- चुनावों में निम्नलिखित दलीय स्थिति उभर कर सामने आई:-
संविधान सभा का पुनर्गठनः
- भारत विभाजन योजना के निश्चित होने के पश्चात् भारत और पाकिस्तान को अपना-अपना पृथक् संविधान बनाना था।
- मुस्लिम लीग के सदस्य पाकिस्तान चले गये। इसलिए भारत की संविधान सभा में प्रान्तों के 296 सदस्यों के स्थान पर 235 सदस्य शेष रह गये।
- देशी रियासतों की सदस्य संख्या भी 93 के स्थान पर 89 रह गई। इस प्रकार कुल सदस्य संख्या 389 से घटकर 324 रह गई।
देशी रियासतों के प्रतिनिधियों की सदस्यताः
⦁ हैदराबाद रियासत के प्रतिनिधि को छोड़कर, अन्य सभी रियासतों के प्रतिनिधि संविधान सभा में शामिल हुए।
संविधान सभा का निर्वाचनः
- संविधान सभा कैबिनेट प्रतिनिधि मंडल के सुझावानुसार प्रान्तीय विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा अप्रत्यक्ष निर्वाचन से निर्वाचित हुई थी।
- इस निर्वाचन में:
a. प्रत्येक प्रान्त और प्रत्येक देशी रियासत या रियासतों के समूह को अपनी जनसंख्या के अनुपात से स्थानों का आवंटन किया गया था। स्थूल रूप से 10 लाख के लिए एक स्थान का अनुपात था। अतः प्रान्तों को 292 और रियासतों को 93 स्थान दिये गए।
b. प्रत्येक प्रान्त के स्थानों को तीन प्रमुख समुदायों (मुस्लिम, सिक्ख, साधारण) में जनसंख्या के अनुपात में बांटा गया।
c. प्रान्तीय विधानसभा के सदस्यों ने "एकल संक्रमणीय मत से आनुपातिक प्रतिनिधित्व के अनुसार" अपने प्रतिनिधि का निर्वाचन किया।
d. देशी रियासतों के प्रतिनिधियों के चयन की पद्धति, परामर्श से तय की जानी थी।
- अविभाजित भारत के लिए निर्वाचित संविधान सभा 9 दिसम्बर, 1946 को पहली बार समवेत हुई। इसमें संविधन सभा द्वारा डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को अस्थायी अध्यक्ष चुना गया।
- 11 दिसंबर 1946 को संविधन सभा के सदस्यों द्वारा डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को स्थायी अध्यक्ष चुना गया।
- 13 दिसंबर, 1946 को नेहरू जी ने ऐतिहासिक 'उद्देश्य प्रस्ताव पेश किया।'
- उद्देश्य प्रस्ताव में भारत के भावी प्रभुत्ता संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य की रूपरेखा दी गई थी।
- 22 जनवरी, 1947 को संविधान सभा ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।
- संविधान सभा ही भारत डोमिनियन की प्रभुत्वसंपन्न संविधान सभा के रूप में 14 अगस्त, 1947 को पुनः समवेत हुई।
- संविधान सभा के गठन के पश्चात् जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि. "स्वाधीनता और सत्ता अपने साथ उत्तरदायित्व लाती है। वह उत्तरदायित्व अब इस भारत के लोगों को प्रतिनिधि, प्रभुसत्ता सम्पन्न संविधान सभा के कन्धों पर है।"
अंतरिम सरकार :
- जवाहर नेहरू तथा उनके 11 सहयोगियों ने 2 सितम्बर 1946 को अंतरिम सरकार का गठन किया।
- मुस्लिम लीग द्वारा इसका बहिष्कार किया गया।
- 26 अक्टूबर 1946 को जब पुनः सरकार का गठन किया गया। इसमें मुस्लिम लीग के पाँच सदस्यों को शामिल किया गया तथा तीन सदस्यों सैयद अली जहीर, शरतचन्द्र बोस और सर सफत अहमद खाँ को परिषद से बाहर निकाल दिया।
अंतरिम सरकार सदस्य
मंत्री विभाग
जवाहर लाल नेहरू कार्यकारी परिषद के उपाध्यक्ष राष्ट्रमंडल तथा विदेशी मामले
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद खाद्य एवं कृषि
सरदार वल्लभभाई पटेल गृह सूचना एवं प्रसारण
बलदेव सिंह रक्षा
सी राजगोपालाचारी। शिक्षा
आसफ अली रेलवे
जान मथाई उद्योग एवं नागरिक आपूर्ति
जगजीवन राम श्रम
सी. एच. भामा बंदरगाह एवं खनन
अंतरिम सरकार में मुस्लिम लीग के सदस्य
मंत्री विभाग
जोगेन्द्रनाथ मंडल विधि
गजनफर अली खाँ स्वास्थ्य
लियाकत अली खाँ वित्त
आई. आई. चुंदरीगर वाणिज्य
अब्दुलरब निश्तार संचार
संविधान का निर्माण:-
- भारत के संविधान का पहला प्रारूप संविधान सभा कार्यालय की मंत्रणा शाखा ने अक्टूबर 1947 में तैयार किया।
- इस प्रारूप की तैयारी से पहले, बहुत सारी आधार सामग्री एकत्रित की गई तथा संविधान सभा के सदस्यों को 'संवैधानिक पूर्वदृष्टांत' के नाम से तीन संकलनों के रूप में उपलब्ध कराई गई।
- इन संकलनों में लगभग 60 देशों के संविधानों से मुख्य अंश उद्धृत किए गए थे।
संविधान की स्वीकृतिः
- संविधान के प्रारूप पर खंडवार विचार 15 नवंबर, 1948 से 8 जनवरी, 1949 तक चला. तब तक संविधान सभा 67 अनुच्छेदों पर विचार कर चुकी थी।
- इसे संविधान का प्रथम वाचन कहा जाता है, जो 17 अक्टूबर, 1949 को पूरा किया गया।
- प्रस्तावना सबसे बाद में स्वीकार की गई।
- संविधान का दूसरा वाचन 16 नवंबर, 1949 को पूरा हुआ तथा उससे अगले दिन संविधान सभा ने डॉ. अंबेडकर के इस प्रस्ताव के साथ कि "विधान सभा द्वारा यथानिर्णीत संविधान पारित किया जाए". संविधान का तीसरा वाचन शुरू किया, जो 26 नवम्बर, 1949 तक चला।
- प्रस्ताव 26 नवंबर, 1949 को स्वीकृत हुआ तथा इस प्रकार उस दिन संविधान सभा में भारत की जनता ने भारत के प्रभुत्व संपन्न लोकतांत्रिक गणराज्य का संविधान स्वीकार किया।
- संविधान सभा ने संविधान बनाने का काम 2 वर्ष 11 महीने और 18 दिन में पूरा किया।
- संविधान की स्वीकृति के पश्चात् प्रारूप समिति के सभापति (डॉ. भीमराव अंबेडकर) तथा संविधान सभा के अध्यक्ष (डॉ. राजेन्द्र प्रसाद) ने 25 तथा 26 नवम्बर, 1949 को अपने भाषण दिये।
- संविधान पर संविधान सभा के सदस्यों द्वारा 24 जनवरी, 1950 को संविधान सभा के अंतिम दिन अंतिम रूप से हस्ताक्षर किए गए।
- 26 जनवरी, 1950 को भारत के संविधान के श्रीगणेश के बाद भी, इसके वास्तविक अमल, न्यायिक निर्वचन और संवैधानिक संशोधनों द्वारा इसके निर्माण की प्रक्रिया जारी रही।
- संविधान सभा ने और भी कई महत्त्वपूर्ण कार्य किए, जैसे; उसने संविधायी स्वरूप के कतिपय कानून पारित किए, राष्ट्रीय ध्वज को अंगीकार किया, राष्ट्रगान की घोषणा की. राष्ट्रमंडल की सदस्यता से संबंधित निर्णय की पुष्टि की तथा गणराज्य के प्रथम राष्ट्रपति का चुनाव किया।
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