Citizenship/नागरिकता

 

 


नागरिकता/Citizenship


नागरिकता क्या है ?

·       नागरिकता को व्यक्ति तथा राज्य के मध्य कानूनी संबंध के रूप में देखा जा सकता है, जिसके तहत् व्यक्ति अपनी निष्ठा राज्य के प्रति व्यक्त करता है और राज्य व्यक्ति को अपना संरक्षण प्रदान करता है।

·        नागरिकता ऐसे अधिकार, दायित्व, कर्तव्य और विशेषाधिकार प्रदान करती है, जो विदेशियों को प्राप्त नहीं होते।

·        किसी भी संप्रभु राष्ट्र में दो प्रकार के व्यक्ति हो सकते हैं-एक, स्वयं उस राष्ट्र के, जिन्हें देश के कानून अथवा संविधान के भीतर राष्ट्र के सभी सिविल और राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं।

·        दूसरे, वे व्यक्ति जिन्हें इस प्रकार के कोई अधिकार प्राप्त नहीं होते और जो अपने व्यक्तिगत अथवा सरकारी कार्यों के लिए उस देश में रह रहे होते हैं।

·        किसी राष्ट्र की विधि के अधीन सिविल, राजनीतिक व अन्य अधिकार प्राप्त व्यक्तियों को उस राष्ट्र का नागरिक माना जाता है।

·        संविधान के अनुच्छेद भाग 2 में 5 से 11 तक भारत की नागरिकता के संबंध में व्यवस्थाएँ दी गई हैं।

नागरिक और विदेशियों को प्राप्त अधिकारों में अन्तर:-

·        मतदान करने का अधिकार केवल नागरिकों को ही प्राप्त है, विदेशियों को नहीं।

·        कुछ मौलिक अधिकार हैं जो केवल भारत के नागरिकों को ही प्राप्त हैं, विदेशियों को नहीं। उदाहरण के लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15, 16 और 19 में वर्णित अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को प्राप्त हैं।

·        केवल नागरिक ही कुछ पदों के पात्र हैं जैसे—राष्ट्रपति का पद (अनुच्छेद 58 (1) (क), उपराष्ट्रपति का पद (अनुच्छेद 66(3) (क), उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश (अनुच्छेद 124 (3) उच्च न्यायालय का न्यायाधीश (अनुच्छेद 217 (2) ). महान्यायवादी (अनुच्छेद 76 (2)). राज्यपाल (अनुच्छेद 157 ) महाधिवक्ता ( अनुच्छेद 165) ये पद केवल भारतीय नागरिकों के लिए ही हैं।

·        इसके अतिरिक्त लोकसभा तथा प्रत्येक राज्य की विधानसभा के निर्वाचन के लिए मत देने का अधिकार (अनुच्छेद 326) और संसद सदस्य होने का अधिकार (अनुच्छेद 84) तथा राज्य के विधानमंडल का सदस्य होने का अधिकार ( अनुच्छेद 191(1) (घ)। ये अधिकार केवल भारत के नागरिकों के लिए ही उपलब्ध है। 

गैर-नागरिकों को प्राप्त मौलिक अधिकार:-

·        अनुच्छेद 14-विधि के समक्ष समानता

·        अनुच्छेद 20-अपराधों के लिए दोष सिद्धि के सम्बन्ध में संरक्षण

·        अनुच्छेद 21-प्राण और दैहिक स्वतन्त्रता

·        अनुच्छेद 21ए-प्राथमिक शिक्षा का अधिकार

·        अनुच्छेद 23- मानव के दुर्व्यवहार और बलात् श्रम का प्रतिषेध

·        अनुच्छेद 24- कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध

·        अनुच्छेद 25- अन्तःकरण की और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता

·        अनुच्छेद 26-धार्मिक कार्यों के प्रबन्ध की स्वतन्त्रता

·        अनुच्छेद 27- किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि की स्वतन्त्रता

·        अनुच्छेद 28-कुछ शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्वतन्त्रता

भारत के नागरिक:-

·        अनुच्छेद 5 (क): इस अनुच्छेद के अनुसार वह व्यक्ति, जिसका भारत के राज्यक्षेत्र में अधिवास है और जो भारत के राज्यक्षेत्र में जन्मा है— चाहे उसके माता-पिता की राष्ट्रीयता कुछ भी हो, भारत का नागरिक है।

·        अनुच्छेद 5 (ख) और (ग): वह व्यक्ति, जिसके माता या पिता में से कोई भी भारत में जन्मा था या संविधान के लागू होने के ठोक पाँच वर्ष पूर्व से मामूली तौर से भारत के राज्यक्षेत्र का निवासी रहा हो, भारत का नागरिक होगा।

·        अनुच्छेद 6: के अनुसार ऐसा व्यक्ति, जो इस समय (26 जनवरी 1950) पाकिस्तानी राज्यक्षेत्र के अंतर्गत है, ने भारत में आव्रजन किया है. भारत का नागरिक समझा जाएगा।

a.     वह या उसके माता या पिता अथवा पितामह या मातामह में से कोई (मूल रूप में यथा अधिनियम) भारत शासन अधिनियम, 1935 में परिभाषित भारत में जन्मा था।

b.     (i) वह व्यक्ति, जिसने 19 जुलाई, 1948 से पूर्व ऐसा प्रव्रजन किया है और वह उस तारीख से भारत के राज्यक्षेत्र में मामूली तौर से निवासी रहा है।

(ii) वह व्यक्ति, जिसने 19 जुलाई, 1948 को या उसके पश्चात् ऐसा प्रव्रजन किया हो और नागरिकता प्राप्ति के प्रयोजन के लिए भारत डोमिनियन की सरकार द्वारा प्राधिकृत अधिकारी द्वारा उसे भारत का नागरिक रजिस्ट्रीकृत कर लिया गया हो।

(iii) किन्तु वह व्यक्ति, इस प्रकार पंजीकृत नहीं किया जाएगा जो नागरिकता के अपने आवेदन की तारीख से ठीक पहले न्यूनतम छह मास तक भारत राज्यक्षेत्र का निवासी नहीं रहा हो।

·        अनुच्छेद 7: के अनुसार वह व्यक्ति, जो । मार्च, 1947 के पश्चात् पाकिस्तान से आव्रजन होकर भारत आया है और उसने अनुच्छेद 6 (ख) के अधीन अपने आपको पंजीकृत करा लिया हो, भारत का नागरिक होगा।

·        अनुच्छेद 8: वह व्यक्ति, जो स्वयं या जिसके माता-पिता या पितामह 1935 के भारत शासन अधिनियम में परिभाषित प्रावधान के अनुसार भारत में जन्मा हो या था, किन्तु जो भारत के बाहर किसी अन्य देश में मामूली तौर से निवास कर रहा है. विहित रूप में भारत के कौंसली या राजनयिक प्रतिनिधि को आवेदन करने पर भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत किया जा सकेगा।

·         अनुच्छेद 9: यदि किसी व्यक्ति ने किसी विदेशी राज्य की नागरिकता स्वेच्छा से अर्जित कर ली है, तो वह भारत का नागरिक नहीं होगा। (7) अनुच्छेद 10: प्रत्येक वह व्यक्ति, जो नागरिकता विधि के उपबन्धों के अधीन नागरिक है, वह संसद द्वारा बनाई विधियों के अन्तर्गत भारत का नागरिक बना रहेगा।

·        अनुच्छेद 11: इस अनुच्छेद के अनुसार भारतीय संसद को नागरिकता के अधिकार को विधि द्वारा विनियमित करने का अधिकार प्राप्त है। संसद का यह अधिकार नागरिकता प्राप्ति से लेकर नागरिकता समाप्ति तक के सभी विषयों से संबंधित है।

नागरिकता अधिनियम, 1955

·        भारतीय संसद ने 1955 में नागरिकता अधिनियम पारित किया।

·        इस अधिनियम के निम्न प्रकार से भारत की नागरिकता अर्जित की जा सकती है- अनुसार

·        जन्म द्वारा नागरिकता: वह व्यक्ति, जिसका जन्म भारत में 26 जनवरी, 1950 को या उसके पश्चात् हुआ हो उसे भारत की नागरिकता प्राप्त होगी, किन्तु नागरिकता संशोधन अधिनियम के लागू होने के पश्चात् भारत में जन्म लेने वाला कोई भी व्यक्तिः तब भारत का नागरिक होगा, जबकि उसके माता या पिता में से कोई भारत का नागरिक हो।

·        आव्रजन द्वारा नागरिकता: 26 जनवरी, 1950 को या उसके पश्चात् भारत के बाहर पैदा होने वाले व्यक्ति को आव्रजन द्वारा भारत की नागरिकता प्राप्त होगी, यदि उसके माता-पिता में से कोई उसके जन्म के समय भारत के नागरिक हैं। भारतीय संविधान में नागरिकता संशोधन अधिनियम 1992 के आधार पर माता की नागरिकता के आधार पर बच्चे को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है।

·        पंजीकरण द्वारा नागरिकता: भारतीय मूल के ऐसे व्यक्ति, जो भारतीय नागरिकता पंजीकरण करने से पहले कम से कम छह मास तक या पाँच वर्ष तक मामूली तौर पर भारत के नागरिक रहे हों तथा वे स्त्रियाँ, जिनका विवाह भारत के किसी नागरिक के साथ हुआ हो, भारत के नागरिक होंगे। भारतीय नागरिकों के अल्पवयस्क बच्चे तथा राष्ट्रमंडल के राज्यों के तथा आयरलैंड गणराज्य के वयस्क और स्वस्थ्य बच्चे भी भारत के नागरिक होंगे।

·        राज्यक्षेत्र में विलयन से प्राप्त नागरिकता: किसी अन्य राज्य क्षेत्र के भारत में मिल जाने पर उस राज्यक्षेत्र के नागरिकों को भारत सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट करने पर भारत की नागरिकता प्राप्त हो जाती है।

·        देशीयकरण द्वारा नागरिकता: कोई विदेशी व्यक्ति, देशीयकरण के लिए भारत सरकार को आवेदन करके भारत की नागरिकता प्राप्त कर सकेगा। इसके लिए उसे निम्न शर्तें पूरी करनी होगी:

i.        वह व्यक्ति, जो वयस्क हो चुका हो तथा प्रथम अनुसूची में वर्णित देशों का नागरिक नहीं हो, तो वह भारत सरकार को नागरिकता के लिए आवेदन पत्र दे सकता है।

ii.      केन्द्रीय सरकार भी कुछ शर्तों की संतुष्टि के आधार पर उसे देशीयकरण द्वारा नागरिकता का प्रमाण पत्र देगी, जैसे:-

iii.    वह सच्चरित्र व्यक्ति हो।

iv.   वह राजनिष्ठा की शपथ ग्रहण करें।

v.     उसे भारतीय संविधान में उल्लिखित किसी भी एक भारतीय भाषा का पर्याप्त ज्ञान हो।

vi.   उस व्यक्ति ने अपने देश की नागरिकता का त्याग कर दिया हो तथा इस बात की सूचना केन्द्रीय सरकार को उपलब्ध करवाई हो।

vii. वह ऐसे किसी देश का नागरिक न हो जहाँ भारतीयों को देशीयकरण द्वारा नागरिकता दिए जाने पर रोक हो।

viii.देशीयकरण के लिए आवेदन से पूर्व 12 वर्ष तक भारत में रहा हो या भारत सरकार की सेवा में रहा हो। इस संबंध में केन्द्रीय सरकार यदि उचित समझे तो इस अवधि को घटा सकती है।

ix.    उक्त 12 वर्षों के पहले के कुल सात वर्षों में से कम-से-कम चार वर्षों तक भारत में या भारत सरकार की सेवा में रहा हो।

x.      यदि कोई व्यक्ति विज्ञान, कला, साहित्य, विश्व शान्ति, दर्शन अथवा मानव विकास के क्षेत्र में विशेष कार्य कर चुका हो तो उसे बिना किसी शर्त को पूर्ण किए भी देशीयकरण द्वारा नागरिकता प्रदान की जा सकती है।

भारतीय नागरिकता का समापन:-

·        कुछ विशेष परिस्थितियों में व्यक्ति की नागरिकता समाप्त भी हो सकती है। निम्नलिखित परिस्थितियों में नागरिकता का लोप हो सकता है-

a.     परित्यागः परित्याग एक स्वैच्छिक कार्य है, जिसके तहत् कोई व्यक्ति किसी अन्य राष्ट्र की नागरिकता धारण करने के लिए भारत की नागरिकता स्वेच्छा से छोड़ सकता है।

b.     पर्यवासः पर्यवास, विधि के द्वारा होता है अर्थात् जैसे ही कोई व्यक्ति किसी अन्य राष्ट्र की नागरिकता ग्रहण करता है वैसे ही उसकी भारतीय नागरिकता समाप्त हो जाती है।

c.      वंचित किया जाना: यदि भारत सरकार को इस बात का विश्वास हो जाता है कि अमुक व्यक्ति ने भारत की नागरिकता कपटता से अर्जित की है या उसने अपने आप को भारतीय संविधान के प्रति अभक्त या अप्रतिपूर्ण प्रदर्शित किया है तो भारत सरकार उसे भारत की नागरिकता से वंचित कर सकती है।

d.     विवाह द्वारा: यदि कोई स्त्री या पुरुष किसी अन्य देश के स्त्री या पुरुष के साथ विवाह कर लेते हैं तो उन्हें उस देश की नागरिकता स्वयं ही प्राप्त हो जाती है तथा भारत की नागरिकता समाप्त हो जाती है।

e.     राष्ट्रविरोधी गतिविधियों द्वाराः यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में संलिप्त पाया जाता है तो उसकी नागरिकता समाप्त कर दी जाती है। फौज से निष्काषित होने पर तथा देशद्रोह के मामलों में पकड़े जाने और सजा पाने आदि के मामलों में भी उस व्यक्ति की नागरिकता समाप्त कर दी जाती है।

f.        विदेश गमन: यदि कोई व्यक्ति विदेश में नौकरी करने जाता है और एक निश्चित अवधि के दौरान वापिस देश नहीं लौटता तो भी उसकी नागरिकता समाप्त हो जाती है।

 

नागरिकता संशोधन अधिनियम,1986:-

·        भारत में जन्म लेने वाला व्यक्ति यदि भारतीय नागरिक के रूप में पंजीकृत होना चाहता है तो उसे भारत में कम-से-कम पाँच वर्षों तक रहने का प्रमाण प्रस्तुत करना होगा। पहले यह अवधि मात्र छह माह थी।

·        किसी भी व्यक्ति को मात्र जन्म के आधार पर नागरिकता प्राप्त नहीं होगी। इसके लिए उसके माता-पिता में से कोई एक इससे पहले भारत का नागरिक रहा हो।

·        देशीयकरण के संबंध में जो शर्ते पहले पाँच वर्ष थीं, उन्हें बढ़ाकर दस वर्ष कर दिया गया है।

·        इस संशोधन द्वारा विदेशी महिला को भारतीय पुरुष से विवाह के पश्चात् नागरिकता प्राप्त करने का अधिकार दिया गया है।

नागरिकता संशोधन अधिनियम, 1992:-

·        वर्ष 1992 में संसद द्वारा सर्वसम्मति से नागरिकता संशोधन अधिनियम पारित किया गया।

·        इस अधिनियम द्वारा यह व्यवस्था की गई कि भारत से बाहर जन्म लेने वाले बच्चे को, यदि उसकी मां भारत की नागरिक है, तो भारत की नागरिकता प्राप्त होगी।

·        इससे पूर्व भारत से बाहर पैदा होने वाले बच्चे को केवल उसी दशा में भारत की नागरिकता प्राप्त होती थी, यदि उसका पिता भारत का नागरिक हो।

·        इस अधिनियम द्वारा बच्चे के माता और पिता दोनों को ही समान दर्जा प्रदान किया गया है।

एकल नागरिकता:-

·        भारत के संविधान के संघात्मक होने के बावजूद भारत के नागरिकों को केवल एक ही नागरिकता प्रदान की गई है

·        विश्व के अन्य देशों विशेषतः अमरीकी और स्विट्जरलैंड के परिसंघीय संविधानों में दोहरी नागरिकता की व्यवस्था है

·        भारत में प्रत्येक व्यक्ति को एक ही नागरिकता प्राप्त है चाहे वह किसी भी राज्य में रहता हो।

·        किसी भारतीय नागरिक के लिए भारत के किसी क्षेत्र विशेष में रहने संबंधी कोई बाध्यता नहीं है।

·        संविधान के अनुच्छेद 16(3) में संसद को यह शक्ति दी गई है कि वह किसी राज्य या संघ राज्य क्षेत्र के अधीन किसी वर्ग या वर्गों के नियोजन के लिए यह निर्धारित करे कि उस राज्य या संघ राज्य क्षेत्र में निवास करने की आवश्यक अहंता होगी।

·        अनुच्छेद 15(1) केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, या जन्म स्थान के आधार पर विभेद की मनाही करता है और इसमें निवास संबंधी किसी शर्त का कोई उल्लेख नहीं है।

·        भारत के सभी नागरिकों को चाहे उनका जन्म किसी भी राज्य में हुआ हो, बिना किसी भेदभाव के देश भर में एक से अधिकार तथा कर्त्तव्य प्राप्त हैं।

दोहरी नागरिकता:-

·        7 जनवरी, 2005 को प्रधानमंत्री मनमहोन सिंह ने उन समस्त भारतीय मूल के व्यक्तियों को दोहरी नागरिकता प्रदान करने की घोषणा की जो 26 जनवरी 1950 के पश्चात् भारत से प्रवास कर गए थे।

·        इस घोषणा के परिप्रेक्ष्य में भारतीय संसद ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2005 को पारित किया

·        पूर्ववर्ती 2003 के अधिनियम में मात्र 16 देशों में निवास करने वाले भारतीय मूल के व्यक्तियों के लिए ही दोहरी नागरिकता की व्यवस्था थी, जबकि 2005 के नए संशोधित अधिनियम में यह व्यवस्था पाकिस्तान एवं बांग्लादेश के नागरिकों को छोड़कर सभी देशों के नागरिकों के लिए है।

·        वर्तमान वाणिज्यिक दौर में दोहरी नागरिकता के माध्यम से निवेश और संसाधनों के लेन-देन के मामलों में भी सुविधा होगी।

·        प्रवासी भारतीयों के लिए दोहरी नागरिकता अपने मूल देश की संस्कृति से भावनात्मक जुड़ाव की और मजबूती प्रदान करेगी। उन्हें अपनी जड़ों से जुड़े रहने का भी मौका मिलेगा।

·        नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2005 का प्रवर्तन जून 2005 से हुआ।

·        इस अधिनियम के अंतर्गत निम्नलिखित शर्तें पूरी करने वाले भारतीय मूल के दूसरे देशों के नागरिकों (पाकिस्तान एवं बांग्लादेश को छोड़कर) के लिए दोहरी नागरिकता की व्यवस्था की गई है:

a.     वे व्यक्ति जो अब किसी भी देश के नागरिक हैं, किंतु जो 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू होने के समय अथवा बाद में किसी भी समय भारत के नागरिक थे।

b.     वे व्यक्ति जो किसी अन्य देश के नागरिक हैं, किंतु संविधान लागू होने के समय भारत की नागरिकता प्राप्त करने के पात्र थे।

c.      वे व्यक्ति जो किसी अन्य देश के नागरिक हैं, किंतु भारत के किसी ऐसे क्षेत्र से संबंध रखते हो, जो 15 अगस्त, 1947 के पश्चात् भारत का अंग बना हो।

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