Union and its Territories in hindi/संघ और उसका राज्य क्षेत्र
संघ और
उसका राज्य क्षेत्र/Union and its Territories
भारतीय संघ
·
हमारे संविधान में भारत को
राज्यों का संघ कहा गया है जिसमें राज्यों से अभिप्राय उन राज्यों से है जो संघीय प्रणाली
के सदस्यों के रूप में हैं और शक्ति विभाजन में संघ के हिस्सेदार हैं।
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"भारत के राज्य क्षेत्र"
में वह समस्त क्षेत्र है जिस पर समय-समय पर भारत की प्रभुता का विस्तार है।
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"भारत के राज्य क्षेत्र"
में राज्यों के अलावा संघ राज्य क्षेत्र और वे राज्य क्षेत्र जो भारत द्वारा अर्जित
किये जाएं शामिल हैं या होंगे।
·
कोई भी राज्य संघ से अलग नहीं
हो सकता और न ही अपनी इच्छा से संविधान की प्रथम अनुसूची में निर्धारित अपने राज्य
क्षेत्र में कोई परिवर्तन कर सकता है।
·
कोई ऐसा क्षेत्र जो किसी समय
भारत द्वारा कानूनी रूप से, संधि द्वारा अध्यर्पण या विजय
द्वारा अर्जित किया जाए. भारत के राज्य क्षेत्र का भाग होगा, जिसका प्रशासन अनुच्छेद 246 (4) के अधीन भारत सरकार चलाएगी।
·
हमारी राज्य व्यवस्था के संबंध
में दो मत हैं कुछ लोगों के मतानुसार यह एक संघ राज्य है,
जिसमें एकात्मक लक्षणों का प्रधान्य है जबकि दूसरे लोगों का विचार है
कि यह प्रधानता एक एकात्मक राज्य है, जिसमें कुछ संघीय लक्षणों
का समावेश हो गया है।
·
संघवाद के विशेषज्ञ प्रो.
के. सी. व्हीयर, "भारत को एक अर्द्धसंघीय राज्य व्यवस्था
के नाम से संबोधित करते हैं।"
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भारत न तो संयुक्त राज्य अमेरीका
और स्विट्जरलैण्ड की तरह एक 'परिसंघ' है और न ही दक्षिण अफ्रीका तथा आस्ट्रेलिया की तरह एक 'संघ' है, बल्कि यह "राज्यों
का संघ" है।
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इसकी
निम्नलिखित दो विशेषताएं हैं-
a.
भारत कतिपय संगठनात्मक इकाइयों
के समझौते का परिणाम नहीं है।
b.
कोई भी राज्य इकाई भारत से
अलग होने के लिए स्वतन्त्र नहीं है।
देशी रियासतों का एकीकरण:-
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स्वतंत्रता के पश्चात भारत
के समक्ष 552 छोटी-बड़ी देसी रियासते थी। जिनमे से अधिकांश रियासतों ने भारत में स्वेच्छा
से अपना विलय कर लिया।
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तीन रियासतों - हैदराबाद,
जूनागढ़ तथा जम्मू कश्मीर ने भारत में विलय होने से इनकार कर दिया। क्योंकि
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के अन्तर्गत राज्यों को यह अधिकार दिया गया कि वे या
तो भारत में या फिर पाकिस्तान में विलय कर सकते हैं अथवा अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाये
रख सकते हैं।
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बाद में जूनागढ़ को जनमत संग्रह
के आधर पर भारत में तब मिलाया गया जब उसका शासक पाकिस्तान भाग गया।
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हैदराबाद की रियासत को पुलिस
कार्यवाही द्वारा भारत में मिलाया गया।
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जम्मू-कश्मीर रियासत के शासक
ने पाकिस्तानी कबाइलियों के आक्रमण के कारण विलय पत्र पर हस्ताक्षर करके अपनी रियासत
को भारत में मिलाया।
भाषायी आधार पर राज्यों का पुनर्गठन:-
·
भारत का प्रमुख राजनीतिक दल
कांग्रेस,
राजनीतिक कारणों से भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की माँग का
समर्थन करता था।
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इस दल ने तेलुगू,
कन्नड़ तथा मराठी भाषी जनता के दबाव में आकर 27 नवम्बर, 1947 को राज्यों की भाषा के आधार पर पुनर्गठन की माँग को मान लिया तथा संविधान
सभा के अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश
एस. के. दर की अध्यक्षता में एक चार सदस्यीय आयोग की नियुक्ति की।
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आयोग का कार्य विशेषकर दक्षिण
भारत में उठी इस माँग की जाँच करना था कि भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन उचित
है या नहीं।
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आयोग ने 10 दिसम्बर,
1948 को 56 पृष्ठीय अपनी रिपोर्ट संविधान सभा को प्रस्तुत की जिसमें
भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का विरोध किया गया था. जबकि उसके द्वारा प्रशासनिक
सुविधा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का समर्थन किया गया था।
·
उक्त आयोग की रिपोर्ट का तीव्र
विरोध हुआ। फलस्वरूप कांग्रेस ने अपने जयपुर अधिवेशन में भाषायी आधार पर राज्यों के
पुनर्गठन के मामले पर विचार करने के लिए जवाहरलाल नेहरू,
वल्लभ भाई पटेल तथा पट्टाभि सीतारमैया की एक समिति (जे.बी.पी. समिति)
गठित की।
·
समिति ने 1 अप्रैल,
1949 को प्रस्तुत की गई अपनी रिपोर्ट में भाषायी आधार पर राज्यों के
पुनर्गठन की माँग को अस्वीकार कर दिया।
·
रिपोर्ट में यह भी कहा गया
कि लोकतान्त्रिक देश होने के कारण व्यापक जनभावना का आदर करते हुए इस माँग को स्वीकार
कर लेना चाहिए।
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समिति की रिपोर्ट के प्रकाशन
के बाद मद्रास राज्य में रहने वाले तेलुगू भाषियों द्वारा आन्दोलन प्रारम्भ कर दिया
गया।
·
आन्दोलन का नेतृत्व करने वाले
पोटी श्री रामुल्लू आमरण अनशन पर बैठ गये और 56 दिन के लगातार आमरण अनशन के बाद 15
दिसम्बर,
1952 को उनकी मृत्यु गयी। उनकी मृत्यु के बाद आन्दोलन तीव्र हो गया।
·
19 दिसम्बर,
1952 को
तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने तेलुगू भाषियों के लिए पृथक आन्ध्र प्रदेश
के गठन की घोषणा कर दी।
·
अक्टूबर,
1953 को आन्ध्र प्रदेश राज्य का हो गया,
जो भारत में भाषा के आधार पर गठित भारत का पहला राज्य था।
राज्य पुनर्गठन आयोग:-
·
आंध्र प्रदेश 1अक्टूबर,
1953 को अस्तित्व में आया जो कि भाषा (तेलुगू) के आधार पर गठित होने
वाला भारत का प्रथम राज्य था।
·
इसके बाद भारत के अन्य भाषा-भाषी
क्षेत्रों में इस संबंध में मांग बढ़ने लगी। कालान्तर में जनभावना के उबाल को देखते
हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एस.के. दर की अध्यक्षता में एक आयोग गठित
किया गया। आयोग का कार्य भाषा के आधार पर राज्यों की मांग के औचित्य का निर्धारण करना
था।
·
आयोग ने भाषा के आधार पर राज्यों
के गठन की मांग का विरोध किया तथापि प्रशासनिक सुविधा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन
का समर्थन किया।
·
जब आंध्र प्रदेश का शुद्ध
रूप से भाषा के आधार पर गठन हुआ, तो दर कमीशन के सुझावों
का कोई मूल्य न रहा।
·
22 दिसम्बर,
1953 को न्यायमूर्ति फजल अली की अध्यक्षता में राज्य पुनर्गठन आयोग की
नियुक्ति की गई। आयोग के अन्य सदस्य थे-के.एम. पनिक्कर तथा हृदय नाथ कुंजरू आयोग ने
30 सितम्बर, 1955 को प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में निम्नलिखित सिफारिशे
की-
a.
केवल भाषा और संस्कृति के
आधार पर राज्यों का पुनर्गठन नहीं किया जाना चाहिए।
b.
राज्यों के पुनर्गठन में राष्ट्रीय
सुरक्षा,
वित्तीय एवं प्रशासनिक आवश्यकताओं, पंचवर्षीय योजनाओं
की सफलताओं को भी ध्यान में रखा जाए ।
c.
भाग
'क', 'ख', 'ग', 'घ'
राज्यों के वर्गीकरण को समाप्त करके भारतीय संघ को 16 राज्यों और 3 संघ
राज्यक्षेत्रों में विभाजित कर दिया जाए।
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भारत सरकार ने आयोग की सिफारिशों
को संशोधनों के साथ राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 में स्वीकार किया।
·
इस अधिनियम के अन्तर्गत भारत
को 14 राज्य और 6 संघ राज्यक्षेत्रों में विभाजित कर दिया गया।
·
चौदह राज्य थे आंध्र प्रदेश,
असम, बिहार, बम्बई,
जम्मू-कश्मीर, केरल, मध्य
प्रदेश, मद्रास, मैसूर, उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान,
उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल पांच संघ राज्य क्षेत्र थे दिल्ली,
हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा
एवं अंडमान निकोबार द्वीप समूह ।
·
1956 में फ्रांस की सरकार के साथ हस्तांतरण संधि
पर हस्ताक्षर करके चन्द्रनगर, माहे, यनम और करैकल जो फ्रांसीसी उपनिवेश थे, को अर्जित कर
छठे संघ राज्य क्षेत्र 'पांडिचेरी' का गठन
किया गया।
·
भारत सरकार द्वारा 1961 में
सैनिक हस्तक्षेप करके गोवा, दमन तथा दीव को जीतकर भारत
में मिला लिया गया और उसे सातवां संघ राज्य क्षेत्र बनाया गया।
नए राज्यों के निर्माण की प्रक्रिया:-
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संविधान के अनुच्छेद 3 के
अनुसार संसद को यह अधिकार प्राप्त है कि यह राज्यों, जिसमें
संघ राज्य क्षेत्र भी सम्मिलित है, के क्षेत्रों को मिलाकर नए
राज्यों का निर्माण कर सकती है।
·
संसद सामान्य बहुमत अथवा सामान्य
संवैधानिक प्रक्रिया द्वारा नए राज्य का निर्माण, सीमा
परिवर्तन या नाम बदल सकती है, लेकिन इससे पूर्व नए राज्य के निर्माण
से संबंधित विधेयक राष्ट्रपति द्वारा अनुमति प्राप्त होना चाहिए।
·
राष्ट्रपति सम्बन्धित राज्यों
को विधेयक विचारार्थं भिजवाता है। राज्य का विधानमण्डल विधेयक पर विचार-विमर्श करके
अपने सुझावों सहित विधेयक को निर्धारित अवधि में वापस कर देता है। सुझावों को मानना
संसद के लिए आवश्यक नहीं है।
·
राष्ट्रपति द्वारा विचार-विमर्श
की अवधि को बढ़ाया जा सकता है। लेकिन, यदि राज्य
इस विधेयक को निर्धारित अवधि में प्रेषित नहीं करता है तो राष्ट्रपति विधेयक को संसद
में ऐसे ही प्रस्तुत करवा सकता है।
राज्य पुनर्गठन आयोग द्वारा पुनर्गठित
राज्य:
a. असम
सीमा परिवर्तन अधिनियम, 1951 के द्वारा भारत के राज्य
क्षेत्र से एवं भूटान को सौंपकर असम की सीमा में परिवर्तन किया गया।
b. आंध्र
राज्य अधिनियम, 1953 के द्वारा संविधान के प्रारम्भ के
समय विद्यमान मद्रास राज्य से कुछ राज्यक्षेत्र निकाल कर आंध्र प्रदेश नामक नया राज्य
बनाया गया।
c. हिमाचल
प्रदेश और बिलासपुर (नया राज्य) अधिनियम, 1954 से हिमाचल
प्रदेश और बिलासपुर, इन दो भागों का विलय कर एक राज्य अर्थात्
हिमाचल प्रदेश बनाया गया।
d. बिहार
और पश्चिमी बंगाल अधिनियम, 1956 द्वारा कुछ राज्य क्षेत्र
बिहार से पश्चिमी बंगाल को अंतरित किए गए।
e. राज्य
पुनर्गठन अधिनियम, 1956 से भारत के विभिन्न राज्यों
की सीमाओं में स्थानीय और भाषाई मांगों को पूरा करने के लिए परिवर्तन किया गया।
f.
राजस्थान और मध्य प्रदेश अधिनियम,
1959 द्वारा राजस्थान राज्य से कुछ राज्य क्षेत्र मध्य प्रदेश को अंतरित
किए गए।
g. आंध्र
प्रदेश और मद्रास (सीमा परिवर्तन) अधिनियम 1959 द्वारा आंध्र प्रदेश और मद्रास राज्यों
की सीमाओं में परिवर्तन किए गए।
h. बंबई
पुनर्गठन अधिनियम, 1960 द्वारा बंबई राज्य को
विभाजित करके गुजरात को नया राज्य बनाया गया और बंबई के बचे हुए राज्य को महाराष्ट्र
नाम दिया गया।
i.
अर्जित राज्यक्षेत्र अधिनियम,
1960 से भारत और पाकिस्तान के बीच 1958 1959 में किए गए समझौते द्वारा
अर्जित कुछ राज्यक्षेत्रों का असम, पंजाब और पश्चिमी बंगाल राज्यों
में विलय
j.
अर्जित राज्यक्षेत्र अधिनियम,
1960 से भारत और पाकिस्तान के बीच 1958 1959 में किए गए समझौते द्वारा
अर्जित कुछ राज्यक्षेत्रों का असम, पंजाब और पश्चिमी बंगाल राज्यों
में विलय के लिए उपबंध किया गया।
k. नागालैंड
राज्य अधिनियम, 1962 के द्वारा नागालैंड राज्य की रचना
की गई, जिसमें "नागा पहाड़ी और त्युएनसांग क्षेत्र"
का राज्य क्षेत्र समाविष्ट किया गया।
l.
पंजाब पुनर्गठन अधिनियम,
1966 के द्वारा 1 नवम्बर, 1966 से पंजाब राज्य
को पंजाब और हरियाणा राज्यों में और चंडीगढ़ को संघ राज्यक्षेत्रों में बांटा गया।
m. आंध्र
प्रदेश और मैसूर अधिनियम, 1968 (राज्य क्षेत्र अंतरण)।
13. बिहार और उत्तर प्रदेश (सीमा परिवर्तन) अधिनियम, 19681
n. असम
पुनर्गठन अधिनियम 1969 द्वारा असम राज्य के भीतर मेघालय नाम का स्वशासी उपराज्य बनाया
गया।
o. हिमाचल
प्रदेश राज्य अधिनियम, 1970 के द्वारा हिमाचल प्रदेश
के संघ राज्य क्षेत्र को राज्य का दर्जा प्रदान किया गया।
p. पूर्वोत्तर
क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम, 1971 द्वारा मणिपुर,
त्रिपुरा और मेघालय को राज्यों के प्रवर्ग में सम्मिलित किया गया और
मिजोरम तथा अरुणाचल प्रदेश को संघ राज्यक्षेत्र में सम्मिलित किया गया।
q. हरियाणा
और उत्तर प्रदेश (सीमा परिवर्तन) अधिनियम, 1979 ।
r.
मिजोरम राज्य अधिनियम,
1986 द्वारा मिजोरम को राज्य का दर्जा दिया गया।
s. अरुणाचल
प्रदेश राज्य अधिनियम, 1986।
t.
गोवा,
दमन और दीव पुनर्गठन अधिनियम, 1987 ।
u. मध्य
प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2000 द्वारा नया छत्तीसगढ़
राज्य बना।
v. उत्तर
प्रदेश पुनर्गठन अधिनिमय 2000 द्वारा उत्तरांचल राज्य बना।
w. बिहार
पुनर्गठन अधिनियम, 2000 द्वारा झारखंड राज्य बना।
क्षेत्रीय परिषदें:-
·
सर्वप्रथम पण्डित जवाहर लाल
नेहरू ने राज्य पुनर्गठन अधिनियम पर संसद में विचारण के दौरान भारत को चार या पांच
बड़े क्षेत्रों में विभाजित करने तथा प्रत्येक क्षेत्र में सामूहिक विचार की आदत विकसित
करने के लिए सलाहकारी परिषदों को गठित करने का सुझाव दिया।
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राज्य पुनर्गठन अधिनियम,
1956 की धारा 15 में इस संबंध में प्रावधान किया गया।
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वर्तमान में इस प्रकार की
पांच परिषद् कार्यरत हैं-
I.
उत्तर क्षेत्रीय परिषद् जम्मू-कश्मीर,
हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश,
राजस्थान, चण्डीगढ़, दिल्ली।
II.
मध्य क्षेत्रीय परिषद्-उत्तर
प्रदेश,
मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़
III.
पूर्वी क्षेत्रीय परिषद्-बिहार,
पश्चिम बंगाल, उड़ीसा एवं झारखंड
IV.
पश्चिमी क्षेत्रीय परिषद्-गुजरात,
महाराष्ट्र, गोवा, दमन एवं
दीव तथा दादर एवं नगर हवेली।
V.
दक्षिणी क्षेत्रीय परिषद्
—–आन्ध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, पांडिचेरी ।
·
पाँच क्षेत्रीय परिषदों के
अतिरिक्त एक पूर्वोत्तर परिषद भी है, जो पूर्वोत्तर
परिषद् अधिनियम, 1971 के प्रावधानों के अनुसार बनायी गई है। इसके
अन्तर्गत असीम, मेघालय, मणिपुर,
नागालैंड, त्रिपुरा, अरुणाचल
प्रदेश और मिजोरम की सम्मिलित समस्याओं पर विचार किया जाता है।
·
इसके अतिरिक्त 2002 को सिक्किम
राज्य को भी इस परिषद् में सम्मिलित कर लिया गया है।
क्षेत्रीय परिषदों का गठन:-
·
भारत का राष्ट्रपति इन क्षेत्रीय
परिषदों का गठन करता है तथा इनमें निम्नलिखित सदस्य होते हैं-
i.
भारत सरकार का गृह मंत्री
अथवा संघ सरकार का कोई अन्य मंत्री, जिसे राष्ट्रपति
ने इस निमित्त मनोनीत किया है।
ii.
क्षेत्रीय परिषदों के अधीन
आने वाले राज्यों के मुख्यमंत्री ।
iii.
क्षेत्रीय परिषद से सम्बन्धित
प्रत्येक राज्य की सरकार के दो-दो ऐसे मंत्री, जिन्हें राज्यपाल
इस प्रयोजन हेतु नामजद करें। (4) संघ राज्यक्षेत्रों के संबंध में प्रत्येक के लिए
राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत एक सदस्य।
iv.
योजना आयोग के सदस्य (सलाहकार
के रूप में) ।
v.
क्षेत्रीय परिषदों में शामिल
राज्यों के मुख्य सचिव (सलाहकार के रूप में)।
a.
प्रत्येक परिषद का अध्यक्ष
भारत सरकार का गृहमंत्री या राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत कोई अन्य केन्द्रीय मंत्री होता
है।
b.
सम्बन्धित राज्यों के मुख्यमंत्री
उपाध्यक्ष होते हैं, जो प्रतिवर्ष बदलते रहते हैं।
क्षेत्रीय परिषदों के कार्य:-
A. जनता
में भावात्मक एकता पैदा करना और क्षेत्रवाद एवं भाषावाद के आधार पर उत्पन्न होने वाली
विघटनकारी प्रवृत्तियों को रोकना ।
B. सामाजिक
आर्थिक विषयों से सम्बन्धित केन्द्र और राज्यों के नीति-निर्माण में समानता लाना।
C. देश
के विभिन्न क्षेत्रों में राजनीतिक सन्तुलन की अवस्था निर्धारित करना।
D. अन्तर्राज्यिक
परिवहन,
भाषायी अल्पसंख्यकों की समस्याओं दो या दो से अधिक राज्यों के मध्य सीमा
संबंधी मामले इत्यादि विषयों पर सलाह देना।
E.
क्षेत्रीय परिषदें सलाहकारी
संस्थाएँ हैं। इनकी सिफारिश मानना राज्यों के लिए बाध्यकारी नहीं है।
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