Local Self Government in India/भारत में स्थानीय स्वशासन

 


भारत में स्थानीय स्वशासन/Local Self Government in India

स्थानीय स्वशासन:-

·        लोकतंत्र की सबसे बड़ी समस्या यह है कि सत्ता का विकेंद्रीकरण कैसे किया जाए? दूसरे शब्दों में शासन शक्ति को गांवों, कस्बों व नगरों तक कैसे पहुंचाया जाए? केन्द्रीय सरकार गांवों, कस्बों और नगरों की देखभाल तो अवश्य करें, किंतु जहाँ तक संभव हो इन्हें समाज की आत्मनिर्भर इकाई बनाया जाए। इससे न केवल सत्ता का विकेन्द्रीकरण होगा, बल्कि कार्य भी सुचारु रूप से चलेगा। परिवार कल्याण, शिक्षा, बिजली, पानी, अस्पतालों व पाकों का प्रबंध वे लोग अच्छा कर सकते हैं। जिनका कि इनसे निकट का संबंध होता है। स्थानीय मामलों का प्रबंध करने वाली संस्थाओं को 'स्थानीय स्वशासन' को संज्ञा दी जाती है।

 

स्थानीय स्वशासन की विशेषताएं:-

·        स्थानीय स्वशासन संस्थाओं के माध्यम से जनता अपनी स्थानीय समस्याओं का समाधान स्वयं कर लेती है।

·        लोक शिक्षण की दृष्टि से भी ये संस्थाएं महत्त्वपूर्ण हैं। इन संस्थाओं को चलाने के लिए जनता अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है, जिससे उनकी राजनीतिक चेतना विकसित होती है।

·        केन्द्र या राज्य सरकार द्वारा उन आवश्यकताओं की पूर्ति असंभव है, जिनका कि लोगों के नित्य प्रति के जीवन से संबंध है। इनका प्रबंध तो स्थानीय संस्थाएं ही ज्यादा अच्छा कर सकती हैं।

·        सत्ता व कार्यों का विभाजन हो जाने से केन्द्रीय सरकार व राज्य सरकारों का कार्य भार हल्का हो जाता है।

·        सत्ता का विकेन्द्रीकरण लोकतंत्र के अधिक अनुकूल है। नगरों और ग्रामों में निवास करने वाली जनता 'निर्वाचित संस्थाओं' द्वारा अपना शासन स्वयं कर लेती है।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में स्थानीय स्वशासनः

·        गांधी जी ग्राम राज्य के पक्षधर थे।

·        उनका मानना था कि स्वाधीन भारत की राजनीतिक व्यवस्था में ग्राम ही केंद्र में होना चाहिए और उसे ही व्यवस्था की इकाई माना जाना चाहिए।

·        गांधीजी चाहते थे कि देश की पंचायती राज संस्थाओं को अधिक मजबूत और प्रभावी बनाया जाए।

·        संविधान सभा ने राज्य की नीति के निर्देशक तत्त्वों के अंतर्गत अनुच्छेद 40 में पंचायतों का उल्लेख किया।

·        इस अनुच्छे के अनुसार राज्य ग्राम पंचायतों का संगठन करने के लिए कदम उठाएगा और उनको ऐसी शक्ति और प्राधिकार प्रदान करेगा जो उन्हें स्वायत शासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने योग्य बनाने के लिए आवश्यक हो।

·        1950 में भारत का नया संविधान लागू हुआ। केन्द्र सरकार ने अनेक महत्वपूर्ण मंत्रालयों का गठन किया गया।

·        इनमें से पंचायती राज एव सामुदायिक विकास मंत्रालय को स्थापना उल्लेखनीय थी एस.के. डे. को इस मंत्र का मंत्री बनाया गया।

·        1952 में पंडित नेहरू की पहल पर सामुदायिक विकास कार्यक्रम प्रारंभ किया गया।

·        इस कार्यक्रम का उद्देश्य आर्थिक नियोजन और सामाजिक पुनरुद्धार की राष्ट्रीय योजनाओं के प्रति देश की ग्रामीण जनता में गहरी रुचि पैदा करना था ।

·        यह कार्यक्रम सरकारी तंत्र और ग्रामीण जनता के बीच की दूरी को कम करने के अपने महत्त्वपूर्ण उद्देश्य में विफल रहा।

·        इसकी विफलता का मुख्य कारण था कि यह सामुदायिक विकास कार्यक्रम के अधिकारियों तक सीमित रहा और जनता की सहभागिता को सुनिश्चित नहीं कर पाया।

 

पंचायती राज के संबंध में गठित समितियां:-

बलवंतराय मेहता समिति:-

·        सामुदायिक विकास कार्यक्रम की भोर असफलता के परिणामों की जांच करने के लिए भारत सरकार ने 1957 में श्री बलवंतराय मेहता की अध्यक्षता में एक समिति गठित की। समिति ने सरकार को यह बताया कि-

i.        सामुदायिक विकास कार्यक्रम की बुनियादी त्रुटि यह भी कि इसमें जनता के सहयोग का नितांत अभाव था।

ii.      एक कार्यक्रम को, जिसका कि लोगों के दिन-प्रतिदिन के जीवन से संबंध है, केवल उन लोगों के द्वारा ही कार्यान्वित किया जा सकता है।

iii.    भारत में स्थानीय स्तर पर लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण की परम आवश्यकता है।

iv.   समिति ने त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था का सुझाव दिया ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत, खण्ड स्तर पर पंचायत समिति और जिला स्तर पर जिला परिषद् ।

v.     समिति ने यह सुझाव भी दिया कि लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण की निम्न इकाई प्रखण्ड, को समिति स्तर का माना जाए।

·        नोट- पंचायती राज व्यवस्था लागू करने वाला प्रथम राज्य राजस्थान था अप्रैल, 1958 में मेहता समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया गया। सर्वप्रथम राजस्थान विधानसभा ने सितम्बर, 1959 में पंचायती राज अधिनियम पारित किया। इस अधिनियम के प्रावधानों के आधार पर 2 अक्टूबर. 1959 को राजस्थान के नागौर जिले में पंचायती राज व्यवस्था का पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा उद्घाटन किया गया।

·        भारत में पंचायतों का ढांचा अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है। और इनका सृजन राज्य के कानूनों द्वारा किया जाता है।

·        बलवंतराय मेहता समिति की सिफारिशों के अनुसार स्थानीय शासन की इस त्रिस्तरीय योजना में पंचायत समिति सबसे महत्वपूर्ण संस्था है। मुख्य कार्य पंचायत समिति को ही सौंपे गए हैं।

·        कुछ राज्यों में पंचायत समिति को जनपद पंचायत भी कहा जाता है।

अशोक मेहता का पंचायती राज प्रतिमान

·        पंचायती राज की कार्यप्रणाली के अध्ययन करने एवं प्रचलित ढांचे में आवश्यक परिवर्तन सुझाने हेतु जनता पार्टी की सरकार ने 12 सितम्बर, 1977 को श्री अशोक मेहता की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया। समिति ने लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण का एक ऐसा प्रतिमान प्रस्तुत किया. जिसमें पंचायती राज के द्विस्तरीय स्वरूप की कल्पना की गई। अशोक मेहता के पंचायती राज प्रतिमान की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

a.       जिला परिषद् को मजबूत बनाया जाए तथा ग्राम पंचायत की जगह मण्डल पंचायत की स्थापना की जाए।

b.      जिले को विकेन्द्रीयकरण की धुरी माना जाए तथा जिला परिषद् को समस्त विकास कार्यों का केन्द्र बनाया जाए।

c.       जिला परिषद् के बाद मण्डल पंचायतों को विकास कार्यक्रमों का आधारभूत संगठन बनाया जाए। मण्डल पंचायतों का गठन कई गांवों से मिलकर होगा। ये मण्डल पंचायतें 15,000 या 20,000 की जनसंख्या पर गठित की जाएंगी।

d.      पंचायती राज संस्थाएं समिति प्रणाली के आधार पर अपने कार्यों का सम्पादन करें।

e.       जिलाधीश सहित जिला स्तर के सभी अधिकारी अन्ततः जिला परिषद् के मातहत रखे जाएं।

f.        न्याय पंचायतों को विकास पंचायतों के साथ नहीं मिलाया जाए।

नोट-1980 में जनता पार्टी की सरकार के पतन के कारण अशोक मेहता समिति को कार्यान्वित नहीं किया जा सका।

पंचायती राज का नया प्रतिमान

73वां संविधान संशोधन अधिनियम:

·        अनुच्छेद 40 में "राज्य ग्राम पंचायतों का संगठन करने के लिए कदम उठाएगा और उनको ऐसी शक्तियां और प्राधिकार प्रदान करेगा जो उन्हें स्वायत्त शासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने के योग्य बनाने के लिए आवश्यक हों।"

·        संविधान में इस अनुच्छेद के होते हुए भी पूरे देश में पंचायती राज संस्थाओं का संतोषजनक विकास नहीं हो पाया।

·        1992 में संसद द्वारा पारित 73वें संवैधानिक संशोधन के रूप में सामने आई तथा 73वां संशोधन अधिनियम 24 अप्रैल, 1993 को लागू किया गया।

·        इस संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान में एक नया भाग भाग 9' जोड़ा गया है।

·        इस अधिनियम से पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक मान्यता और संरक्षण मिल गया है।

·        इस अधिनियम की महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि पंचायतों को अधिक समय के लिए स्थगित अथवा निरस्त नहीं किया जा सकेगा6 महीने के भीतर चुनाव कराना अनिवार्य होगा।

·        महिलाओं, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को सभी पंचायतों में आरक्षण प्राप्त होगा।

·        इस अधिनियम द्वारा पंचायतों का कार्यकाल 5 वर्ष निश्चित किया गया है।

 

पंचायती राज का त्रिस्तरीय ढांचा:-

·        73वें संशोधन अधिनियम ने पंचायती राज का त्रिस्तरीय ढांचा ग्राम पंचायत, पंचायत समिति तथा जिला परिषद् प्रस्तुत किया है।

·        अधिनियम के अनुसार बीस लाख से कम आबादी वाले राज्यों में द्वि-स्तरीय ढांचा होगा। वहां गांव और जिले के बीच की कड़ी अर्थात् पंचायत समिति बनाने की जरूरत नहीं समझी गई है।

·        त्रिस्तरीय ढ़ांचा का विवरण इस प्रकार है:-

 

ग्राम पंचायत:-

·        पंचायती राज संस्था की सबसे छोटी इकाई 'ग्राम पंचायत' कहलाती है।

·        ग्राम पंचायत का प्रशासन ग्राम सभा की देख रेख में सम्पन्न होता है।

·        18 वर्ष की आयु का गाँव का प्रत्येक नागरिक ग्रामसभा का सदस्य माना जाता है।

·        जो पागल है, या न्यायालय द्वारा अयोग्य ठहराये गये हैं वे ग्राम सभा के सदस्य नहीं हो सकते।

·        ग्राम सभा "ग्राम प्रधान" का चुना करती है। ग्राम प्रधान का कार्यकाल 5 वर्ष है।

·        ग्राम सभा का उपप्रधान, ग्राम पंचायत द्वारा चुना जाता है।

·        ग्राम सभा की वर्ष में दो बैठके होती हैं।

·        ग्राम पंचायते ग्रामीण स्तर पर विकास सम्बंधी कार्यक्रम निर्धारित करती हैं।

·        ग्राम पंचायते ग्राम की स्वास्थ्य रक्षा, बिजली प्रबन्ध, पुलों का निर्माण कुओं तथा तालाबों की देखभाल, स्कूलों तथा सड़कों का प्रबन्ध इत्यादि करती है।

·        ग्राम पंचायते भूमि सुधार कानून लागू वनोद्योग, लघु तथा कूटीर उद्योगो का विकास, तकनीकी तथा व्यावसायिक शिक्षा, सार्वजनिक वितरण प्रणाली इत्यादि करवाती है।

·        ग्राम पंचायत की अवधि पाँच वर्ष होती है। इन्हें पाँच वर्ष से पूर्व भी विघटित किया जा सकती है।

·        विघटन होने पर विघटन की तारीख से 6 माह के भीतर निर्वाचन होने चाहिये।

·        ग्राम पंचायत की महिने में एक बैठक अवश्य होती है। बैठक की अध्यक्षता सरपंच करता है।

·        ग्राम पंचायतों के सदस्यों की संख्या 5 से 31 के बीच होती है।

·        ग्राम पंचायत की वित्तीय संसाधनों का 73वें संशाधन द्वारा व्यापक बनाया गया।

·        इसमे वह मकान तथा जमीन पर कर, माल व पशुओं की बिक्री पर कर तथा सार्वजनिक भवनों के उपयोग से प्राप्त किराया, भूराजस्व का कुछ भाग जुर्माने तथा दान, उपहार इत्यादि उसकी आय के प्रमुख स्रोत है।

पंचायत समिति:-

·        ग्राम स्तर से ऊपर खण्ड तथा क्षेत्रीय स्तर आता है। यह पंचायती राज का मध्यवर्ती स्तर है।

·        खण्ड में जितनी भी ग्राम पंचायते होती हैं, उनके सरपंच पंचायत समिति के सदस्य होते हैं। इसमें 20 से 60 गाँव होते हैं।

·        पंचायत समिति के क्षेत्र से निर्वाचित लोकसभा तथा राज्य विधानसभा के सदस्यों को भी इसका सह सदस्य बनाया जाता है।

·        इनका भी कार्यकाल 5 वर्ष है तथा इससे पूर्व भंग होने की स्थिति में 6 महीनों के अन्दर चुनाव होने आवश्यक है।

·        इसमें अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, महिलाओं के प्रतिनिधि सहकारी संस्थाओं के प्रतिनिधि, ब्लाकों के क्षेत्र में स्थित छोटी नगरपालिकाओं इत्यादि के प्रतिनिधि भी शामिल होते हैं।

·        पंचायत समिति अपना अध्यक्ष स्वयं चुनती है। उसका मुख्य प्रशासनिक अधिकारी, खण्ड विकास अधिकारी कहलाता है।

पंचायत समिति का मुख्य कार्य:-

·        इसके अधिकार क्षेत्र में आने वाली पंचायतों के कार्य में सामंजस्य स्थापित करना तथा इसके अधीन आने वाले क्षेत्रों के विकास के लिये योजना बनाना।

·        सड़कों का निर्माण, उन्नत किस्म के बीजों का वितरण तथा खादो का प्रबन्ध, प्रसूति केन्द्र तथा प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थापना, शौचालयों तथा पक्की नालियों का निर्माण, किसान गोष्ठियों की स्थापना, कृषि ऋण की व्यवस्था, सहकारी समितियों की स्थापना, कुटीर, ग्रामीण व लघु उद्योगों का विकास तथा अनुसूचित जाति, जनजाति तथा पिछड़े वर्गों के लिये छात्रावासों का प्रबन्ध करना इत्यादि।

·        पंचायत समिति की आय के प्रमुख साधनों में राज्य अथवा जिला परिषद् द्वारा प्रदान किये गए अनुदान व ऋण है।

·        पंचायत समितियों को भूराजस्व का एक निश्चित प्रतिशत प्राप्त होता है।

·        पंचायत समितियाँ स्वयं बहुत से कर भी वसूल करती है।

 

जिला परिषद्:-

·        जिला परिषद पंचायती राज की तीन स्तरीय व्यवस्था का सबसे ऊपर का स्तर है।

·        यह ग्रामीण संस्थाओं तथा राज्य सरकार के मध्य कड़ी का कार्य करती हैं।

·        जिले की सभी पंचायत समितियों के प्रधान जिला परिषद के सदस्य होते हैं।

·        सम्बद्ध जिले से निर्वाचित लोक सभा तथा राज्य विधान सभा और विधान परिषद के सभी सदस्य जिला परिषद के सदस्य माने जाते हैं।

·        अनुसूचित जातियों, जनजातियों तथा महिलाओं के लिये आरक्षित होते हैं।

·        जिला परिषद का कार्यकाल 5 वर्ष की अवधि का होता है।

·        जिला परिषद् का एक सभापति होता है जिसका चुनाव परिषद के सदस्य करते हैं।

कार्य-

·        जिला परिषद जिले की सभी ग्राम पंचायतों व पंचायत समितियों के कार्यों में तालमेल कायम करती है।

·        यह पंचायत समितियों के बजट का निरीक्षण करती है।

·        राज्य सरकार से प्राप्त अनुदान को पंचायत में वितरित करती है।

·        यह कृषि विकास, आर्थिक व सामाजिक विकास भूमि व ग्राम नियोजन, जन स्वास्थ्य, साक्षरता इत्यादि से संबंधित कार्य को सुनियोजित करती है।

·        आदिवासीय तथा पर्वतीय क्षेत्रों के लिये विकास योजनाएं लागू करती है।

·        जिला परिषद के पास आ के कोई स्वतंत्र साधन नहीं है और यह धन के लिए पूर्णता राज्य सरकार द्वारा दिये जाने वाले अनुदान पर तथा भूमि कर पर लगाये जाने वाले शुल्क स्टैम्प ड्यूटी इत्यादि पर निर्भर है।

 

नगरीय स्थानीय सरकार:-

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:-

·        प्राचीन काल से ही भारत में नगर प्रशासन का अस्तित्व रहा है।

·        मौर्यकालीन पुस्तक 'इंडिका' में मेगास्थनीज ने मौयों द्वारा पाटलिपुत्र में नगर प्रशासन की विस्तृत प्रणाली विकसित करने का उल्लेख किया है।

·        मध्यकाल में भी नगर प्रशासन के लिए अधिकारियों की नियुक्ति की जाती थी, जो नगर में कानून व्यवस्था तथा अन्य गतिविधियों पर नजर रखते थे।

·        अंग्रेजों के आगमन के पश्चात् शहरी क्षेत्रों के लिए स्थानीय स्वायत्त शासन के लिए वास्तविक प्रयास शुरू हुआ। सर्वप्रथम अंग्रेजों ने मद्रास शहर के लिए नगर निगम नामक एक स्थानीय संस्था की स्थापना की।

·        1793 के चार्टर एक्ट द्वारा मद्रास, कलकत्ता तथा बम्बई में अधिकारिक रूप से नगर निगम की स्थापना की गई।

·        भारत में नगर प्रशासन का दूसरा चरण 1882 में लॉर्ड रिपन के प्रस्ताव से आरंभ हुआ।

·        1919 के भारत सरकार अधिनियम के अंतर्गत एक उपबंध स्थानीय स्वायत्त सरकार के प्रसार से संबंधित था।

·        स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत नगर प्रशासन के संबंध में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिलता है।

 नगरीय संस्थाओं की नवीन प्रणाली:-

 

74वां संविधान संशोधन अधिनियम:-

·        1 जून, 1993 से प्रभावी संविधान के 74वें संशोधन अधिनियम ने नगरीय क्षेत्र में स्थानीय स्वायत्त शासन की इकाइयों को संवैधानिक आधार प्रदान किया है।

·        74वें संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान में एक नया भाग " भाग 9 (क)" जोड़ा गया है।

·        इस संशोधन अधिनियम द्वारा नगरीय क्षेत्रों के लिए संस्थाओं की व्यवस्था की गई है-

·        1. नगर निगम, 2. नगर पालिकाएं, 3. नगर पंचायत ।।

 

नगर निगम:-

·        नगर निगम का प्रशासन एक परिषद् करती है जिसे सामान्य परिषद कहा जाता है।

·        इसके सदस्य 5 वर्षों के लिये चुने जाते हैं।

·        परिषद के सदस्य सभासद कहलाते हैं। ये कुछ वरिष्ठ सदस्यों का चुनाव करते हैं।

·        74वें संशोधन के अनुसार ये वरिष्ठ सदस्य राज्य सरकार द्वारा नामांकित किये जाते हैं।

·        अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिये उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण का प्रावधान है।

·        1/3 सीट महिलाओं हेतु आरक्षित है।

·        नगरीय संस्थाओं की अवधि 5 वर्ष होगी। इससे पूर्व भंग होने की दशा में नगर निगम के लिए 6 महीनों के अन्दर चुनाव होंगे।

·        सामान्य परिषद अपने कार्यों का संचालन स्थायी समितियों के माध्यम से करती है।

 

ये समितियाँ निम्न है-

i.        करारोपण और वित्त

ii.      इंजीनियरिंग व निर्माण कार्य

iii.    बजट तैयार करना

iv.   स्वास्थ्य और शिक्षा

·        नगर निगम का अध्यक्ष महापौर कहलाता है।

·        नगर निगम के सदस्य एक उपमहापौर का चुनाव भी करते हैं। इनका कार्यकाल आमतौर पर एक वर्ष का होता है।

·        वे पुनः इन पदों के लिये चुने जा सकते हैं।

·        नगर निगम का मुख्य प्रशासनिक अधिकारी निगम आयुक्त कहलाता है। इसकी नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की जाती है। इसकी नियुक्ति 5 वर्ष के लिये. होती है।

·        निगम आयुक्त का वेतन नगर निगम कोष से दिया जाता है।

·        नगर निगम के अधिकतम अधिकारियों की नियुक्ति "सामान्य परिषद" द्वारा की जाती है।

कार्य क्षेत्र-

·        नगर निगम अपनी आ के लिये बहुत से कर लगाता है जैसे सम्पत्ति कर, गाडियों व पशुओं पर कर सिनेमा कर, मनोरंजन कर, समाचार पत्रों में छपने वाले विज्ञापनों से भिन्न विज्ञापनों पर कर, जायदाद की बिक्री तथा हस्तांतरण पर कर इत्यादि।

·        नगर निगम  शिक्षा शुल्क, बिजली की खपत पर शुल्क मार्ग कर, चुन्गी कर नौकाओं पर शुल्क इत्यादि वसूल करता है।

·        वह राज्य सरकार द्वारा अनुदान भी प्राप्त करता है।

 

नगरपालिकाएँ:-

·        नगरपालिका के अधिकांश सदस्य आम मतदाताओं द्वारा प्रत्यक्ष निर्वाचन से निर्वाचित होंगे।

·        प्रत्येक नगर पालिका में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में स्थानों का आरक्षण रहेगा।

·        प्रत्यक्ष निर्वाचन से भरे जाने वाले स्थानों में एक-तिहाई स्थान महिलाओं के लिये आरक्षित होंगे।

·        नगरपालिका की अवधि 5 वर्ष होगी। समय से पूर्व विघटित होने पर उस नगरपालिका को विघटन से पूर्व सुनवाई का अवसर दिया जाए।

·        5 वर्ष की अवधि के पूर्ण होने से पूर्व नगरपालिका के लिए चुनाव करवा लिये जाऐंगे।

·        यह समय से पूर्व विघटित हो जाती है तो विघटन की तारीख से 6 माह के मध्य शेष अवधि के लिये चुनाव कराना आवश्यक होगा।

·        जो व्यक्ति राज्य विधान सभा का सदस्य बनने के योग्य है वह नगरपालिका का सदस्य बनने के भी योग्य होगा।

·        नगरपालिका के सदस्य बनने की आयु 21 वर्ष है जबकि विधान सभा के लिये 25 वर्ष है।

कार्य-

·        स्वास्थ्य रक्षा के लिये सार्वजनिक शौचालयो का निर्माण, सार्वजनिक अस्पतालों, प्राथमिक चिकित्सा केन्द्रो तथा मातृ व शिशु कल्याण केन्द्रों की स्थापना, जन्म-मृत्यु दर के आकड़ों का ब्यौरा रखना प्राथमिक माध्यमिक विद्यालयों तथा सैकेन्डरी स्कूलों की स्थापना करना।

·        सामाजिक-आर्थिक विकास की योजनायें तैयार करना, पर्यावरण सुरक्षा समाज के कमजोर व विकलांग लोगों के हितों की रक्षा तथा गरीबी उन्मूलन के कार्यक्रमों को लागू करना।

·        नगर पालिका की आय के प्रमुख साधन जैसे भवन कर, चुंगी, पशुओं पर कर, विज्ञापन कर, जल तथा विद्युत उपयोग पर कर इत्यादि।

·        नगरपालिकाओं को राज्य सरकार द्वारा अनुदान भी दिया जाता है।

नोट-राज्य वित्त आयोग: 74वें संशोधन अधिनियम द्वारा स्थापित अनुच्छेद 243 (झ) में यह व्यवस्था है कि प्रत्येक राज्य एक वित्त आयोग की स्थापना करेगा। इस प्रकार स्थापित किया गया वित्त आयोग नगरपालिकाओं की वित्तीय स्थिति का पुनर्विलोकन करेगा और निम्नलिखित के संबंध में सिफारिशें करेगा-

a.     राज्य सरकार को विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होने वाले धन का राज्य और नगरपालिकाओं के मध्य उचित वितरण के संबंध में।

b.     वे कौन-से कर, शुल्क, पथकर और फीस हैं, जो नगरपालिकाओं को दिए जा सकते हैं?

c.      नगरपालिकाओं को दिया जाने वाला सहायता अनुदान ।

d.     नगरपालिकाओं की वित्तीय स्थिति में सुधार के लिए आवश्यक सुझाव।

e.     ऐसा कोई अन्य विषय, जो राज्यपाल द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाए।

·        राज्य निर्वाचन आयोग74वें संशोधन अधिनियम द्वारा स्थापित अनुच्छेद 243 (ट) में यह व्यवस्था है कि राज्य सरकार द्वारा एक राज्य निर्वाचन आयोग नियुक्त किया जाएगा, जिसे नगरपालिकाओं के चुनाव हेतु निम्न शक्तियाँ होंगी-

f.       निर्वाचन नामावली तैयार करना।

g.     नगरपालिकाओं के निर्वाचनों का संचालन, अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण करने की शक्ति ।

·        74वें संशोधन अधिनियम द्वारा यह भी व्यवस्था की गई है कि अनुच्छेद 243 (य) (क) के अधीन निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन या स्थानों के आवंटन से संबंधित किसी विधि की विधिमान्यता की परीक्षा न्यायालय नहीं कर सकेंगे। नगरपालिका का निर्वाचन निर्वाचन अर्जी के माध्यम से ही प्रश्नगत किया जा सकेगा। निर्वाचन अर्जी ऐसे प्राधिकारी को और ऐसी रीति से प्रस्तुत की जाएगी जो राज्य विधानमंडल द्वारा बनाई गई विधि के द्वारा विहित की जाए।

·        जिला और महानगर योजना समितिः 74वें संशोधन अधिनियम द्वारा यह व्यवस्था की गई है कि प्रत्येक राज्य में जिला स्तर पर जिला योजना समिति और राज्य के प्रत्येक महानगर में एक महानगर योजना समिति गठित की जाएगी। इन समितियों के गठन के संबंध में यह व्यवस्था है कि-

h.     जिला योजना समिति में कम-से-कम 4/5 सदस्य जिला स्तर की पंचायत और जिले की नगरपालिकाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा अपने में से निर्वाचित किए जाएंगे। इनका अनुपात जिले में नगर और ग्राम की जनसंख्या के अनुपात में होगा।

i.        महानगर योजना समिति में कम से कम दो-तिहाई सदस्य नगरपालिका के सदस्यों और नगरपालिका के क्षेत्र में आने वाली पंचायतों के अध्यक्षों द्वारा अपने में से निर्वाचित किए जाएंगे। महानगर योजना समिति में स्थानों का विभाजन उस क्षेत्र में नगरपालिकाओं और पंचायतों की जनसंख्या के अनुपात में होगा।

·        जिला योजना समिति सम्पूर्ण जिले के विकास की योजनाएं तैयार करेगी। महानगर योजना समिति सम्पूर्ण महानगर क्षेत्र के विकास की योजना तैयार करेगी। इस प्रकार तैयार की गई विकासात्मक योजनाएं राज्य सरकार को प्रस्तुत की जाएंगी।

·        अनुच्छेद 280 के अधीन राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त वित्त आयोग को जो कर्त्तव्य सौंपे गए हैं, उनमें 74वें संशोधन अधिनियम द्वारा एक कर्त्तव्य और जोड़ा गया है। राज्य की नगरपालिकाओं के साधन स्रोतों की अनुपूर्ति हेतु राज्य की संचित निधि में वृद्धि करने के लिए क्या उपाय किए जाएं? इस पर भी राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त वित्त आयोग अपनी सिफारिश देगा।

नगर पंचायत:-

·        74वें संशोधन अधिनियम की व्यवस्थाओं के अनुसार उन क्षेत्रों में नगर पंचायतें कायम की जा रही हैं, जो बहुत छोटे हैं तथा जो न तो एकदम गांव जैसे हैं और न बिल्कुल शहरी क्षेत्र जैसे।

·        नगर पंचायत के अधिकांश सदस्य आम मतदाताओं द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं। नगर पंचायत के कुछ सदस्यों को राज्य सरकार द्वारा मनोनीत किया जाता है। केवल ऐसे व्यक्ति ही मनोनीत किए जाएंगे, जिन्हें नगर प्रशसन का पर्याप्त ज्ञान या अनुभव हो अथवा वे सांसद और विधायक जिनके निर्वाचन क्षेत्र में सम्बन्धित नगर पंचायत स्थित हो।

·        नगर पंचायत का कार्यकाल पांच वर्ष तय किया गया है। पांच वर्ष से पूर्व ही नगर पंचायत के लिए चुनाव करवा लिए जाएंगे। किसी कारण से यदि नगर पंचायत पांच वर्ष से पूर्व विघटित की जाती है तो विघटन की तारीख से छह माह के भीतर नगर पंचायत की शेष अवधि के लिए चुनाव करवाना अनिवार्य है।

 

नगर पंचायत के प्रमुख कार्य

·        अपने क्षेत्र में सड़कें बनवाना और उनकी मरम्मत करवाना।

·        प्राथमिक चिकित्सा का प्रबन्ध करना।

·        संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए टीके लगवाना ।

·        प्राथमिक विद्यालयों का प्रबन्ध करना।

·        मातृ व शिशु कल्याण केन्द्रों का प्रबन्ध करना।

·        जल एवं विद्युत की व्यवस्था करना।

·        जन्म-मृत्यु आदि का ब्यौरा रखना ।

नोट-नगर पंचायत के आय के साधन वही हैं, जो नगरपालिकाओं के हैं।

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मौलिक कर्त्तव्य

केन्द्रीय कार्यपालिका

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राज्य विधानमंडल

संघ राज्य क्षेत्र, अनुसूचित तथा जनजातीय क्षेत्रों का प्रशासन


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