Harappan Civilization in hindi/हड़प्पा सभ्यता (2500 ई.पू. - 1750 ई.पू.)

 


Harappan Civilization/
हड़प्पा सभ्यता (2500 ई.पू. - 1750 ई.पू.)

·       1921 में हड़प्पा की खुदाई बाबू दयाराम साहनी तथा 1922-23 ई. में डॉ. आर. डी. बनर्जी की देख-रेख में मोहनजोदड़ो (पाकिस्तान) में खनन कार्य शुरू हुआ

·       इस सभ्यता के आरम्भिक अवशेष सिन्धु नदी की घाटी से प्राप्त हुए, अतः इसे “सिन्धु घाटी की सभ्यता" (Indus Valley Civilization) का नाम दिया गया।

·       बाद में देश के अन्य भागों-लोथल (गुजरात), कालीबंगा (राजस्थान), रोपड़ (पंजाब) बनवाली (हरियाणा). आलमगीरपुर (उत्तर प्रदेश) आदि स्थानों से इस सभ्यता के अवशेष मिले तो विद्वानों ने इसे "हड़प्पा सभ्यता" का नाम दिया।

 काल निर्धारण

विद्वान              काल

जॉन मार्शल        3250-2750 ई.पू.

माधीस्वरूप वत्स     3500-2700 ई.पू.

अनेस्ट मैके        2800-2500

मार्टिमर ह्वीलर            2500-1500 ई.पू.

फेयर सर्विस                   2000-1500 ई.पू.

सी.जे. गैड                      2350-1700 ई.पू.

रेडियो कार्बन तिथि ('C-141) के अनुसार हड़प्पा सभ्यता का काल 2350-1750 ई.पू. निर्धारित हुआ है, जो सर्वमान्य है।

नगर योजना:-

·       मोहनजोदड़ो व हड़प्पा इसके प्रमुख नगर थे। नगर मुख्यतः दो भागों में बँटे थे-पश्चिम की ओर ऊँचा दुर्ग था और पूर्व की ओर नगर का निचला हिस्सा था।

·       धौलावीरा और बनावली स्थलों पर दीवार से घिरा एक ही टीला है।

·        नगरों में सड़कें व मकान विधिवत् बनाये गये थे। लोथल एवं सुरकोटदा के दुर्ग और नगर एक ही रक्षा प्राचीर से घिरे हुये थे।

A.   भवनः

·       भवन प्रायः पक्की ईंटों के बने हुए थे।

·       ये सड़क के किनारों पर बने थे तथा प्रवेश  गलियों से होता था।

·        मोहनजोदड़ो में सबसे बड़ा भवन अनाज का गोदाम जो 45.71 मी. लंबा, तथा 15.23 मी. चौड़ा है।

·        हड़प्पा में ऐसे ही मगर इससे छोटे छः कोठार मिले हैं जो 15.23 मी. लम्बे तथा 6.09 मी. चौड़ हैं।

·        खड़िया मिट्टी, जिप्सम (Gypsum) तथा गारे का प्रयोग पलस्तर के लिए किया जाता था।

·        हड़प्पा सभ्यता में कच्ची तथा पक्की दोनों प्रकार को ईंटों का प्रयोग हुआ है। अधिकांशतः ईंटें आयताकार थी तथा इनका अनुपात 4:2 था।

B. विशाल स्नानागारः

·       यह मोहनजोदड़ो का सबसे महत्त्वपूर्ण स्थल है।

·        ईंटों से निर्मित यह स्नानागार 11.88 मी. लम्बा 7.01 मी. चौड़ा तथा 2.43 मी. गहरा है।

·        उत्तर तथा दक्षिण की ओर सीढ़ियाँ हैं व बगल में कपड़े बदलने हेतु कमरे हैं।

·       यह विशाल स्नानागार धर्मानुष्ठान संबंधी स्नान के लिए था।

·       इसमें से पानी के निकास की भी उचित व्यवस्था थी।

C. सड़कें

·       यहां की सड़कें 13 1/2 फुट से 33 फुट तक चौड़ी थी।

·       सभी सड़कें पूर्व से पश्चिम व उत्तर से दक्षिण को जाती हुई एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं।

·       मोहनजोदड़ो की मुख्य सड़क 9.15 मीटर चौड़ी थी. जिसे पुराविदों ने राजपथ कहा है।

·       कालीबंगा में निर्मित सड़कों एवं गलियों को एक समानुपातिक ढंग से बनाया गया था।

D. नालियां

·       गंदे पानी के निकास हेतु भवनों को ऊपर की मंजिलों से पाइपों का प्रयोग किया जाता था।

·       गलियों की छोटी नालियां एक फुट चौड़ी व 2 फुट गहरी थीं। ये नालियां पानी को मुख्य सड़कों के किनारे बनी बड़ी नालियों में ले जाती थीं तथा ये बड़ी नालियां पानी को नगर से बाहर नालों में ले जाती थीं।

·        नालियों को ऊपर से ईंटों से इस प्रकार ढका भी जाता था कि सफाई हेतु इन ईंटों को सरलता से उठाया जा सके।

E.जल वितरणः

·        मोहनजोदड़ो के निवासियों ने जल वितरण का अति उत्तम ढंग अपनाया था।

·       यहां अत्यधिक संख्या में कुएँ पाये गये हैं।

·        कुछ घरों में अपने कुएँ थे तथा कई कुएँ सार्वजनिक थे।

·       कालीबंगा के प्रत्येक घरों में अपने-अपने कुएँ थे।

F. कूड़ेदान:

·        नगरों में सफाई की विशेष व्यवस्था रही होगी यह जगह-जगह पर बने कूड़ेदानों से पता चलता है।

G.बन्दरगाह:

·        इसका साक्ष्य लोथल से मिलता है. इस बन्दरगाह में मिश्र तथा मेसोपोटामिया से जहाज आते थे।

·       बन्दरगाह के उत्तर में 12 मी. चौड़ा एक प्रवेश द्वार निर्मित था, जिससे होकर जहाज आते-जाते थे।

·       इसका ( औसत आकार 214 36 मीटर एवं गहराई 3.3 मीटर है।

 

 सामाजिक जीवन:

·       मोहनजोदड़ों की खुदाई से पता चलता है कि लोग कई वर्गों में विभक्त थे।

·       प्रथम वर्ग में शासकीय श्रेणी के लोग, दूसरे में योद्धा, तीसरे में व्यापारी व चौथे वर्ग में अन्य सामान्य किसान, मजदूर आदि आते थे।

·       ये दूध से बनी वस्तुएं, गेहूं, जौ, मछली, मांस, कछुए आदि खाते थे।

·        स्त्रियां प्रायः घाघरे और अंगरखे का प्रयोग करती थीं।

·        मोहनजोदड़ो से मिले एक दाढ़ी वाले पुरुष के चित्र से स्पष्ट है कि पुरुष दायें कन्धे से नीचे से होकर बाएं कन्धे के ऊपर तक पहुंचने वाले दुपट्टे या शाल का प्रयोग करते थे।

·       कंधी का प्रयोग भी होता था।

·        पुरुष प्रायः गलमुच्छे और दादियां रखते थे।

·       आभूषण का प्रयोग नारी-पुरुष दोनों करते थे।

·       मोहनजोदड़ो से नर्तकी की मूर्ति और अन्य कई स्थानों के बांसुरी, ढोलक आदि के अवशेष मिले

·        वे पासा (Game of Dice) खेलते थे।

·       कुछ मुहरों से उनके शिकार खेलने के प्रमाण भी मिले हैं।

·       यहां की मुहरों की लिपि से ज्ञात होता है कि  वे लोग शिक्षित भी थे।

·       मातृदेवी की पूजा तथा मुहरों पर अंकित चित्र से यह दृष्टिगोचर होता है कि हड़प्पा समाज सम्भवतः मातृसत्तात्मक था।

·       शवों की अन्त्येष्टि के तीन प्रकार थे:

a.     पूर्ण समाधिकरण शव को भूमि में दफना दिया जाता था।।

b.    आशिक समाधिकरण पशु पक्षियों के खाने के बाद शव को दफना दिया जाता था।

c.     दाह संस्कार

आर्थिक जीवन:

कृषि एवं पशुपालनः

·        सैंधव निवासियों के जीवन का मुख्य उद्यम कृषि कर्म था। यहाँ के प्रमुख खाद्यान्न गेहूँ तथा जौ थे।

·       इसके अतिरिक्त लोथल एवं रंगपुर से धान का तथा लोथल, रंगपुर एवं रोजदी से बाजरे का प्रमाण मिलता है।

·       हड़प्पा से मटर एवं तिल की खेती का प्रमाण मिलता है।

·       सम्भवतः सर्वप्रथम यहीं के निवासी ने कपास उगाना शुरू किया। इसलिये यूनानी लोगों ने इस प्रदेश को 'सिंडोन' कहा।

·       इस समय खेती के कार्यों में प्रस्तर एवं कांस्य ध तु के बने औजार प्रयुक्त होते थे।

·       मोहनजोदड़ो एवं बनवाली से मिट्टी के बने हल मिले हैं।

·        कालीबंगा में प्राक् सैन्धव अवस्था के एक हल से जुते हुए खेत का साक्ष्य मिला है।

·        पालतु पशुओं में कूबड़दार वृषभ महत्त्वपूर्ण था।

·       अन्य पालतु पशुओं में बैल, भैंस, कुत्ते, सुअर, भेड बकरी, हिरन, खरगोश आदि थे।

·       ऊँट, हाथी तथा घोड़े के प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मिलते है. किन्तु मोहनजोदड़ो. हड़प्पा कालीबंगन, सुरकोटदा के स्थलों से एक कूबड़दार ऊँट का जीवाश्म मिला है।

·        लोथल, सुरकोरडा, रंगपुर, कालीबंगन आदि स्थलों से घोड़े का प्रमाण मिला है। पक्षियों में मुर्गा, बत्तख, तोता, हंस आदि पाले जाते थे।

 शिल्प तथा उद्योग:

·       मोहनजोदड़ो से सूती कपड़े एवं कालीबंगा के मिट्टी के एक वर्तन पर सूती कपड़े के छाप का प्रमाण मिला है।

·       चाक पर मिट्टी के बर्तन बनाना, खिलौने बनाना, मुद्राओं का निर्माण करना, आभूषण एवं गुड़िया का निर्माण करना आदि कुछ अन्य प्रमुख उद्योग धन्धे थे।

·        धातुओं में सोना, चाँदी, ताँबा, काँसा तथा सीसा का उन्हें ज्ञान था।

·       इस समय तांबे में टिन मिलाकर कांसा तैयार किया जाता था।

·       धातुओं को गलाने, उन्हें पीटने तथा उन पर पानी चढ़ाने की विधि से लोग अच्छी तरह परिचित थे।

·       शंख, सीप, घोंघा, हाथी दांत से भी उपकरणों का निर्माण करना जानते थे।

·        चन्हुदड़ो तथा लोथल में मनका बनाने का कार्य होता था।

·       बालाकोट तथा लोथल का सीप उद्योग विकसित था।

·        कालीबंगा में चूड़ी उद्योग विकसित था।

 व्यापार तथा वाणिज्यः

·       वे आन्तरिक एवं बाह्य दोनों ही व्यापार से परिचित थे, किन्तु व्यापारी मुख्यतः जलीय मार्गों से ही व्यापार करते थे।

·       व्यापर वस्तु -विनिमय द्वारा किया जाता था क्योंकि उस समय सिक्कों का  प्रचलन नहीं था।

·       भार ढोने के लिए बैलगाड़ियों, हाथियों, खच्चरों तथा बकरों को काम में लाया जाता था।

·        जलीय मार्गों में नाव का प्रयोग होता था।

·        मोहनजोदड़ो से प्राप्त मुहरों पर एक नाव का चित्र एवं लोथल से मस्तुल लगा एक नाव का खिलौना (मिट्टी का) मिला है।

·       मध्य एशिया, फारस की खाड़ी के देशों, उत्तरी-पूर्वी अफगानिस्तान, ईरान, बहरीन द्वीप, मेसोपोटामिया, मिश्र, क्रीट आदि से इनके व्यापारिक संबंध थे।

·        मेसोपोटामिया में प्रवेश के लिए प्रमुख बन्दरगाह 'डर' था।

·        लोथल से फारस की मुहरें प्राप्त हुई हैं।

·        तौल की ईकाई सम्भवतः 16 के अनुपात में थी।

·       मोहनजोदड़ो एवं लोथल से हाथी दांत के बने हुए तराजू के पलड़े मिलते हैं।

·       मोहनजोदड़ो से सीप का तथा लोथल से हाथी दांत से निर्मित एक पैमाना मिलता है।

·       सम्भवतः ये लोग दशमलव पद्धति से परिचित थे।

 

 राजनीतिक जीवन:

·       इस सभ्यता की सांस्कृतिक एकता जैसे मृदभांड के स्वरूप, पन माप, कंगन, पशुओं की मूर्तियां आदि किसी केन्द्रीय सत्ता के बिना संभव नहीं हुई होगी।

·       सम्भवतः हडप्पा सभ्यता का शासन वणिक वर्ग के हाथों में था।

·       स्टुआर्ट पिग्गॉट (S. Piggot) के अनुसार "हड़प्पा के साम्राज्य पर दो राजधानियों द्वारा शासन किया जाता था।

·       हण्टर महोदय के अनुसार जनतांत्रिक पद्धति की सरकार थी।

·        मैके महोदय के अनुसार प्रतिनिध्यात्मक सरकार थी

·        बी.बी. स्टूब के अनुसार गुलामों पर आधारित प्रशासन था।

 

धार्मिक जीवन:

·       एक मूर्ति में स्त्री के गर्भ से निकलता एक पौधा दिखाया गया है। यह संभवतः पृथ्वी देवी की प्रतिमा है, जिसे यहां के लोग उर्वरता देवी समझते थे।

·        मूर्तिपूजा का आरम्भ सम्भवतः सैन्धव सभ्यता से ही प्रारम्भ माना जाता है।

·       एक मोहर में पद्मासन लगाये बैठे पशुपति महादेव के सिर पर तीन सींग हैं व उसके चारों ओर एक हाथी, एक बाघ, एक गैडा, आसन के नीचे एक भैंसा है और पांवों पर दो हिरण है।

·       हड़प्पा में पत्थर पर बने लिंग और योनि के अनेक प्रतीक मिले हैं।

·       लिंग पूजा हड़प्पा काल में शुरू हुई थी और आगे चल कर हिन्दू धर्म में पूजा की एक विशिष्ट विधि मानी जाने लगी।

·        एक मुद्रा पर पीपल की डालों के बीच में विराजमान देवता चित्रित है। इस वृक्ष की पूजा आज तक जारी है।

·       पशुपति महादेव के चित्र के साथ पशुओं का चित्रित होना व अन्य कई मृण्मुद्राओं (Seals) पर पशुओं के चित्र मिलना इस बात का प्रतीक है कि संभवतः उस समय पशुओं की भी पूजा की जाती थी।

·       फाख्ता पवित्र पक्षी माना जाता था।

·       बहुत अधिक संख्या में "ताबीज " (Amalets) मिलना इस बात का प्रतीक है कि वे लोग भूत-प्रेत, अन्धविश्वास व जादू-टोनों में विश्वास रखते थे।

कला:

·       इस सभ्यता में हमें वास्तुकला, मूर्तिकला, उत्कीर्णकला, चित्रकला. मृदभाण्डकला आदि के प्रमाण मिलते हैं।

·        मूर्तियाँ प्रस्तर, धातु एवं मिट्टी से बनायी जाती थी।

·        मोहनजोदड़ो, चन्हुदड़ो लोथल, कालीबंगन आदि स्थलों से धातु मूर्तियाँ मिली है।

·        धातु निर्मित मूर्तियों में सर्वाधिक उल्लेखनीय मोहनजोदड़ो से प्राप्त 4-1/2 सेमी. लम्बी एक निर्वस्त्र नर्तकी की कांस्य मूर्ति है।

·        मोहनजोदड़ो से कांस्य की भैंसा एवं वृषभ की मूर्ति, लोथल से कुत्ते तथा कालीबंगा से वृषभ की ताम्र मूर्ति प्राप्त हुई है।

·       इनके मृण्मूर्तियाँ मिट्टी के बने हुए हैं।

·       मानव मृण्मूर्तियों के अतिरिक्त पशु-पक्षियों में बैल, भैसा, भालू, गैंडा, बन्दर, भेड़, बकरा, बाघ, सुअर, मोर, तोता, कबूतर एवं बतख की मृण्मूर्तियां मिली है।

·       मानव मृण्मूर्तियां ठोस एवं पशु-पक्षियों की मृण्मूर्तियों अन्दर से खोखली हैं। पुरुष और महिलाओं की मृण्मूर्तियों में सर्वाधिक महिलाओं को है।

सिन्धु लिपि:

·       इस लिपि का सबसे पुराना नमूना 1853 ई. में मिला था और 1923 ई. तक यह पूरी तरह प्रकाश में आ चुकी थी।

·       इस लिपि में कुल मिलाकर 64 मूल अक्षर तथा 250 से 400 तक चित्रात्मक (Pictograph) हैं।

·        यह लिपि वर्णात्मक नहीं, बल्कि मुख्यतः चित्र लेखात्मक है।

·       लिखने की एक नई पद्धति का प्रयोग होता था, जिसमें पहली पंक्ति बायों से दायों तथा दूसरों पंक्ति दायों से बायीं ओर लिखी जाती थी, जिसे बेस्ट्रोफेडस शैली कहा जाता है।

·        इसे भावचित्रात्मक लिपि भी कहा जाता है।

·       फादर हैरान तथा टी. एच बरो ने हड़प्पाई लिपि की उत्पत्ति द्रविड़ लिपि से मानी है, जबकि एस.आर. राव तथा रामचन्द्रण इसे संस्कृत लिपि का एक रूप मानते हैं।

·       लैग्टन तथा हण्टर इसे ब्राह्मी लिपि।

 मृद्भांड:

·       मिट्टी के बर्तन प्रायः कुम्हार के चाक द्वारा ही बनाये जाते थे।

·        इन्हें लाल व काले रंग से रंगा जाता था।

·       कुछ बर्तनों को चमकीला, चिकना और नक्काशीदार बनाया जाता था।

·        बर्तनों पर आमतौर से वृत्त वृक्ष मनुष्याकृतियां मिलती है।

 

महत्त्वपूर्ण तथ्य

·       कालीबंगा शहर का दो भागों में विभाजन है परंतु दोनों भागों का दुर्गीकरण किया गया है।

·       लोथल शहर का दो भागों में विभाजन नहीं है। लोथल की एक मुद्रा पर चालाक लोमड़ी (पंचतंत्र में उल्लिखित) का अंकन मिलता है। यह एकमात्र स्थल है जहाँ मकानों का दरवाजा मुख्य सड़क पर खुलता था।

·       मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक सील पर तीन मुख वाले देवता की मूर्ति मिली है। उनके चारों और हाथी, गैंडा, चीता एवं भैंसा विराजमान हैं।

·       सिंधु सभ्यता के पतनोपरांत कुछ ऐसी ताम्रपाषाणकालिक बस्तियां अस्तित्व में आई जिन पर सिंधु सभ्यता का प्रभाव देखा जा सकता है। इन्हें परवर्ती हड़प्पा सभ्यता के नाम से जाना गया।

·       हड़प्पा सभ्यता में देवियों की पूजा सौम्य तथा रौद्र दोनों रूपों में होती थी। बलूचिस्तान के कुल्ली में सौम्य रूप तथा झौव संस्कृति में रौद्र रूप में पूजा होती थी।

·       हड़प्पा सभ्यता में लोथल, रंगपुर, प्रभासपाटन, बालाकोट, सुत्कागंडोर, सोत्काकोह तथा बलूचिस्तान प्रमुख बंदरगाह थे।

·       सिंधु सभ्यता के माप तौल में ऊपरी स्तर पर दशमलव प्रणाली तथा निचली स्तर पर द्विभाजन प्रणाली का प्रयोग होता था। गणना में 16 की संख्या तथा उसके गुणक का प्रयोग होता था। फीट की लंबाई लगभग 35.5 सेमी. तथा क्यूबिट लगभग 52.25 सेमी. का होता था।

·       सिंधु घाटी सभ्यता में सामान्यतः नवम्बर में फसल बोई जाती थी तथा अप्रैल में काटी जाती थी।

·       सर्वप्रथम कपास की खेती सैंधव लोगों ने ही की थी।

·       हड़प्पा सभ्यता से चार प्रजातियों के अस्तित्व प्राप्त हुए हैं इनमें सर्वाधिक संख्या भूमध्यसागरीय लोगों की थी। इसके अलावा प्रोटो ऑस्ट्रेलॉयड, मंगोलाइड तथा अल्पाइन लोगों का भी निवास था। यहाँ नीग्रो प्रजाति के लोग नहीं रहते थे।


इसे भी पढ़ें -

विस्तार से पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करे- 
राजनीति शाश्त्र-

इसे भी पढ़ें -

संविधान का निर्माण

प्रस्तावना

भारतीय संविधान के स्रोत एवं विशेषताएं

संघ और उसका राज्य क्षेत्र

नागरिकता

मौलिक अधिकार

राज्य के नीति निर्देशक तत्व

मौलिक कर्त्तव्य

केन्द्रीय कार्यपालिका

राज्य की कार्यपालिका

राज्य विधानमंडल

भारत में स्थानीय स्वशासन

संघ राज्य क्षेत्र, अनुसूचित तथा जनजातीय क्षेत्रों का प्रशासन

कक्षा-6 के नागरिक शास्त्र के अन्य अध्याय को यहाँ से पढ़े 


कक्षा -7 के इतिहास को पढ़ने के लिए इसे भी देखे -

कक्षा -6 के इतिहास को पढ़ने के लिए इसे भी देखे -



आप सभी को यह पोस्ट कैसी लगी इसके बिषय में अपनी राय जरूर दे। 

अपना कीमती सुझाव जरूर दे धन्यवाद।

कोई टिप्पणी नहीं

If you have any doubt , Please let me know

'; (function() { var dsq = document.createElement('script'); dsq.type = 'text/javascript'; dsq.async = true; dsq.src = '//' + disqus_shortname + '.disqus.com/embed.js'; (document.getElementsByTagName('head')[0] || document.getElementsByTagName('body')[0]).appendChild(dsq); })();