Sources of Ancient Indian history/प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत

 

प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत/Sources of Ancient Indian history 


पुरातात्विक स्रोत-

  •  पुरातात्विक स्रोत के अंतर्गत मुख्य रूप से अभिलेख, सिक्के,  स्मारक एवं   भवन, मूर्तियां, चित्रकला के अवशेष आदि आते हैं l
  • प्राचीन वस्तुओं के अध्ययन का कार्य सर्वप्रथम सर विलियम जोंस ने शुरू किया l
  • सर विलियम जोंस ने 1774  ईसवी में ‘ एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ बंगाल’ की स्थापना की l
  • जेंस प्रिंसेप  ने ब्राह्मी लिपिका अनुसंधान कर इसके अध्ययन को सरल बनाया l

a)अभिलेख:- 

  • इनके अध्ययन को पुरालेखशास्त्र तथा दस्तावेजों की प्राचीन तिथि के अध्ययन को पूरालिपि सहस्त्र कहते हैं l
  • अभिलेख पत्थर एवं धातु की चादरों के अतिरिक्त मोहरो, स्तूपो, मंदिर की दीवारों, ईटों और मूर्तियों पर भी खुदे होते थे l
  •  प्रारंभ में, अभिलेखों में प्राकृत भाषा का प्रयोग होता था l
  • संस्कृत भाषा का प्रयोग दूसरी  शताब्दी से होने लगा l
  •  शक शासक रुद्रदामन का जूनागढ़, अभिलेख संस्कृत में लिखा पहला अभिलेख है l 
  • सर्वप्रथम वैदिक देवताओं के नाम इंद्र, मित्र, वरुण और नासत्य का उल्लेख एशिया माइनर में बोगाज़कोई नामक स्थान पर  1400  ईसा पूर्व के एक अभिलेख में मिला है l 
  • भारत में सबसे प्राचीन अभिलेख अशोक के हैं l
  • अशोक के नाम का उल्लेख गुर्जरा( मध्य प्रदेश) मस्की( आंध्र प्रदेश) पानगुदैया(मध्य प्रदेश ), निट्टूर तथा उद्गोलम के अभिलेखों से प्राप्त होता हैl l
  • अशोक के सर्वाधिक अभिलेख ब्राह्मी लिपि में है l 
  • लद्यमान  एवं शेरेकुना से प्राप्त अशोक के अभिलेख यूनानी तथा आर मेर लिपियों में हैं l 
  • अशोक के ब्राह्मी लिपियो  में लिखित अभिलेखों को सर्वप्रथम जेम्स प्रिंसेप ने 1837 ईसवी मैं पढ़ने में सफलता पाई l
  • शुरुआती अभिलेख( गुप्त काल से पूर्व) प्राकृत भाषा में है किंतु गुप्त तथा गुप्तोत्तर काल के अधिकतर अभिलेख संस्कृत भाषा में हैं l
  • एरण(मध्य प्रदेश) में वराह प्रतिमा पर हूड तोरमाण के लेखों का वर्णन है l 
  • सबसे अधिक अभिलेख मैसूर में मिलते हैं l
  • फिरोजशाह तुगलक को अशोक के दो स्तंभ लेख मेरठ तथा टोपरा( हरियाणा) से मिले थे, जिन्हें उसने दिल्ली मंगवाया l

b).सिक्के:-
  • सिक्कों के अध्ययन को ‘ मुद्राशास्त्र’ कहा जाता है l
  •  पुराने सिक्के सोना, चांदी तांबा, कांस्य, सीसा एवं पोटीन के मिलते हैं l 
  • पकाई गई मिट्टी के बने सिक्कों के सांचे कुषाण काल के हैं l
  • भारत की प्राचीनतम सिक्के ‘ आहत सिक्के’ या ‘ पंचमार्क सिक्के’ कहलाते हैं l
  • इन सिक्कों पर पेड़, मछली, हाथी, सांड, अर्धचंद्र की आकृतियां बनी होती थी l
  •  बाद में सिक्कों पर तिथियों, राजाओं और देवताओं के नाम अंकित होने लगे l
  • सबसे पहले हिंद यूनानीयों ने ही स्वर्ण मुद्राएं जारी की l
  • सबसे अधिक शुद्ध स्वर्ण मुद्राएं कुषाणों ने तथा सबसे अधिक स्वर्ण मुद्राएं गुप्तों ने जारी की l
  • सबसे अधिक सिक्के मौर्योत्तर काल के मिले हैं, जिससे तत्कालीन वाणिज्य व्यापार कीउन्नत स्थिति का पता चलता है l
c).स्मारक एवं भवन:-

  • उत्तर भारत की मंदिर कला शैली ‘ नागर’ दक्षिण भारत की कला शैली को ‘ द्रविड़’ तथा दक्षिणापथ की कला शैली को ‘वेसर’ शैली कहा जाता है l
  •  वेसर शैली में नागर और द्रविड़ का मिश्रण है l
  • अध्ययन के लिए स्मारकों को दो भागों में बांटा जा सकता है:
  • देसी स्मारक:  हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, नालंदा, तक्षशिला, रोपड़, हस्तिनापुर प्राचीन नगर तथा कुषाण काल में गांधार स्थापत्य कला, मौर्य काल में स्तूप, चैत्य व बिहार और गुप्त काल में मंदिर स्थापत्य कला इत्यादि इसके अंतर्गत आते हैं l
  • विदेशी स्मारक: कंबोडिया का अंगकोरबाट तथा जावा स्थित बोरोबदुर मंदिर इत्यादि इस श्रेणी के अंतर्गत आते हैं l 


d).मूर्तियां:

  • प्राचीन काल में मूर्तियों का निर्माण कुषाण काल से प्रारंभ होता है l
  • कुषाण की मूर्ति कला में यूनानी प्रभाव अधिक है l
  • भरहुत, बोधगया, सांची और अमरावती की मूर्तिकला जनसाधारण के जीवन की अत्यंत सजीव झांकी प्रस्तुत करती है l

e).चित्रकला: 

  • अजंता की चित्रकला में ‘ माता और शिशु’ तथा ‘ मरणासन्न राजकुमारी’ जैसे चित्रों में शाश्वत भावों की अभिव्यक्ति हुई है l

f).मुहरें: 

  • मोहनजोदड़ो से प्राप्त 500 से अधिक मुहरों से हड़प्पा संस्कृत के निवासियों के धार्मिक विश्वासों की जानकारी मिलती है l
  • बसाढ से प्राप्त मिट्टी की मुहरों से व्यापारिक श्रेणियों का पता चलता है l

g).मृदभांड:

  • मृदभांड के द्वारा विभिन्न संस्कृतियों की पहचान संभव है l
  •  नवपाषाण कालीन स्थलों से पांडुरंग के उत्तम मृदभांड प्राप्त होते हैं l
  •  हड़प्पा काल में लाल मृदभांड, उत्तर वैदिक काल में चित्रित धूसर मृदभांड तथा मरीजों की पहचान उत्तरी काले पोलीस मृदभांड से की जाती है l


साहित्यिक स्रोत:-

धार्मिक साहित्य:

  • धार्मिक साहित्य को दो भागों में बांटा गया है

ब्राह्मण साहित्य:

  • इसके अंतर्गत वेद, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद, वेदांग, रामायण, महाभारत, पुराण, स्मृति ग्रंथ आदि आते हैं l
  • ऋग्वेद: चारों वेदों में सबसे प्राचीन वेद है l
  •  इसमें 10 मंडल, 8  अष्टक, 10600 मंत्र एवं 1028 सूक्त है l
  •  इसकी रचना काल सामान्यता 1500 ई.पू.से1000 ई.पू. के बीच माना जाता हैl
  • होत्री नामक पुरोहित इस वेद के मंत्रों का उच्चारण करता था l इसमें बालखिल्यसूक्त भी शामिल है जिनकी संख्या 11 है l
  • सूक्त रचयिताओं में गृत्समद,विश्वामित्र,वामदेव,अत्रि,भारद्वाज,वशिष्ठ(पुरुष) तथा घोषा, लोपामुद्रा, शची, पौलोमी और काक्षावृति (महिला) शामिल है l 
  • ऋग्वेद का  दूसरा एवं सातवां मंडल सर्वाधिक प्राचीन तथा पहला एवं 10 वा मंडल सबसे बाद का है
  • l नौवें मंडल को सोम मंडल भी कहा जाता है lऋग्वेद की मान्य 5 शाखाएं हैं- शाकल, आश्वलायन,माण्डुक्य,शांखायन एवं वाष्कल l 
  • माण्डुक्य इस वेड के दो भाग है -
  • कृष्ण यजुर्वेद-  इसकी मुख्य चार शाखाएं हैं- तैतरीय,काठक,कपिष्ठल,मैत्रायणी l 
  • शुक्ल यजुर्वेद- वाजसनेयी के पुत्र याज्ञवल्क्य इसकी संहिताओं के द्रष्टा है ,इसलिय इसे वाजसनेयी संहिता भी कहा जाता है l इसमे केवल मंत्रों का समावेश है l 
  • सामवेद:- सामवेद का शाब्दिक अर्थ है- ‘ गान’l  इसमें संकलित मंत्रों को देवताओं की स्तुति के साथ गाया जाता था l  सोम यज्ञ के समय उद्गाता इन ऋचाओं का गान करते थे l भारतीय संगीत का मूल माने जाने वाले इस वेद की तीन मुख्य शाखाएं हैं- जैमिनीय, राणायानीय तथा कौथुम  l सामवेद में मुख्यतः सूर्य के स्तुति के मंत्रका समावेश है l 
  • अथर्ववेद:- अथर्वा ऋषि द्वारा इस वेद की रचना की गई । इस वेद के दूसरे द्रष्टा आगिरस ऋषि थे । अतः इसे अथर्वाङ्गिरस वेद भी कहा जाता है ।
  •  इस वेद के मुख्य विषय हैं- ब्रह्मज्ञान , रोग निवारण , औषधि प्रयोग , तन्त्र - मंत्र , टोना टोटका आदि ।
  •  शौनक तथा पिप्पलाद इस वेद की दो शाखाएं हैं ।
  •  अथर्ववेद में परीक्षित को कुरुओं का राजा कहा गया है ।
  • ब्राह्मण:- ब्राह्मण में ब्रह्म शब्द का अर्थ है ' यज्ञ ' ; अर्थात् यज्ञाँ एवं कर्मकाण्डों के विधि - विधान एवं इनकी क्रियाओं को भली - भांति समझने के लिए ही ब्राह्मण ग्रंथ की रचना हुई ।
  •  ये ग्रंथ गद्य में लिखे गए हैं । 
  • आरण्यकः- यह ब्राह्मण ग्रंथों का अंतिम भाग है , जिसमें दार्शनिक एवं रहस्यात्मक विषयों का वर्णन है । जंगल ( अरण्य ) में पढ़े जाने के कारण इसे आरण्यक कहा गया ।
  •  आरण्यक ग्रंथों की संख्या तो बहुत अधिक है । किन्तु इनमें कुछ ही उपलब्ध है । ( 1 ) ऐतरेय , ( 2 ) शांखापन , ( 3 ) तैत्तिरीय , ( 4 ) मैत्रयणी , ( 5 ) वृहदारण्यक ( 6 ) छान्दोग्य 
  •  उपनिषद् : इसका शाब्दिक अर्थ है - ' समीप बैठना । शिष्य ब्रह्म विद्या को प्राप्त करने के लिए गुरु के समीप बैठते थे । उपनिषद् में आत्मा परमात्मा एवं संसार के संदर्भ में प्रचलित दार्शनिक विचारों का संग्रह है । उपनिषद् वेदों के अंतिम भाग हैं , अतः इन्हें वेदान्त भी कहा जाता है ।
  •  ये हैं - ईश , कठ , केन , मुण्डक , माण्डुक्य , प्रश्न , ऐतरेय , तैत्तिरीय , छान्दोग्य , वृहदारण्यक , श्वेताश्वर , कौषीतकी और मैत्रायणी प्रसिद्ध राष्ट्रीय वाक्य ' सत्यमेव जयते ' मुण्डकोपनिषद् से लिया गया है । यम - नचिकेता संवाद का वर्णन कठोपनिषद् में है । शंकराचार्य ने 10 उपनिषदों पर भाष्य लिखा ।


वेदांगः


इसकी संख्या 6 है:-


1. छन्द-                    वेद के पैर                 वैदिक एवं लौकिक छन्दों की व्याख्या

2. कल्प-                 वेद के हाथ                 यज्ञ व्यवस्था एवं गृहस्थाश्रम

3. ज्योतिष-              वेद को आंखें              ग्रह एवं नक्षत्रों के अध्ययन

4. निरुक्त-                वेद के का                वैदिक शब्दों की व्याख्या
5. शिक्षा                   वेद की नासिका           शुद्ध उच्चारण

6. व्याकरण             वेद के मुख                भाषा संबंधी शुद्धता

स्मृतियां: वेदांग और सूत्रों के बाद स्मृतियों का उदय हुआ। स्मृतियों को 'धर्मशास्त्र' भी कहा जाता है। सम्भवतः मनुस्मृति सबसे प्राचीन है।

स्मृतियां                                                                काल

मनुस्मृति                                                    ई.पू. 200-200 ई.
याज्ञवल्क्य स्मृति                                          100 ई. से 300 ई. 
नारद स्मृति                                             300 ई. से 400 ई.
पराशर स्मृति                                             300 ई. से 500 ई.
बृहस्पति स्मृति                                            300 ई. से 500 ई.
कात्यायन स्मृति                                          300 ई. से 600 ई.



  • पाणिनि का अष्टाध्यायी तथा पतंजलि का महाभाष्य व्याकरण ग्रंथ हैं।
  • मनुस्मृति के भाष्यकार - मेघातिथि, भारुचि, कुल्लूक भट्ट, गोविंद



 रामायणः

  • रचना वाल्मीकि द्वारा संस्कृत भाषा में पहली दूस शताब्दी में।
  • आरंभ में इसमें 6000 श्लोक थे, जो कालांतर 12.000 तथा फिर 24,000 हो गए। इसे चतुर्विंशति संहिता भी कहा जाता है।


 महाभारतः 

  • महाभारत के रचयिता महर्षि व्यास माने जाते हैं।
  • महाभारत में मूलत: 8,800 श्लोक थे, जिसे 'जयसहिता' कहा जाता था। तत्पश्चात् श्लोकों की संख्या 24,000 हो गयी और इसे भारत कहा गया। 
  • पुनः इसके एक लाख श्लोक हो गए, जिसे 'महाभारत' या 'शतसाहस्त्री संहिता' कहा गया।
  •  महाभारत का प्रारम्भिक उल्लेख 'आश्वलायन गृहसूत्र' में मिलता है।


पुराणः-

  • पुराणों की संख्या 18 है। 
  • पुराणों के रचयिता लोमहर्ष अथवा उनके पुत्र उग्रश्रवा को माना जाता है।
  • अधिकांश पुराणों की रचना सम्भवतः तीसरी-चौथी शताब्दी (गुप्तकाल ) में हुई।
  • सबसे प्रामाणिक एवं प्राचीन मत्स्य पुराण है। 
  • मौर्य एवं गुप्त वंश की जानकारी विष्णु पुराण से तथा शुंग एवं गुप्त वंश की जानकारी वायु पुराण से प्राप्त होती है।


सूत्र:- 

  • इस साहित्य की रचना ई.पू. छठी शताब्दी के आसपास शुरू हुई।
  •  सूत्र ग्रंथों को कल्प कहा जाता है।
  •  ऐसे सूत्र जिनमें विधि और नियमों का प्रतिपादन किया गया है, कल्पसूत्र कहलाते हैं।
  • ये चार प्रकार के हैं:-
  •  श्रौत सूत्र - यज्ञ संबंधी नियमों का उल्लेख।
  •  गृह सूत्र - मनुष्यों के लौकिक तथा पारलौकिक कर्तव्यों से संबंधित।
  •  धर्मसूत्र - सामाजिक, धार्मिक एवं राजनीतिक कर्तव्यों का उल्लेख |
  • शुल्व सूत्र- इसमें यज्ञीय वेदियों को नापने, उनके स्थान चयन तथा निर्माण आदि का वर्णन है।



 विदेशी यात्रियों के वर्णन

  • ये भी एक साहित्यिक साक्ष्य हैं। चूंकि विदेशी लेखकों की धर्मेत्तर घटनाओं में विशेष रुचि थी, अतः उनके वर्णन से सामाजिक और राजनीतिक अवस्था पर अधिक प्रकाश पड़ता है।

विदेशी यात्रियों के वर्णन-

विदेशी लेखक            राजदरबार                    पुस्तक

मेगस्थनीज             चन्द्रगुप्त मौर्य                      इंडिका


डायमेकस                बिन्दुसार

डायनोसियस               अशोक

टॉलेमी                                                            भूगोल

फाह्यान                चन्द्रगुप्तद्वितीय                        फ़ो -क्यू की

ह्वेनसांग                  हर्षवर्धन                            सी-यू-की
इत्सिंग                                                        बौद्ध धर्म कारिकार्ड

ह्वीली                                                          ह्वेनसांग कीजीवनी



 यूनान और रोम के लेखकः

  • इस लेखकों में सबसे पुराने हैं- हेरोडोटस और टीसियस इन दोनों लेखकों ने भारत के बारे में जानकारी ईरान से प्राप्त की है।
  • सिकन्दर के साथ आए यूनानी लेखकों के वर्णन अधिक महत्त्वपूर्ण हैं।
  • इन लेखकों में नियार्कस, आनेसिक्रिटिस तथा आरिस्टोवुलस अधिक प्रसिद्ध हैं।
  • अन्य महत्वपूर्ण विदेशी यात्री हैं-मेगस्थनीज, प्लिनी टॉलमी। 
  • एक यूनानी ग्रंथ 'पेरिप्लस ऑफ दि एरिथ्रियन सी' जिसके लेखक का नाम अज्ञात है, किन्तु उसने 80 ई. में भारतीय समुद्रतट की यात्रा की थी तथा भारतीय बंदरगाहों तथा उससे आयात-निर्यात की जाने वाली वस्तुओं की जानकारी प्राप्त होती है।


 चीनी यात्रियों के वृत्तांतः 

  • इसके अंतर्गत सबसे महत्त्वपूर्ण फाह्यान ह्वेनसांग तथा इत्सिंग के वर्णन हैं।
  • फाह्यान भारत में 14 वर्षों तक रहा। 
  • ह्वेनसांग (युवान च्यांग) हर्ष के काल में आया तथा 16 वर्षों तक रहा।
  • इत्सिंग सातवीं शती के अंत में आया तथा काफी समय तक विक्रमशिला एवं नालंदा विश्वविद्यालय में रहा। उसने 6 वर्षों तक नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन किया।
  • मा त्वान लिन ने हर्ष के पूर्वी अभियान का तथा चाऊ-जू कुआ ने चोल कालीन इतिहास का वर्णन किया है।


अरब यात्रियों के वृत्तांत: 

  • इस लेखकों में मुख्य हैं- अल्बरुनी, सुलेमान, अलमसूदी।
  • इनमें सबसे अधिक प्रसिद्ध है- अल्बरुनी (अबूरिहान)।
  • इसने 'तहकीक-ए-हिन्द' या 'किताबुल हिन्द' लिखी। 
  • सुलेमान ने 9वीं सदी में भारत की यात्रा की। उसने पाल एवं प्रतिहार शासकों के तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक स्थिति का वर्णन किया।
  • अलमसूदी, जो बगदाद का यात्री था, ने 10वीं सदी में भारत की यात्रा कर राष्ट्रकूट एवं प्रतिहार शासकों के बारे में लिखा।
                             
                
                        
महत्त्वपूर्ण तथ्य:-

  • टीसियस ईरान का राजवैद्य था।
  • 'पण्डावागरणिआई' में जैन नियमों का उल्लेख किया गया है।
  • शुमाचीन' चीन का प्रथम इतिहास लेखक है। तिब्बती लेखकों में लामा तारानाथ के ग्रंथ 'कम्पूर' और 'तरपूर' विशेष प्रसिद्ध हैं।
  • हेरोडोटस को इतिहास का पिता कहा जाता है। • एलेक्जेंडर हेमिल्टन (1762-1824) प्रथम विद्वान (फ्रांसीसी) था, जिसने यूरोप में संस्कृत पढ़ाया। 
  •  फ्रेडरिक शेंगेल प्रथम जर्मन, संस्कृताचार्य था।
  •  फ्रेंज बोप (1791-1867). 1816 में संस्कृत एवं परंपरागत यूरोपीय भाषाओं के पुनर्निर्माण में सफल हुआ।
  • फ्रेडरिक मैक्समूलर (1823-1900) ने ऋग्वेद का अंग्रेजी अनुवाद किया। • ओट्टो बोधलिक एवं रूडोल्फ रोव ने पीट्सबर्ग लेक्जिकन नाम से प्रथम जर्मन संस्कृत शब्दकोश का निर्माण किया।
  • जेम्स प्रिंसेप 1837 ई. में ब्राह्मी लिपि को पढ़ने में सफल रहा। इसी ने अशोक के अभिलेखों को पढ़ा जो ज्यादातर ब्राह्मी लिपि में लिखित है। • विलियम जोन्स ने 1789 ई. में कालिदास की अमूल्य कृति अभिज्ञानशाकुंतलम तथा ऋग्वेद का अंग्रेजी में अनुवाद किया।
  •  विलकिन्स ने 1785 ई. में भगवद् गीता का अंग्रेजी में अनवाद किया तथा मौखरी एवं पाल वंश के राजाओं का इतिहास भी लिखा।
  • चचनामा का फारसी में अनुवाद मुहम्मद अल बिन अबु बक्र कुफी के द्वारा नासीरुद्दीन कुबाचा के काल में किया गया जो मुहम्मद गोरी का एक तुर्की दास अधिकारी था।

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