Central Executive/केन्द्रीय कार्यपालिका

 

 


केन्द्रीय कार्यपालिका/Central Executive

·        संविधान के भाग-5 में अनुच्छेद 52 से 78 तक केन्द्रीय कार्यपालिका का विस्तृत वर्णन किया गया है।

·        कार्यपालिका के अन्तर्गत राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, मंत्रिपरिषद् तथा महान्यायवादी को रखा गया है।

·        संविधान के अनुच्छेद 73 के अधीन संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार उन विषयों तक होगा, जिनके बारे में संसद कानून बना सकती है और उन सभी अधिकारों के प्रयोग तक होगा, जो किसी अंतर्राष्ट्रीय संधि या करार के आधार पर भारत सरकार को प्राप्त होंगे।

 

राष्ट्रपति:-

·        भारतीय संघ की कार्यपालिका के प्रधान को 'राष्ट्रपति' कहा जाता है।

·        संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित है ।

·        भारत में संसदीय शासन प्रणाली होने के कारण राष्ट्रपति कार्यपालिका का औपचारिक प्रधान है तथा मंत्रिमंडल वास्तविक कार्यकारी ।

·        भारतीय संविधान के अनुच्छेद 52 के अनुसार भारत का एक राष्ट्रपति होगा।

·        अनुच्छेद 53 के अनुसार, "संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी. जिसका प्रयोग वह स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों द्वारा करेगा।"

·        राष्ट्रपति की स्थिति वैधानिक अध्यक्ष की है, तथापि उसका पद धुरी के समान है, जो राजनीतिक व्यवस्था को संतुलित करता है।

राष्ट्रपति का निर्वाचन:-

 

·        अनुच्छेद 54 के अनुसार राष्ट्रपति का निर्वाचन अप्रत्यक्ष रूप से आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत प्रणाली के माध्यम से एक निर्वाचक मंडल करेगा।

निर्वाचक मंडल के सदस्य:-

i.        संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य ।

ii.      प्रत्येक राज्य की विधानसभा के निर्वाचित सदस्य ।

iii.    दिल्ली और पांडिचेरी संघ राज्यक्षेत्र की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य।

राष्ट्रपति के निर्वाचन संबंधी महत्त्वपूर्ण संशोधन:-

·        70वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 द्वारा दिल्ली एवं पांडिचेरी विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों को राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल में शामिल कर लिया गया।

·        भंग विधानसभा अथवा खाली सीट का राष्ट्रपति के निर्वाचन पर अब कोई प्रभाव नहीं।

·        राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के नामांकन पत्र पर 50 मतदाताओं का प्रस्तावक के रूप में तथा 50 मतदाताओं का अनुमोदक के रूप में हस्ताक्षर अनिवार्य हो गया।

·        नामांकन दाखिल करते समय उम्मीदवार को जमानत राशि के रूप में अब 2500 रुपये के स्थान पर 15,000 रुपये जमा करने का प्रावधान किया गया है।

 

निर्वाचन प्रक्रिया:-

·        अनुच्छेद 55 में राष्ट्रपति के निर्वाचन की पद्धति बताई गई है। राष्ट्रपति के निर्वाचन में निम्न प्रक्रियाओं को अपनाया जाता है-

1)एकरुपता का सिद्धान्तः

·        अनुच्छेद 55 (1) के अनुसार राष्ट्रपति के चुनाव में मतों की गणना के लिए प्रत्येक एम.एल.ए. तथा प्रत्येक एम. पी. के मत का मूल्य निर्धारित किया जाता है, जिससे राष्ट्रपति के निर्वाचन में विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधित्व के मापन में एकरूपता बनी रहे तथा समस्त राज्यों की विधानसभाओं को सामूहिक रूप से संघीय संसद के बराबर प्रभाव प्राप्त हो।

·        समस्त राज्यों को विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों की संख्याओं का योग भारत की समस्त जनता का प्रतिनिधित्व करता है। मत मूल्य निर्धारण के लिए दो प्रणालियाँ अपनाई जाती हैं-

राज्य की विधानसभा के निर्वाचित सदस्य के मत का मूल्य:

a.       अनुच्छेद 55 (ख) के अनुसार किसी राज्य की विधान सभा के प्रत्येक सदस्य के मत का मूल्य, राज्य की कुल जनसंख्या को उस विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों की संख्या से भाग देने पर प्राप्त संख्या को 1000 से भाग देने पर प्राप्त होता है।

b.      यदि इस विभाजन के उपरान्त भागफल 500 या 500 से अधिक आता है तो भागफल में एक और जोड़ दिया जाता है। इस प्रकार राज्य की विधानसभा के निर्वाचित सदस्य के मत का मूल्य प्राप्त हो जाता है।

संसद के निर्वाचित सदस्य के मत का मूल्यः

a.       संसद के प्रत्येक निर्वाचित सदस्य के मत का मूल्य राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों के लिए नियत समस्त मत संख्या को संसद के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या से भाग देने पर प्राप्त होता है ।

b.      यदि शेष आधे से अधिक बचता है तो भागफल में एक मत जोड़ दिया जाता है। राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों के मत मूल्य निर्धारण एवं संसद के निर्वाचित सदस्य के मत मूल्य निर्धारण में एक समान प्रक्रिया अपनाई जाती है, ताकि एकरुपता बनी रहे। इसे आनुपातिक प्रतिनिधित्व का सिद्धान्त भी कहते हैं।

 

(2) एकल संक्रमणीय सिद्धान्तः

·        यदि निर्वाचन में एक से अधिक उम्मीदवार हों तो मतदान वरीयता क्रम के आधार पर किया जाता है। अर्थात् उम्मीदवार के नाम या उसके चुनाव चिह्न के आगे अपनी पसंद (पहली. दूसरी, तीसरी आदि) अंकित करके मतदान किया जाता है। मतदान गुप्त रीति से किया जाता है।

·        अनुच्छेद 55 (3) के अनुसार राष्ट्रपति का निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होगा और ऐसे साधारणतः प्रत्येक मतदाता को उतने ही मत देने का अधिकार होता है, जितने प्रत्याशियों के नाम मतदान पत्र पर छपे होते हैं। प्रत्येक मतदाता अपनी पंसद का अंक प्रत्याशी के नाम के आगे लिखता है।

मतगणना:-

·        मतदान के पश्चात् मतगणना प्रारम्भ होती है।

·        मतगणना प्रारम्भ होने पर अवैध मतों को निकालकर वैध मतों का मूल्य निकाला जाता है और उसे दो से भाग देने पर प्राप्त होने वाले भागफल में एक जोड़ कर 'चुनाव कोटा' निकाला जाता है।

·        जीतने वाले प्रत्याशी को कोटे के बराबर मत प्राप्त करने होते हैं।

·        यदि किसी भी प्रत्याशी को प्रथम गणना में निश्चित कोटा प्राप्त नहीं होता तो सबसे कम मत प्राप्त करने वाले प्रत्याशी के मतों की दूसरी वरीयता देखी जाती है और दूसरी वरीयता के प्रत्याशी के मतों में प्रथम वरीयता के मतों को जोड़ दिया जाता है।

·        इस प्रकार कोटा प्राप्त न होने पर तीसरी और चौथी गणना भी चलती है। यदि अंत में भी दो प्रत्याशी रह जायें, जिसमें से किसी को भी निश्चित कोटा प्राप्त न हो तो दोनों में से सर्वाधिक मत प्राप्त करने वाले प्रत्याशी को निर्वाचित घोषित किया जाता है।

शपथ ग्रहण:-

·        राष्ट्रपति पद ग्रहण करने से पूर्व देश के मुख्य न्यायाधीश के सम्मुख शपथ ग्रहण करके उस पर हस्ताक्षर करता है।

·        इस शपथ ग्रहण का यह आशय होता है कि वह अपनी पूर्ण योग्यता से संविधान की रक्षा करेगा और जनता की सेवा के कार्यों में लगा रहेगा।

राष्ट्रपति निर्वाचन संबंधी विवाद:-

·        केवल राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार जो निर्वाचन में भाग ले रहा हो, राष्ट्रपति पद के निर्वाचन की वैधता को निम्न आधारों पर चुनौती दे सकता है-

I.        मतदाताओं को मतदान के लिए रिश्वत दी गई हो या उन पर अनुचित दबाव डाला गया हो।

II.     किसी भी उम्मीदवार का नामांकन पत्र अनुचित ढंग से स्वीकार किया गया हो।

III.   निर्वाचन संबंधी नियमावली की अवहेलना की गई हो। संविधान के अनुच्छेद 71 के अनुसार राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से उत्पन्न सभी विवादों की जांच या निपटारा उच्चतम न्यायालय करेगा और उसका निर्णय अंतिम तथा सर्वमान्य होगा। 1967 में डॉ. जाकिर हुसैन, 1969 में वी. वी. गिरि तथा 1983 में श्री जैल सिंह के चुनावों को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई थी। इन सभी मामलों में उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रपति के चुनावों को वैध माना।

राष्ट्रपति पद के लिए योग्यता:-

·        अनुच्छेद 58 के अनुसार कोई व्यक्ति राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार होने का पात्र तभी होगा, जब वह-

a.       भारत का नागरिक हो।

b.      पैंतीस वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।

c.       यदि वह संघ सरकार, राज्य सरकार या किसी स्थानीय निकाय के अधीन लाभ के पद पर है तो वह चुनाव लड़ने के लिए अपात्र होगा, किंतु किसी राज्य का राज्यपाल या केन्द्र अथवा राज्य मंत्रिपरिषद् का कोई मंत्री लाभ के पद पर आसीन नहीं माना जाएगा।

d.      संसद का या राज्य विधान मंडल का सदस्य भी नहीं होना चाहिए। यदि वह इनमें से किसी का सदस्य है तो निर्वाचन के साथ ही सदन से उसकी सदस्यता समाप्त हो जाएगी।

राष्ट्रपति पद का कार्यकाल:-

·        अनुच्छेद 56 के अनुसार राष्ट्रपति अपना पद धारण करने की तारीख से पाँच वर्ष तक के लिए पद धारण करता है अर्थात् राष्ट्रपति की पदावधि पद ग्रहण करने की तारीख से पाँच वर्ष की होती है।

राष्ट्रपति पुनर्निर्वाचन का भी पात्र है। पाँच वर्ष से पूर्व भी राष्ट्रपति का कार्यकाल निम्न दो स्थितियों में समाप्त हो सकता है:

(1) राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति को अपने हस्ताक्षर सहित लेख(त्याग पत्र) द्वारा अपना पद त्याग सकता है ।

(2) महाभियोग की प्रक्रिया द्वारा इसके लिए केवल एक ही आधार है; संविधान का उल्लंघन या साबित कदाचार ।

महाभियोग:-

·        महाभियोग एक न्यायिक प्रक्रिया है जो कि संसद में चलाई जाती है।

·        यदि राष्ट्रपति संविधान का उल्लंघन करे या उसका अतिक्रमण करे तो संसद उस पर अनुच्छेद 61 के अंतर्गत महाभियोग चलाकर उसे पांच वर्ष की अवधि समाप्त होने से पूर्व भी अपदस्थ कर सकती है।

·        इस प्रक्रिया के अन्तर्गत यदि संसद का कोई भी सदन दूसरे सदन में राष्ट्रपति पर संविधान के अतिक्रमण का आरोप लगाता है तो दूसरा सदन उन आरोपों की स्वयं जाँच करता है या किसी जाँच आयोग द्वारा जाँच करवाता है।

·        ऐसा आरोप तब तक कोई सदन नहीं लगा सकता जब तक कि

i.        चौदह दिन की लिखित सूचना देकर सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम एक चौथाई सदस्यों के हस्ताक्षर करके प्रस्थापना अंतर्विष्ट करने वाला संकल्प नहीं किया गया हो।

ii.      उस सदन की कुल सदस्य संख्या के दो-तिहाई बहुमत द्वारा ऐसा संकल्प पारित नहीं किया गया हो।

·        राष्ट्रपति को यह अधिकार प्राप्त है कि वह स्वयं संसद में ऐसे अधिवेशन में उपस्थित होकर अथवा अपने किसी प्रतिनिधि को सदन में भेजकर स्वयं को दोषहीन सिद्ध करने का प्रयास कर सकता है।

·        उक्त अधिवेशन में राष्ट्रपति पर लगाया गया आरोप सिद्ध हो जाता है तो आरोप की जाँच करने वाला सदस्य कुल सदस्य संख्या के कम-से-कम दो-तिहाई बहुमत से उस संकल्प को पारित कर देता है।

·        पारित किये जाने के पश्चात् संकल्प को दूसरे सदन में भेज दिया जाता है, जहाँ पर पुनः संकल्प पर विचार-विमर्श होता है।

·        वहाँ भी यह संकल्प कुल सदस्य संख्या के कम से कम दो तिहाई बहुमत से पारित हो जाए तो महाभियोग का संकल्प पारित समझा जाता है तथा उसी दिन से राष्ट्रपति को पद मुक्त कर दिया जाता है।

·        महाभियोग के विरुद्ध किसी न्यायालय में अपील नहीं की जा सकती। अनुच्छेद 56 और 61 के अनुसार राष्ट्रपति को महाभियोग के सिवाय अन्य किसी विधि द्वारा नहीं हटाया जा सकता।

 

वेतन-भत्ते एवं उन्मुक्तियाँ:-

·        अनुच्छेद 59 (3) के अनुसार राष्ट्रपति के कार्यकाल में इन उपलब्धियों को कम नहीं किया जा सकता।

 

राष्ट्रपति की शक्तियाँ:-

कार्यकारी शक्तियाँ:-

·        अनुच्छेद 27 और 299 के अन्तर्गत समस्त कार्य जैसे संधि-समझौतो इत्यादि राष्ट्रपति के नाम पर किये जाते हैं।

·        संघ सरकार के प्रमुख अधिकारी राष्ट्रपति नियुक्त करता है।

·        प्रधानमंत्री, मंत्री परिषद के सदस्य, भारत का मुख्य न्यायाधीश सर्वोच्च तथा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश, संघ लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष तथा अन्य सदस्य, भारत का महान्यायवादी, भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, वित्त आयोग के सदस्य तथा राज्यपात की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

·        राष्ट्रपति द्वारा विभिन्न आयोगों का गठन भी किया जाता है। जैसे संघ लोक सेवा आयोग, जल प्रदान से संबंधित आयोग राज्यों के समूहों के लिये संयुक्त आयोग, राजभाषा आयोग इत्यादि।

विधायी शक्तियाँ:-

·        राष्ट्रपति को दोनों सदनों के सत्र आहूत करने उनका सत्रावसान करने, दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाने लोकसभा का विघटन करने का अधिकार है।

·        राष्ट्रपति को राज्यसभा में 12 तथा लोक सभा 2 व्यक्तियों को नामित करने की शक्ति प्राप्त है।

·        संसद द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के पश्चात ही कानून का रूप लेते हैं।

·        राष्ट्रपति किसी भी विधेयक को पुनः विचार के लिये कह सकता है। लेकिन जब संसद उसे दोबारा राष्ट्रपति को भेजती है तो फिर राष्ट्रपति उस पर हस्ताक्षर करने को बाध्य हो जाता है।

·        कुछ विधेयक जैसे राज्यों का निर्माण या सीमा परिवर्तन संबंधी, धन विधेयक, विनयो विधेयक वाणिज्य तथा व्यापार को स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाने वाले विधेयक राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से ही प्रस्तुत किये जा सकते हैं।

·        राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा उसकी अनुमति के लिये आरक्षित विधेयक पर अनुमति देने के संबंध में भी अनुमति देने या पुनर्विचार के लिये भेजने की शक्ति है। पुनर्विचार के पश्चात भी वह अनुमति देने को बाध्य नहीं है।

·        जब संसद का अधिवेशन चल रहा हो तो राष्ट्रपति अध्यादेशो द्वारा कानून बना सकता है।

·        राष्ट्रपति द्वारा जारी किये गये अध्यादेश को कानूनी मान्यता प्राप्त है परन्तु उसका अनुमोदन सत्र के 6 सप्ताह के भीतर देना अनिवार्य है।

 

सैन्य शक्तियाँ

·        भारत का राष्ट्रपति भारत की तीन सशस्त्र सेनायें जल, थल और वायु सेना का सर्वोच्च सेनापति होता है।

·        उसे युद्ध की घोषणा करने तथा शांति स्थापित करने का अधिकार है। संसद विधि द्वारा राष्ट्रपति को इन शक्तियों को नियमित कर सकती हैं।

न्यायिक शक्तियाँ

·        राष्ट्रपति सर्वोच्य तथा उच्च न्यायालयों के मुख्य तथा अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है।

·        राष्ट्रपति को क्षमादान की शक्तियों प्राप्त है। वह किसी व्यक्ति के अपराधा को पूर्णता क्षमा कर सकता है।

·        वह दण्ड के स्थान व उससे कम दण्ड अर्थात दण्ड का लघुकरण कर सकता है।

·        प्रविलम्बन के अन्तर्गत वह किसी परिस्थिति के कारण अपराधी के दण्ड की प्रक्रिया को कुछ समय के लिये आगे बढ़ा देता है अर्थात विलम्ब कर देता है।

वित्तीय शक्तियाँ:-

·        वित्तीय शक्तियों के अन्तर्गत कोई भी धन विधेयक राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति के बिना लोकसभा में पेश नहीं किया जा सकता।

·        राष्ट्रपति की अनुमति के बिना किसी वित्तीय अनुदान की मांग नहीं दी जा सकती।

·        देश को आकस्मिक निधि पर राष्ट्रपति का नियंत्रण रहता है। आकस्मिक कार्य के लिये राष्ट्रपति आकस्मिक निधि में से धन कम कर सकता है।

·        राष्ट्रपति वित्त आयोग की नियुक्ति करता है। कट्रोलर तथा ऑडीटर जनरल की नियुक्ति भी राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

 

आपातकालीन शक्तियाँ:-

·        अनुच्छेद 352 के अन्तर्गत राष्ट्रपति को युद्ध विदेशी आक्रमण अथवा समस्त विद्रोह की स्थिति से उत्पन्न संकट में आपात्काल की घोषणा का अधिकार है।

·        44 वें संविधान संशोधन द्वारा अनुच्छेद 352 में संशोधन किया गया जिसमें अनुच्छेद 352 (1) के अनुसार राष्ट्रपति आपातकाल की घोषणा कर सकता है लेकिन इसके लिये मंत्रिमण्डल को अपने निर्णय की लिखित रूप में राष्ट्रपति को सिफारिश करनी आवश्यक है।

·        यदि राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाये कि किसी राज्य में संविधान के अनुसार शासन नहीं चल पा रहा तो वह अनुच्छेद 356 के तहत वहाँ संवैधानिक संकट की घोषणा कर सकता है तथा शासन अपने हाथ में ले सकता है।

·        यदि राष्ट्रपति को यह स्पष्ट हो जाये कि समस्त भारत या किसी राज्य विशेष की आर्थिक व्यवस्था बिगड़ जाये तो वह अनुच्छेद 360 के तहत वित्तीय संकट की घोषणा कर सकता है।

प्रथम राष्ट्रपति का निर्वाचन

·        संविधान सभा की 24 जनवरी, 1950 की बैठक में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को निर्विरोध भारत का प्रथम राष्ट्रपति चुन लिया गया।

·        डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने 26 जनवरी 1950 को भारतीय गणतन्त्र के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में पद भार संभाला ।

·        राष्ट्रपति पद के लिए संविधान के अधीन चुनाव मई, 1952 में हुए, जिसमें डॉ. राजेन्द्र प्रसाद विजयी हुए।

·        राष्ट्रपति के द्वितीय निर्वाचन में भी डॉ. राजेन्द्र प्रसाद पुनः निर्वाचित हो गए। इस प्रकार डॉ. राजेन्द्र प्रसाद 26 जनवरी, 1950 से 13 मई, 1962 तक पद पर रहे।

 

भारत का उपराष्ट्रपति:-

·        अनुच्छेद 63 के अनुसार भारत के संविधान में एक उपराष्ट्रपति की व्यवस्था भी की गई है, जो आवश्यकता पड़ने पर अंतरिम काल के लिए, राष्ट्रपति का कार्यभार संभाल सकता है।

·         अनुच्छेद 64 के अनुसार वह राज्य सभा का पदेन सभापति भी होता है और अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं कर सकता।

·        उपराष्ट्रपति राजदूतों तथा विदेशों के विशिष्ट व्यक्तियों से भेंट करता है। अमरीका के उपराष्ट्रपति की भांति, भारत के उपराष्ट्रपति का मुख्य कार्य भी उच्च सदन की अध्यक्षता करना है।

उपराष्ट्रपति का राष्ट्रपति के रूप में कार्य संचालन:-

·        अनुच्छेद 62 (1) के अनुसार यदि राष्ट्रपति पद की रिक्ति राष्ट्रपति पद की पदावधि की समाप्ति से होती है तो नए राष्ट्रपति का निर्वाचन राष्ट्रपति की पदावधि समाप्ति से पूर्व ही कर लिया जाना चाहिए। यदि किन्हीं कारणों से ऐसा संभव न हो तो अनुच्छेद 56 (1) (ग) के अनुसार पदासीन राष्ट्रपति अवधि समाप्ति के पश्चात् भी तब तक अपने पद पर

·        कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य संचालन करता रहेगा जब तक कि नव निर्वाचित राष्ट्रपति पद धारण नहीं कर लेता। इस तरह की रिक्तता में उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति का पद धारण नहीं करता।

·        अनुच्छेद 65 (1) के अनुसार यदि रिक्तता राष्ट्रपति की पदावधि पूरी होने के अतिरिक्त अन्य किसी कारण,

i.        राष्ट्रपति की मृत्यु होने पर

ii.      महाभियोग संकल्प पारित होने पर स्वयं पद त्याग या पद से हटाये जाने पर,

iii.    राष्ट्रपति के रूप में अपना कार्य करने की असमर्थता व्यक्त करने आदि पर हुई हो।

·        तब उपराष्ट्रपति तुरन्त राष्ट्रपति पद ग्रहण कर लेता है और अनुच्छेद 65(3) के अनुसार नए राष्ट्रपति के चयन तक पद पर बना रहता है। इस स्थिति में अधिक-से-अधिक छह माह के भीतर नए चुनाव करवाना आवश्यक होता है तथा इस दौरान उपराष्ट्रपति को वे सभी वेतन-भत्ते एवं उन्मुक्तियाँ उपलब्ध होती हैं जो राष्ट्रपति को प्राप्त होती है।

उपराष्ट्रपति पद के लिए योग्यता:-

अनुच्छेद 66 (3) के अनुसार उपराष्ट्रपति पद के लिए निम्न योग्यताएँ निर्धारित की गई हैं:-

·        वह भारत का नागरिक हो।

·        वह अपनी आयु के 35 वर्ष पूरे कर चुका हो।

·        वह राज्यसभा का सदस्य बनने की योग्यता रखता हो।

·        वह संघ सरकार, किसी राज्य सरकार या उसके अधीन किसी स्थानीय संस्था आदि का वेतन भोगी कर्मचारी न हो उसे अन्य कोई आर्थिक लाभ प्राप्त न होता हो।

·        यह संसद के किसी सदन या किसी राज्य के विधानमंडल का सदस्य न हो। यदि उपराष्ट्रपति निर्वाचित होते समय वह इनमें से किसी का सदस्य हो तो निर्वाचित होने के पश्चात् उसका वह स्थान रिक्त समझा जाता है।

उपराष्ट्रपति का निर्वाचन:-

·        अनुच्छेद 66(1) के अनुसार संसद के दोनों सदनों के कुल सदस्य (निर्वाचित व मनोनीत दोनों) एक संयुक्त अधिवेशन में उपराष्ट्रपति का चुनाव करते हैं।

·        उपराष्ट्रपति का निर्वाचन गुप्त मतदान प्रणाली के माध्यम से आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार एकल संक्रमणीय मत प्रणाली द्वारा होता है।

·        चुनावों से उत्पन्न विवाद का निर्णय उच्चतम न्यायालय करता है।

·        उपराष्ट्रपति के निर्वाचन में राज्यों के विधानमंडल भाग नहीं लेते।

 

उपराष्ट्रपति की पदावधि:-

·        उपराष्ट्रपति का निर्वाचन पाँच वर्ष के लिए किया जाता है।

·        उपराष्ट्रपति पाँच वर्ष पूर्ण होने के पश्चात् भी तब तक अपने पद पर बना रहता है जब तक कि उसके उत्तराधिकारी का निर्वाचन नहीं हो जाता।

·        उपराष्ट्रपति पाँच वर्ष की अवधि पूर्ण होने से पूर्व भी अपना पद त्याग सकता है या उसे पद मुक्त किया जा सकता है।

·        उपराष्ट्रपति निम्न अवस्थाओं में पदमुक्त हो सकता है:-

a.       राष्ट्रपति को अपना त्याग पत्र सौंप कर

b.      राज्य सभा द्वारा प्रस्ताव पारित करके।

·        उपराष्ट्रपति को पद से हटाये जाने का प्रस्ताव राज्यसभा में प्रस्तुत किया जाता है। इसके लिए राज्यसभा को प्रस्ताव प्रस्तुत करने से पूर्व इसकी लिखित सूचना 14 दिन पहले उपराष्ट्रपति को भेजनी पड़ती है।

·        राज्यसभा अपनी  कुल सदस्य संख्या के बहुमत से उपराष्ट्रपति के पद-मुक्ति का प्रस्ताव पारित कर दे और लोकसभा की भी उसे स्वीकृति प्राप्त हो जाए तो उपराष्ट्रपति अपदस्थ समझा जाता है।

·        उपराष्ट्रपति पर महाभियोग नहीं लगाया जाता।

·        यदि उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति के कार्यभार का वहन कर रहा होता है तो इस स्थिति में उस पर भी महाभियोग प्रक्रिया उसी प्रकार लगाई जाती है, जैसे राष्ट्रपति पर अधिरोपित की जाती है।

 

शपथ ग्रहण

·        अनुच्छेद 69 के अनुसार उपराष्ट्रपति अपना पद ग्रहण करने से पूर्व राष्ट्रपति अथवा उसके द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति के सम्मुख पद एवं गोपनीयता की शपथ लेता है और शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करता है।

 

वेतन एवं भत्ते

·        अनुच्छेद 97 के अनुसार उपराष्ट्रपति अपने पद का वेतन ग्रहण नहीं करता, बल्कि राज्यसभा के सभापति के रूप में अपना वेतन ग्रहण करता है।

·        निःशुल्क आवास भी दिया जाता है।

·        उपराष्ट्रपति का वेतन भारत की संचित निधि पर भारित होता है।

·        उपराष्ट्रपति के वेतन एवं भत्तों को उसकी पदावधि के दौरान घटाया नहीं जा सकता।

·        पदावधि के दौरान मृत्यु या पदावधि की समाप्ति की स्थिति में पारिवारिक पेंशन, आवास और चिकित्सा सुविधाओं का प्रावधान है।

 

उपराष्ट्रपति की शक्तियाँ:

·        वह राज्य सभा के कार्यों का संचालन करता है।

·        वह सदन की बैठक को स्थगित कर सकता है।

·        सभी विधेयक प्रस्ताव तथा प्रश्न उसकी अनुमति से ही सदन में लिये जा सकते हैं।

·        अनुच्छेद 65 के अनुसार यदि राष्ट्रपति की मृत्यु हो जाए या किसी कारणवश अपने पद पर न हो तो उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है।

·        जिस समय उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है उसे वही सब वेतन सुविधायें मिलती है जो राष्ट्रपति को मिलती है।

·        राष्ट्रपति अपना त्यागपत्र उपराष्ट्रपति को देता है। उपराष्ट्रपति इसकी सूचना लोकसभा अध्यक्ष को देता है।

 

भारत का प्रधानमंत्री:-

·      संविधान के अनुच्छेद 74 में यह प्रावधान है कि राष्ट्रपति को उसके कार्यों के सम्पादन में सहायता और परामर्श देने के लिए एक मंत्रिपरिषद् होगी, जिसका प्रधान प्रधानमंत्री होगा।

·        भारतीय संविधान के अनुसार प्रधानमंत्री का पद बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।

·        प्रधानमंत्री ही संघ की कार्यपालिका का वास्तविक प्रमुख होता है।

·        प्रधानमंत्री  संसद तथा कार्यपालिका दोनों पर नियंत्रण रखता है।

·        मंत्रिपरिषद् का अध्यक्ष होने के नाते प्रधानमंत्री सरकार का भी अध्यक्ष होता है। साथ ही, वह संसद में अपनी पार्टी का नेता तथा लोक निर्वाचित लोकसभा का नेता होता है।

 

प्रधानमंत्री की नियुक्ति:-

·        अनुच्छेद 75 (1) में केवल इतना उल्लेख है कि प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा तथा अन्य मंत्रियों की नियुक्ति प्रधानमंत्री की मन्त्रणा पर राष्ट्रपति करेगा।

·        संविधान प्रधानमंत्री के चयन के संबंध में मौन है ।

·        सैद्धान्तिक रूप से प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति के व्यक्तिगत अधिकार के अन्तर्गत आती है, किंतु संसदीय प्रणाली की सरकार में केवल बहुमत दल के नेता को ही प्रधानमंत्री नियुक्त किया जा सकता है।

·         क्योंकि उसकी मन्त्रणा से बनी मंत्रिपरिषद् अनुच्छेद 75 (3) के अन्तर्गत सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है।

·        अनुच्छेद 75 (5) के अनुसार छह माह तक संसद की सदस्यता प्राप्त किए बिना भी प्रधानमंत्री पद पर नियुक्ति की जा सकती है।

·        यदि लोकसभा में किसी भी दल को बहुमत प्राप्त नहीं होता तो राष्ट्रपति को इस संबंध में स्वविवेक से निर्णय लेने का अवसर प्राप्त हो जाता है।

 

प्रधानमंत्री पद के लिए योग्यता:-

·        प्रधानमंत्री लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल का नेता हो।

·        लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल का नेता होने के लिए आवश्यक है कि वह लोकसभा का सदस्य हो ।

·        लोकसभा का सदस्य न होते हुए भी किसी व्यक्ति की प्रधानमंत्री पद पर नियुक्ति की जा सकती है, किंतु इसके लिए उसे छह माह के अन्तर्गत लोकसभा का सदस्य होना पड़ता है।

 

वेतन एवं भत्ते:-

·        समय-समय पर संसद द्वारा पारित वेतन व भत्ते संबंधी अधिनियम के अनुसार प्रधानमंत्री को वेतन प्राप्त होता है। साथ ही निःशुल्क आवास, यात्रा, चिकित्सा, टेलीफोन आदि की सुविधाएं उपलब्ध करायी जाती हैं। भत्ते के रूप में प्रधानमंत्री को निर्वाचन क्षेत्र, आकस्मिक खर्चे, अन्य खर्चे एवं डी. ए. आदि प्रदान किए जाते हैं।

 

प्रधानमंत्री के अधिकार एवं कार्य:-

·        अनुच्छेद 75 (1) के अनुसार प्रधानमंत्री अपने मंत्रिमंडल के अन्य सदस्यों को नियुक्त करने, मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने तथा मंत्रिमंडल से उनके त्यागपत्र को स्वीकार करने की सिफारिश राष्ट्रपति से करता है।

·        वह अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों को विभाग का आवंटन करता है तथा किसी भी मंत्री को एक विभाग से दूसरे विभाग में अन्तरित कर सकता है।

·        प्रधानमंत्री मंत्रिमंडल की बैठक की अध्यक्षता करता है।

·        अनुच्छेद 78 के अनुसार प्रधानमंत्री का यह कर्त्तव्य है कि वह संघ के कार्य-कलाप के प्रशासन सम्बन्धी और विधान विषयक प्रस्थापनाओं की सूचना राष्ट्रपति को दे और यदि राष्ट्रपति किसी ऐसे विषय पर प्रधानमंत्री से सूचना मांगता है तो प्रधानमंत्री राष्ट्रपति को सूचना देने के लिए बाध्य है।

·        अनुच्छेद 74(1) के अनुसार प्रधानमंत्री मंत्रिमण्डल का प्रधान होता है और उसकी मृत्यु या त्यागपत्र से मन्त्रिमण्डल का विघटन हो जाता है।

 

उप प्रधानमंत्री

·        भारतीय संविधान में उप प्रधानमंत्री पद की कोई व्यवस्था नहीं है। इसके बावजूद समय-समय पर इस पद की व्यवस्था की जाती रही है।

·        पहली बार इस पद का सृजन प्रथम लोकसभा के दौरान प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा किया गया था।

·        सरदार वल्लभ भाई पटेल उप प्रधानमंत्री पद को सुशोभित करने वाले प्रथम व्यक्ति थे।

·        संवैधानिक दृष्टि से उप प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल के किसी अन्य सदस्य की स्थिति में कोई अंतर नहीं होता है. परंतु व्यवहार में उप प्रधानमंत्री सरकार में प्रधानमंत्री के बाद दूसरे स्थान पर होता है।

·        प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति में वह प्रधानमंत्री के समस्त दायित्वों का निर्वहन करता है।

मंत्रिपरिषद्:-

·        अनुच्छेद 74 के अनुसार राष्ट्रपति को उसके कार्यों के सम्पादन हेतु सहायता एवं परामर्श देने के लिए एक मंत्रिपरिषद् होगी जिसका प्रधान प्रधानमंत्री होगा।

·        संविधान में राष्ट्रपति को सहायता तथा परामर्श देने के लिए एक मंत्रिपरिषद् की व्यवस्था की गई है, लेकिन संसदात्मक व्यवस्था के अंतर्गत व्यवहार में राष्ट्रपति एक संवैधानिक शासक मात्र है और वास्तविक रूप में राष्ट्रपति के नाम पर शासन की समस्त शक्तियों का उपयोग मंत्रिपरिषद् के द्वारा ही किया जाता है।

·        संविधान राष्ट्रपति को यह अधिकार देता है कि यदि किसी विषय में मंत्रिपरिषद् के पुनः विचार की आवश्यकता है, तो वह ऐसे निर्णय को पुनर्विचार हेतु मंत्रिपरिषद् में भेज सकता है, किंतु पुनर्विचार के पश्चात् दिये गए निर्णय को मानने के लिए राष्ट्रपति बाध्यकारी है अर्थात् वह इसकी उपेक्षा नहीं कर सकता।

·        मंत्रिपरिषद् अपने सम्पूर्ण कार्यों के लिए लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है अर्थात् मंत्रिपरिषद् को संविधान ने मान्यता प्रदान की है।

·        यह भारतीय संविधान का महत्त्वपूर्ण अंग है।

·        यही संसद और राष्ट्रपति के मध्य की कडी है। इस प्रकार माँत्रपरिषद् में देश की वास्तविक कार्यपालिका शक्ति निहित है।

 

मंत्रिपरिषद् का निर्माण:-

·        अनुच्छेद 75 के अनुसार राष्ट्रपति सर्वप्रथम मंत्रिपरिषद् के प्रधान के रूप में प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है।

·        प्रधानमंत्री अपने दल के अत्यन्त प्रतिभा संपन्न नेताओं को राष्ट्रपति के माध्यम से मंत्रियों के रूप में नियुक्त करता है।

·        राष्ट्रपति उस व्यक्ति को प्रधानमंत्री पद के लिए आमंत्रित करता है, जिसे लोकसभा में बहुमत का समर्थन प्राप्त है।

·        नियुक्त मंत्री राष्ट्रपति के प्रसादपना अपने पद धारण करते हैं।

·        मंत्रिपरिषद् सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है।

·        प्रत्येक मंत्री अपने पद धारण करने से पूर्व राष्ट्रपति के सामने अपने पद और गोपनीयता की शपथ लेते हैं।

·        यदि कोई मंत्री जो निरन्तर छह माह की अवधि तक संसद के किसी सदन का सदस्य नहीं रहता है तो उस अवधि की समाप्ति पर मंत्री नहीं रह सकता।

·        राष्ट्रपति अनिवार्यतः बहुमत दल के नेता को ही प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त करता है, किन्तु कुछ विषम परिस्थितियों में राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री की नियुक्ति में स्वविवेक से कार्य करना पड़ता है, जैसे:-

a.       उस समय जबकि लोकसभा में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त न हो।

b.      उस समय जबकि बहुमत प्राप्त दल में कोई निश्चित नेता या प्रधानमंत्री पद के दो प्रभावशाली दावेदार उपस्थित हों।

c.       राष्ट्रीय संकट के समय राष्ट्रपति लोकसभा को भंग करके कुछ समय के लिए स्वेच्छा से कामचलाऊ सरकार का नेता मनोनीत कर सकता है।

 

मंत्रिपरिषद् की सदस्य संख्या:-

·        संविधान द्वारा मंत्रिपरिषद् के सदस्यों की संख्या निश्चित नहीं की गयी आवश्यकतानुसार मंत्रियों की संख्या घटायी बढ़ायी जा सकती है।

·        वर्ष 2003 में, 91वें संविधान संशोधन द्वारा केंद्र तथा राज्य सरकार की मंत्रिपरिषद् में सदस्यों की संख्या निश्चित कर दी गई है।

·        विधेयक के प्रावधानों के अनुसार केंद्र एवं राज्यों में मंत्रिपरिषद् का अधिकतम आकार, निचले सदन की कुल सदस्य संख्या का 15 प्रतिशत तक ही हो सकेगा।

·        इससे पूर्व सदस्यों की कुल संख्या के 10 प्रतिशत तक रखने का प्रावधान था।

 

छोटे राज्यों के मंत्रिपरिषद् की सदस्य संख्या:-

·        सिक्किम और मिजोरम जैसे छोटे राज्यों में, जहां विधानसभा में सदस्यों की कुल संख्या क्रमशः 32 और 40 है, मंत्रियों की संख्या 7 रखने का प्रावधान पहले विधेयक में किया गया था, किन्तु स्थायी समिति की संस्तुतियों के आधार पर संसद द्वारा पारित संशोधित विधेयक में छोटे राज्यों के लिए 12 मंत्रियों का प्रावधान किया गया है।

 

मंत्रियों का कार्यकाल:-

·        अनुच्छेद 75 (2) के अनुसार मंत्री राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत ही अपने पद पर आसीन रहेंगे।

·        वास्तव में किसी मंत्री को पदमुक्त करने की राष्ट्रपति की शक्ति प्रधानमंत्री में निहित है अर्थात् यहां राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत का अभिप्राय प्रधानमंत्री के प्रसादपर्यंत से है।

मंत्रिपरिषद् के कार्य एवं शक्तियां:-

·        यह देश के लिये विधि नीतियों का निर्माण करती है। जिसके आधार पर देश के प्रशासन को चलाया जाता है।

·        मंत्रिपरिषद का राजकीय बिल पर पूर्ण नियंत्रण होता है। बजट का निर्माण, नये कर लगाना तथा पुराने करो की दरों में सुधार करनाइत्यादि मंत्रिमंडल के ही कार्य हैं।

·        कानूनों को अमल में लाना, देश में शांति व्यवस्था बनाए रखना तथा बाह्य आक्रमणों से देश की सुरक्षा करना मंत्रिपरिषद के हो कार्य है।

·        कैबिनेट द्वारा देश के वैदेशिक संबंधों पर नियंत्रण रखा जाता है। सभी अन्तर्राष्ट्रीय समझौतों तथा संधियों का अनुमोदित मंत्री परिषद द्वारा किया जाता है।

·        सभी महत्वपूर्ण विधेयको ,प्रस्तावों को संसद में प्रस्तुत कर उन्हें पारित कराती है।

·        मंत्रिमंडल के परामर्श से हाँ दोनों सदनों के मनोनीत सदस्य नियुक्त किये जाते हैं। राज्यों के राज्यपाल, उच्चतम तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, महाधिवक्ता महालेखा परीक्षक और सेना के सेनापतियों की नियुक्ति मंत्रिमंडल के परामर्श से ही की जाती है।

·        राष्ट्रपति अब आपात की उदघोषणा तब तक नहीं कर सकता जब तक कि इस विषय में मंत्रिमंडल ने निर्णय ना लिया हो तथा लिखित रूप में यह निर्णय राष्ट्रपति के समक्ष पहुंचना आवश्यक है।

 

भारत का महान्यायवादी:-

·        अनुच्छेद 76(1) के अनुसार भारत का राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के योग्य किसी व्यक्ति को भारत का महान्यायवादी नियुक्त करेगा। भारत के महान्यायवादी के पद को संविधान में विशेष स्थान दिया गया है।

·        यह भारत का सर्वप्रथम विधिक अधिकारी होता है। इसे भारत के सभी न्यायालयों में प्रथम सुनवाई का अधिकार प्राप्त है। इस रूप में यह निम्न कर्त्तव्यों का निर्वहन करता है:-

i.        भारत सरकार की विधि सम्बन्धी ऐसे विषयों एवं कार्यों के बारे में सलाह एवं सहायता देगा, जिनके लिए राष्ट्रपति उसको समय-समय पर निर्देशित करे।

ii.      वह उन कर्त्तव्यों का पालन करेगा, जिनको संविधान समय-समय पर उसको सौंपे।

·        महान्यायवादी अपने कर्त्तव्यों के पालन में भारत के राज्यक्षेत्र में सभी न्यायालयों में सुनवाई का अधिकारी होगा।

·        अनुच्छेद 88 के अनुसार उसे संसद के किसी सदन या उसकी किसी समिति में बोलने, कार्यवाहियों में भाग लेने का अधिकार होगा, किंतु सदन में मतदान का अधिकार नहीं होगा।

·        अनुच्छेद 76(4) के अनुसार महान्यायवादी राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त अपना पद धारण करेगा और ऐसा पारिश्रमिक प्राप्त करेगा जो राष्ट्रपति अवधारित करे।

·        सोलिसिटर जनरल की नियुक्ति महान्यायवादी की सहायता के लिए की जाती है।

 

भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक:-

·        संविधान में भाग 5 के अनुच्छेद 148 के अन्तर्गत नियंत्रक महालेखा परीक्षक का पद होगा। जो देश की राज्य तथा केन्द्र दोनों स्तर पर वित्तीय प्रणाली नियंत्रित करेगा।

·        इसकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

·        अपने पद पर 65 वर्ष की आयु तक या 6 वर्ष की अवधि की समाप्ति तक बना रहता है।

·        यह समय से पूर्व स्वयं राष्ट्रपति को संबोधित कर अपने हस्ताक्षर सहित त्याग पत्र देकर पद छोड़ सकता है।

·        राष्ट्रपति नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक को दुर्व्यवहार व असमर्थता के आधार पर हो पद से हटा सकता है। ऐसा करने के लिये संसद के दोनो सदन नियन्त्रक महालेखा परीक्षक को पद से हटाने का अनुरोध करते हैं।

·         निशुल्क सरकारी आवास, चिकित्सा सुविधा तथा अन्य भत्ते प्रदान किये जाते हैं। महालेखा परीक्षक की स्वाधीनता को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से निम्नलिखित प्रावधान किये गये हैं।

i.        महालेखा परीक्षक को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है, लेकिन इसे दोनों सदनों के संयुक्त समवेदन पर ही राष्ट्रपति ह सकता है।

ii.      इसकी वेतन और सेवा की शर्तें विधिक होती है इसकी पदावधि के दौरान कोई अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता।

iii.    उसे अपने प्रशासनिक अधिकारियों पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त है।

 

नियंत्रक महालेखा परीक्षक की शक्तियाँ:-

·        भारत और प्रत्येक राज्य की सरकार या संघ राज्य क्षेत्र की संचित निधि, आकस्मिकता निधि और लोक लेखाओं से संबंधित सभी व्ययों की परीक्षा (जांच) करना और यह प्रतिवेदन देना कि क्या व्यय संविधान एवं कानून के अनुसार किए गए हैं या नहीं?

·        संघ या राज्य सरकार के विभागों द्वारा किये गए सभी व्यापार और विनिर्माण के लाभ और हानि और लेखाओं की जांच तथा उन पर अपनी रिपोर्ट देना।

·        अनुच्छेद 151 के अनुसार नियंत्रक महालेखा परीक्षक संघ के लेखाओं संबंधी प्रतिवेदन राष्ट्रपति को प्रस्तुत करेगा, जिसे राष्ट्रपति संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष प्रस्तुत करेगा। राज्य के लेखा संबंधी प्रतिवेदन राज्य के राज्यपाल को प्रस्तुत किये जाएंगे, जिसे राज्यपाल राज्य विधानमंडल के समक्ष प्रस्तुत करेगा।

·        उन सरकारी कंपनियों और अन्य निकायों की, जो संघ या राज्य के राजस्व द्वारा पर्याप्त रूप से वित्त प्राप्त करती हैं. प्राप्ति और व्यय की परीक्षा करना और प्रतिवेदन देना। चाहे इस संबंध में कोई निर्देशित विधान हो या नहीं।

 

भारत में महालेखा परीक्षक की स्थिति:-

·        भारत के महालेखा परीक्षक को राष्ट्रीय वित्त का संरक्षक कहा जाता है, क्योंकि यह करदाताओं के हितों को भी सुरक्षित रखने वाला होता है।

·        भारत में इसके द्वारा संपरीक्षा का कार्य तब आरम्भ होता है, जबकि धन का व्यय किया जा चुका होता है।

·        नियंत्रक महालेखा परीक्षक अधिनियम, 1971 द्वारा इसे यह शक्ति प्राप्त है कि यह सरकारी कम्पनियों और अन्य निकायों, जो संघ या राज्य के राजस्व द्वारा पर्याप्त रूप से पोषित हैं. की प्राप्ति और व्यय की संपरीक्षा करे और इस संबंध में अपने प्रतिवेदन प्रस्तुत करे, चाहे इस विषय में कोई विनिर्दिष्ट विधान हो या नहीं।

·        भारत का नियंत्रक महालेखा परीक्षक प्रतिवर्ष अपना संपरीक्षा प्रतिवेदन राष्ट्रपति के माध्यम से संसद को प्रस्तुत करवाता है।

·        राज्यों के लेखा संबंधी प्रतिवेदन नियंत्रक महालेखा परीक्षक के द्वारा राज्यपाल को प्रस्तुत किए जाते हैं, जो उसे राज्य विधानसभा के समक्ष रखवाता है।

इसे भी पढ़ें -

संविधान का निर्माण

प्रस्तावना

भारतीय संविधान के स्रोत एवं विशेषताएं

संघ और उसका राज्य क्षेत्र

नागरिकता

मौलिक अधिकार

राज्य के नीति निर्देशक तत्व

मौलिक कर्त्तव्य

राज्य की कार्यपालिका

राज्य विधानमंडल

भारत में स्थानीय स्वशासन

संघ राज्य क्षेत्र, अनुसूचित तथा जनजातीय क्षेत्रों का प्रशासन


इतिहास पढ़ने के लिए नीचेदिए गए लिंक क्लिक करें-

इसे भी पढ़ें -


कक्षा-6 के नागरिक शास्त्र के अन्य अध्याय को यहाँ से पढ़े 


कक्षा -7 के इतिहास को पढ़ने के लिए इसे भी देखे -

कक्षा -6 के इतिहास को पढ़ने के लिए इसे भी देखे -



आप सभी को यह पोस्ट कैसी लगी इसके बिषय में अपनी राय जरूर दे। 

अपना कीमती सुझाव जरूर दे धन्यवाद।

कोई टिप्पणी नहीं

If you have any doubt , Please let me know

'; (function() { var dsq = document.createElement('script'); dsq.type = 'text/javascript'; dsq.async = true; dsq.src = '//' + disqus_shortname + '.disqus.com/embed.js'; (document.getElementsByTagName('head')[0] || document.getElementsByTagName('body')[0]).appendChild(dsq); })();