Ncert Class-7 History Chapter-5(शासक और इमारते ) pdf notes in hindi





hi friends आप सब कैसे है। आशा करता हु की आप सब अच्छे होंगे। आज हम सब hindi में NCERT Class-7  ( Chapter-5 ) शासक और इमारते   Notes and summary in Hindi me आगे पढ़ेंगे और एक अच्छे से notes तैयार करेंगे जो आने वाले आगामी किसी भी प्रकार की प्रतियोगी परीक्षाओं में हेल्प करेगी। 


Chapter-5

शासक और इमारते -

  • आठवीं और अठारहवीं शताब्दीयों के बीच राजाओं तथा उनके अधिकारीयों ने दो तरह की इमारतों का निर्माण किया। 
  • a) सुरक्षित संरक्षित तथा इस दुनिया और दूसरी दुनिया में आराम-विराम की भव्य जगहें-किले,महल तथा मकबरें थे। 
  • b) मंदिर, मसजिद , हौज , कुएँ ,सराय तथा बाजार जैसी जनता के उपयोग की इमारतें थी। 
  • नोट-  घरेलू स्थापत्य - व्यापारियों की विशाल हवेलियों के अवशेष अठारहवीं शताब्दी से मिलाने शुरू हुई। 

कुतुबमीनार-  ( पाँच मंजिला ईमारत )

  • 1199 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने पहली मंजिल का निर्माण करवाया। 
  • 1229 के आस-पास इल्तुतमिश ने शेष चार मंजिलों का निर्माण करवाया। 
  • मरम्मत कार्य - अलाउद्दीन खिलजी, मुहम्मद तुगलक, फिरोज शाह तुगलक तथा इब्राहिम लोदी ने इसकी मरम्मत करवाई। 
  • मीनार के छज्जे पर अरबी भाषा में अभिलेख लिखे है। 

अनुप्रस्त टोडा निर्माण शैली-

  • सातवीं और दसवीं शताब्दी के मध्य वास्तुकार भवनों में और आधुनिक अमर, दरवाजे और खिड़कियां बनाने लगे।  छत ,दरवाजे और खिड़कियां अभी भी दो ऊर्ध्वाधर खम्भों के आर-पार थे। वास्तुकला की यही शैली अनुप्रस्त टोडा निर्माण कहलाई जाती है। 
  • आठवीं से तेरहवीं शताब्दी के बीच मंदिरों मस्जिदों, मकबरों तथा सीढ़ीदार कुओं ( बावली ) से जुड़े भवनों के निर्माण में इस शैली का प्रयोग हुआ। 
  • नोट- कंदरिया महादेव मंदिर -धंगदेव ( चंदेल वंश ) द्वारा 999 में निर्माण। 
  • तंजाबर -का राजराजेश्वर मंदिर - राजराजेश्वरदेव द्वारा निर्माण कराया गया। 

अभियांत्रिकी कौशल तथा निर्माण कार्य-

  • बारहवीं शताब्दी में दो प्रौद्दोगिकी एवं शैली सम्बन्धी परिवर्तन दिखाई पड़ते है। 
  • a) दरवाजों और खिड़कियों के ऊपर की अधिरचना का भार कभी-कभी मेहराबों पर दाल दिया जाता था। वास्तुकला का यह ' चापाकार ' रूप था जिसे 'डाट अधिरचना के नाम से जाना जाता था। 
  • b) निर्माण कार्य में चूनापत्थर तथा सीमेंट का प्रयोग बढ़ गया। 

मंदिरों, मसजिदों और हौजों का निर्माण -

  • मंदिर और मसजिद अपने संरक्षक की शक्ति, धन-वैभव तथा भक्ति भाव का भी प्रदर्शन करते थे। 
  • राजराजेश्वरम मंदिर का निर्माण राजाराजदेव ने अपने देवता राजराजेश्वरम की उपासना हेतु किया था। 
  • a) राजा ने अपना नाम देवता से मिलता जुलता रखा क्योंकि यह नाम मंगलकारी थी और राजा स्वयं को ईश्वर के रूप में दिखाना चाहता था। 
  • मुसलमान सुल्तान तथा बादशाह स्वयं को भगवान के अवतार होने का दावा तो नहीं करते थें किन्तु फारसी दरबारी इतिहासों में सुल्तान का वर्णन 'अल्लाह की परछाई ' के रूप में हुआ है। 
  • a) दिल्ली की एक मस्जिद के अभिलेख से पता चलता है कि अल्लाह ने अलाउद्दीन को शासन इसलिए चुना था, क्योंकि उसमे अतीत के महान विधिकर्ताओ मूसा और सुलेमान की विशेषताएं मौजूद थी। 
  • यदि राजा हौजों और जलाशयों का निर्माण कराता तो प्रजा इसकी बहुत प्रशंसा करती थी। 
  • a) सुल्तान इल्तुतमिश ने देहली-ए-कोहना के निकट एक विशाल तालाब का निर्माण कराया जिसे हौज-ए-सुल्तानी अथवा राजा का तालाब कहा जाता है। 
  • नोट-1  नवी शताब्दी के आरम्भ में पांड्यन राजा श्रीमर श्रीवल्लभ ने श्रीलंका पर आक्रमण कर राजा सेन प्रथम ( 831-851 ) को पराजित किया। 
  • नोट-2  ग्यारहवीं शताब्दी के आरम्भ में चोल राजा राजेंद्र प्रथम ने अपनी राजधानी में शिव मंदिर का निर्माण करवाया तो उसने पराजित शासकों से जब्त की गयी उत्कृष्ट प्रतिमाओं से इसे भर दिया। 
  • नोट-3  गजनी का सुल्तान महमूद राजेंद्र प्रथम का समकालीन था। 
  • a) भारत में अपने अभियानों के दौरान उसने पराजित राजाओं के मंदिरों को अपवित्र किया तथा उनके धन  मूर्तियों को लूट लिया। 
  • b) सोमनाथ मंदिर नष्ट करके उसने एक इस्लामी योद्धा के रूप में श्रेय प्राप्त करने का प्रयास किया। 

बाग ,मकबरे तथा किले-

  • बाबर, हुमायूँ , अकबर, जहांगीर और विशेष रूप से शाहजहाँ , साहित्य कला और वास्तुकला में व्यक्तिगत रूचि लेते थे। 
  • अपनी आत्मकथा में बाबर ने औपचारिक बागों की योजनाओं और उनके बनाने में अपनी रूचि का वर्णन किया है। 
  • ये बाग दीवार से घिरे होते थे तथा कृत्रिम नहरों द्वारा चार भागों में विभाजित आयताकार हाते में स्थित थे। 
  • a) चार समान हिस्से में बटे होने के कारण इसे चारबाग कहा जाता था। 
  • चारबाग बनाने की परम्परा अकबर के समय से शुरू हुई। कुछ सुन्दर चारबाग जैसे-हुमायूँ का मकबरे का चारबाग दिल्ली 1562-1571 , कश्मीर में शालीमार बाग का सीढ़ीदार चारबाग ( 1620-1634 के मध्य )

हुमायूँ का मकबरा -

  • इसकी प्रेणना अकबर के वास्तुशिल्पियों ने उसके मध्य एशियाई पूर्वज तैमूर के मकबरे से ली। 
  • इसमें केंद्रीय गुम्बद ( जो बहुत ऊँचा था ), मेहराबदार प्रवेश द्वार ( पिश्तक ) व यह मकबरा एक विशाल चारबाग के मध्य स्थित है। 
  • इसका निर्माण आठ स्वर्गो अथवा हश्ट ब्रिहिश्त की परम्परा में हुआ था, जिसमें एक केंद्रीय कक्ष, आठ कमरों से घिरा होता था। 
  • इस इमारत का निर्माण लाल बलुआ पत्थर से हुआ था तथा इसके किनारे सफ़ेद संगमरमर से बने थे। 
  • नोट- मुग़ल बादशाह शाहजहाँ के इतिहासकार ने शासक को ' साम्राज्य व धर्म की कार्यशाला का वास्तुशिल्पी ' बताया। 

शाहजहाँ के शासनकाल में निर्माण कार्य-

  • शाहजहाँ के आरम्भिक वर्षों में राजधानी आगरा थी। 
  • उसके शासन में सार्वजनिक सभा कक्ष ( दिवान-ए-आम ) व व्यक्तिगत सभा कक्ष ( दिवान-ए-खास ) एक विशाल आंगन में स्थित थे दरबार चिहिल सुतुन अथवा चालीस खम्भों के सभा भवन भी कहलाते थे। 
  • शाहजहाँ ने दिल्ली के लाल किले में सिंहासन के पीछे पितरा-दुरा  के जड़ाऊ काम की एक श्रंखला बनवाई जिसमे पौराणिक यूनानी देवता ऑर्फियस को वीणा बजाते हुए चित्रित किया गया था। 
  • पितरा-दूर -उत्कीर्णित संगमरमर अथवा बलुआ पत्थर पर रंगीन,ठोस पत्थरों को दबाकर बनाए गए सुन्दर तथा अलंकृत नमूने। 
  • ताजमहल शाहजहाँ की शासन की भव्यतम वास्तुकलात्मक उपलब्धि है। इसका निर्माण ( 1623-1643 ) लगभग 20 साल में पूरा हुआ। 
  • a) यहाँ सफ़ेद संगमरमर का मकबरा नदी तट के एक चबूतरे तथा बाग इसके दक्षिण में बनाया गया था। 

वास्तुकलात्मक शैली का आदान-प्रदान -

  • मथुरा के निकट वृन्दावन में बने मंदिरो की वास्तुकलात्मक शैली फतेहपुर सीकरी के मुग़ल महलों से बहुत मिलती-जुलती थी।  जैसे-
  • 1) वृन्दावन में गोविन्द देव मंदिर ( 1590) का अंदुरनी भाग जिसका निर्माण लाल बलुआ पत्थर से। 
  • a) इसमें दो प्रतिच्छेदी मेहराबों पर इसकी ऊँची भीतरी छत का निर्माण किया था। 
  • b) वास्तुकला की यह शैली उत्तर-पूर्वी ईरान ( खुरासान से आई और फतेहपुर सीकरी में इसका प्रयोग किया गया। 
  • 2) बंगाल की झोपड़ी ( बांग्ला गुम्बद ) को मुगलों ने अपनी वास्तुकला में प्रयोग किया। 
  • 3)अकबर की राजधानी फतेहपुर सीकरी पर गुजरात की व मालवा की वास्तुकलात्मक शैलियों का प्रभाव दिखता है। 
  • 4) फतेहपुर सीकरी के जोधाबाई महल में छत के अलंकृत स्तम्भ, गुजरात क्षेत्र की वास्तुकलात्मक परम्पराओं से प्रभावित है। 

अन्यत्र - चर्च -

  • बारहवीं शताब्दी से फ़्रांस में आरम्भिक भवनों की तुलना में अधिक ऊँचे व हलके चर्चों के निर्माण के प्रयास शुरू हुए। वास्तुकला की यह शैली ' गोथिक ' नाम से जानी जाती है। 
  • सर्वोत्त्कृत चर्चों में पेरिस का नाट्रेड चर्च है। 
विस्तार से पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करे- 

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