Ncert Class-8 History Chapter-7बुनकर , लोहा बनाने वाले और फैक्ट्री मालिक ) pdf notes in hindi


hi friends आप सब कैसे है। आशा करता हु की आप सब अच्छे होंगे। आज हम सब hindi में NCERT Class-8  ( Chapter- 7 (बुनकर , लोहा बनाने वाले और फैक्ट्री मालिक Notes and summary in Hindi me आगे पढ़ेंगे और एक अच्छे से notes तैयार करेंगे जो आने वाले आगामी किसी भी प्रकार की प्रतियोगी परीक्षाओं में हेल्प करेगी। 

Chapter-7

बुनकर , लोहा बनाने वाले और फैक्ट्री मालिक 

1. उन्नीसवीं सदी में सूती कपडे के मशीनी उत्पादन में ब्रिटेन को दुनिया का सबसे प्रमुख औद्योगिक राष्ट्र बना दिया था। 
2. 1850 में लोहा और इस्पात उद्योग ब्रिटेन में पनपने की वजह से इसे "दुनिया का कारखाना " कहा जाने लगा। 

भारतीय कपडे और विश्व बाजार 

1. बंगाल पर अंग्रेजो की विजय से पहले 1750 के आस-पास भारत पूरी दुनिया में कपड़ा उत्पादन के क्षेत्र में सबसे आगे था। 

2. दक्षिण-पूर्वी एशिया ( जावा, सुमात्रा और पेनांग ) तथा पश्चिमी एवं मध्य एशिया में इन कपड़ो का भारी व्यापार था। 
3. यूरोप के व्यापारियों ने भारत से आया बारीक़ सूती कपड़ा सबसे पहले ईराक के मोसूल शहर में अरब के व्यापारियों के पास देखा था। 
  • बारीक़ बुनाई वाले सभी कपड़ों को " मस्लिन " ( मलमल ) कहने लगे। 
4. मसालों की तलाश में पुर्तगाली केरल के तट कालीकट पर पहुंचे तो वे वहाँ से मसालो के साथ सूती कपडे भी ले गए। जिसे "कैलिको " ( कालीकट से निकला शब्द ) कहने लगे। 
5. बही - इसमें सूती और रेशमी कपडो की 98 किस्मे है जिन्हे यूरोपीय व्यापारी पीस गुड्स कहते थे जो आम तौर पर 20 गज लम्बा और 1 गज चौड़ा थान होता था। 
6. थोक में जिन कपड़ो ( छापेदार सूती कपडे भी ) का ऑर्डर दिया गया। उन्हें ये व्यापारी शिट्ज , कोसा ( या खस्सा ) और बंडाना कहते थे। 
शिट्ज-यह हिंदी की 'छींट ' शब्द से निकला है। 
बंडाना-यह हिंदी के 'बांधना 'शब्द से निकला है। 
नोट- जामदानी बुनाई -( बीसवीं सदी की शुरुआत में )

  • सूती और सोने के धागो के इस्तेमाल से 
  • बंगाल में स्थित ढाका और संयुक्त प्रान्त ( वर्त्तमान उत्तर प्रदेश ) के लखनऊ जामदानी बुनाई के सबसे महत्वपूर्ण केंद्र थे। 
नोट- बारीक़ कपडे पर छपाई ( छींट ) उन्नीसवीं सदी के मध्य मसूलीपट्टनम ( आंध्र प्रदेश ) 
नोट-  बंडाना शैली ( राजस्थान और गुजरात ) बीसवीं सदी के प्रारम्भ में। 

यूरोपीय बाजारों में भारतीय कपड़ा-

1. अठारहवीं सदी में इंग्लैण्ड के ऊँन व रेशम निर्माताओं ने भारतीय कपड़ों के आयात का विरोध करने लगे थे। 
2. 1720 में ब्रिटिश सरकार ने इंग्लैंड में छापेदार सूती कपडे-छींट -के इस्तेमाल पर पाबन्दी लगा दिया इस कानून को भी कैलिको अधिनियम ही कहा गया। 
3. 1764 में 'जॉन के ' ने स्पिनिंग जैनी का अबिष्कार किया जिससे परंपरागत तकलियों की उत्पादकता काफी बढ़ गई। 
  • 1786 में रिचर्ड अर्कराइड ( हाइड्रोपॉवर इंजन का अबिष्कार किया था ) ने वाष्प इंजन का अबिष्कार किया जिसने सूती कपडे की बुनाई को क्रन्तिकारी रूप से बदल दिया। 
4. डच, फ्रेंच, ब्रिटिश और अन्य यूरोपीय कम्पनियाँ भारत से चाँदी के बदले सूती रेशमी कपडे खरीदती थी। 

बुनकर-

1. ये आमतौर पर बुनाई का काम करने वाले समुदायों के ही कारीगर होते थे, जो पीढ़ी दर पीढ़ी हुनर को आगे बढ़ाते थे। 
2. बंगाल के तांती , उत्तर भारत के जुलाहे या मोमिन दक्षिण भारत के साले व कैकोल्लर तथा देवांग समुदाय बुनकरी के लिए प्रसिद्ध थे। 
3. सूत कातने का महिलाऍं तथा कपडे बनाने का काम पुरुष करते थे। 
4. छपाईडर कपड़ा बनाने के लिए बुनकरों को चिप्पिगर नामक माहिर कारीगरों की जरुरत पड़ती थी जो ठप्पे से छपाई करते थे। 

भारतीय कपड़ों का पतन 

1. भारतीय कपडे को ब्रिटिश उद्योगों से बने कपडे से प्रतिस्पर्धा। 
2. भारतीय कपडे पर इंग्लैण्ड में भारी सीमा शुल्क थोप दिया गया। 
3. 1880 के दशक तक भारत के लोग जितना सूती कपड़ा पहनते थे उसमे से दो तिहाई ब्रिटेन का बना होता था। 
4. 1830 के दशक तक भारतीय बाजार ब्रिटेन में बने सूती कपडे से पट गए। 
5. ब्रिटिश उद्योगों में बने कपडे की कीमत का कम होना। 
6. उन्नीसवीं सदी के आखिर में पश्चिमी भारत में सोलापुर और दक्षिण भारत में मदुरै बुनकरी के नए केंद्र के रूप में उभरे। 
7. राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान महात्मा गाँधी ने आयातित कपडे का बहिष्कार व हाथ से कते सूत तथा हाथ से बुने कपडे पहनने का आह्वान किया। 
  • इस प्रकार कड़ी राष्ट्रवाद का प्रतिक बनती चली गई। 
8. चरखा भारत की पहचान बन गया और 1931 में उसे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के तिरंगे झंडे की बीच वाली पट्टी में जगह दी गयी। 

सूती कपड़ा मिलों का उदय 

1. भारत में पहली सूती कपड़ा मिल 1854 में बम्बई में स्थापित हुई। यह कताई मिल थी। 
  • सन 1900 तक आते आते बम्बई में 84 कपड़ा मिले चालू हो चुकी थी। 

2. अहमदाबाद में पहला कारखाना 1861 में खुला। 
3. 1862 में संयुक्त प्रान्त स्थित कानपुर में भी एक कारखाना खुल गया। 

4. भारतीय कपड़ा कारखानों की समस्याएँ 

  • ब्रिटेन से आए सस्ते कपड़ो का सामना करना पड़ता था। 
  • अधिकतर देशों में सरकारें आयातित वस्तुएं ( भारतीय कपड़ो पर ) पर सीमा शुल्क लगाकर अपने देश में औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देती थी। 
5. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारतीय कारखानों से बनी कपड़ों की मांग बढ़ी। 

टीपू सुल्तान की तलवार और बुट्ज स्टील 

1. टीपू की तलवार वुट्ज स्टील से बनी थी जो दुश्मन के लौह कवच को भी चीर सकती थी। 
  • टीपू की तलवार की मूठ पर कुरान की आयतें लिखी हुई है। 
  • आज यह तलवार इंग्लैण्ड की संग्रहालय की बहुमूल्य संपत्ति है। ( अब इसे विजय माल्या ने खरीद ली है )
2. वुट्ज स्टील-वुट्ज स्टील में लौह में कार्बन की अधिक मात्रा मिलाकर बनाया जाता है यह दक्षिण भारत में बनाया जाता था। 
  • वुट्ज स्टील की तलवारे बहुत पैनी और लहरदार होती थी इनकी यह बनावट लोहे में गढ़े कार्बन के बेहद सूक्ष्म कणों से पैदा होती थी। 
  • विश्वविख्यात वैज्ञानिक और विजली व विद्युत् चुम्बकत्व का अविष्कार करने वाले माइकल फैराडे ने भारतीय वुट्ज स्टील की विशेषताओं का चार साल ( 1818-22 ) तक अध्ययन किया। 
नोट- उन्नीसवीं सदी तक लोहे के प्रगलन का कार्य बंद होने का कारण औपनिवेशिक सरकार का वन कानून था। 

भारत में लोहा व इस्पात कारखानों का उदय -

1. 1904 में अमेरिकी भू वैज्ञानिक चार्ल्स वेल्ड और जमशेदजी टाटा के सबसे बड़े बेटे दोराबजी टाटा ने अगरिया समुदाय (लोहे का काम करने वाले ) की मदद से राझारा पहाड़ियों को ढूंढा। 
2. अगरिया समुदाय के लोगो ने ही लौह अयस्क का एक और स्रोत ढूंढने में मदद दी जहाँ से बाद में भिलाई स्टील संयंत्र को अयस्क की आपूर्ति की गई। 
3. सुबर्णरेखा नदी तट पर औद्योगिक शहर बसाया गया जिसे जमशेदपुर नाम दिया गया। 
  • यहाँ तात आयरन एण्ड स्टील कंपनी ( टिस्को ) की स्थापना हुई जिसमें 1912 से स्टील का उत्पादन होने लगा। 
  • 1919 तक टिस्को में बनने वाले 90 प्रतिशत इस्पात को औपनिवेशिक सरकार ही खरीद लेती थी। 
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इसे भी देखें -

Chapter-1

Chapter-2

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Chapter-5

Chapter-6

Chapter-8

कक्षा -7 के इतिहास को पढ़ने के लिए इसे भी देखे -
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