Ncert Class-8 History Chapter-10 (दृश्य कलाओं की बदलती दुनिया) pdf notes in hindi
Chapter-10
दृश्य कलाओं की बदलती दुनिया
- औपनिवेशिक शासन में कई तरह के नए कला रूपों, शैलियों ,सामग्रियों और तकनीकों का सूत्रपात हुआ l
- 18 वीं सदी से यूरोप के बहुत सारे कलाकार अंग्रेज व्यापारियों और शासकों के साथ भारत आने लगे थे l
- यूरोपी कलाकार अपने साथ यथार्थवाद का विचार लेकर आए थे l यानी जो बनाएंगे वह असली और जीवन दिखना चाहिए l
- यूरोपी कलाकार तेल चित्रों की तकनीक भी अपने साथ लाए थे l इससे पहले तक भारतीय कलाकार इस तकनीक से परिचित नहीं थे l
- एक प्रचलित साम्राज्यवादी परंपरा मनोहारी दृश्यों को चित्रित करने की थी l
- टॉमस डेनियल और उनके भतीजे विलियम डेनियल इस परंपरा के सबसे प्रसिद्ध चित्रकार रहे l
- वे 1750 में भारत आए और कोलकाता से उत्तरी और दक्षिणी भारत यात्रा करते हुए 7 साल तक यहां रहे l
- औपनिवेशिक भारत में बेहद लोकप्रिय होने वाली एक और कला शैली रूप चित्रकारी थी l
- और भारतीय दोनों देशों के अमीर और ताकतवर लोग किरमिच ( वह सतह पर कोई चित्र बनाया जाता है)पर अपनी छवि देखना चाहते थे l
- छोटे आकार के रूप चित्र बनाने की मौजूदा भारतीय परंपरा के विपरीत औपनिवेशिक रूप चित्र आदम कद आकार के होते थे और बिल्कुल सच्चे लगते थे l
- रूप चित्रण की यह शैली ऐश्वर्यपूर्ण जीवन शैली धनसंपदा और रौब-दाब को दर्शाने का भी आदर्श साधन थी l
- नोट: रूप चित्र- किसी व्यक्ति का ऐसा चित्र जिसमे उसके चेहरे और हाव-भाव पर ज्यादा जोर दिया गया हो l
- रूप चित्रण- पोट्रेट बनाने की कला l
- योहान जोफानी यूरोप से आने वाले सबसे प्रसिद्ध चित्रकारों में से थे l
- उनका जन्म जर्मनी में हुआ था और वह बाद में इंग्लैंड जाकर बस गए थे l
- 1780 के दशक के मध्य में वे 5 साल के लिए भारत आए थे l
- नवाब मोहम्मद अली खान ने टीली कैटल और जॉर्ज विल्सन नाम के दो यूरोपीय कलाकारों को अपने रूप चित्र बनाने का जिम्मा सौंपा और यह पेंटिंग इंग्लैंड के राजा और ईस्ट इंडिया कंपनी के निदेशकों को भेंट की गई l
इतिहास को चित्रित करना-
- इस शैली के चित्रों में ब्रिटिश शाही इतिहास की विभिन्न घटनाओं को नाटकीय रूप से चित्रित किया जाता था l
- यह चित्रकार मुसाफिरों के ब्यूरो और रेखा चित्रों के आधार पर ब्रिटिश जनता को दिखाने के लिए भारत में ब्रिटिश कार्रवाइयों की सुंदर छवि तैयार करने की कोशिश करते थे l
- इन इतिहास चित्रों में से एक शुरुआती चित्र 1762 में फ्रांसिस हेमैन द्वारा बनाया गया था जिसे लंदन स्थित बॉक्स हॉल गार्डन में सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए रखा गया था l
दरबारी कलाकार-
टीपू सुल्तान ने स्थानीय परंपराओं को प्रोत्साहन दिया l सेरिंगापाटन स्थित उनके महल की दीवारों पर स्थानीय कलाकारों द्वारा बनाए गए भित्ति चित्र लगे होते थे l 1780 में पेलिलुर में हुए प्रसिद्ध युद्ध का जश्न मनाया जा रहा है जिसमें टीपू और हैदर अली ने अंग्रेज फौजियों को धूल चटाई थी l
मुर्शिदाबाद रियासत में स्थानीय लघु चित्र कलाकारों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया गया कि वे अंग्रेजों की अभिरुचि यों और कला शैलियों को सीखें l मुर्शिदाबाद के कलाकारों ने यूरोपीय यथार्थवाद के तत्वों व परिप्रेक्ष्य विधि का इस्तेमाल किया जो नजदीकी व दूर वाली चीजों का बोध देती है l
नई भारतीय लोक कला-
- बंगाल में कालीघाट स्थित मंदिर के पास स्थानीय गांव में रहने वाले खर्रा चित्रकार (जिन्हें पटुवा कहा जाता था ) और मिट्टी के बर्तन बनाने वाले ( पूर्वी भारत में कुमोर और उत्तरी भारत में कुम्हार ) एक नई कला शैली विकसित करने लगे l
- 19 वी सदी से पहले ग्रामीण पटुवा और कुमोर आम तौर पर पौराणिक विषयों और देवी देवताओं की तस्वीरें बनाते थे l बाद में कालीघाट के चित्रकार अपनी छवियों में उभार पैदा करने के लिए छायाकरण का इस्तेमाल करने लगे जिससे उनकी तस्वीरें त्रिआयामी दिखाई देने लगी l
- 19वीं सदी के आखिर के बहुत सारे काली घाट चित्रों में ब्रिटिश शासन के अंतर्गत सामाजिक जीवन को दर्शाया गया l
- कालीघाट कलाकार अमीरों के खिलाफ आम आदमी के गुस्से और सामाजिक तौर तरीकों में आ रहे बदलावों के प्रति बहुत सारे लोगों में पैदा हो रहे भय को अभिव्यक्त करते थे l
- कालीघाट तस्वीरें लकड़ी के तख्तों पर खुदाई करके बनाई जाती थी l
- 19वीं सदी के आखिर तक भारत के विभिन्न भागों में प्रिंटिंग प्रेस लगाई जाने लगी थी l
- लोकप्रिय तस्वीरें केवल गरीब ग्रामीण कालीघाट चित्रकारों द्वारा ही नहीं बल्कि मध्यमवर्गीय चित्रकारों ने भी प्रिंटिंग प्रेस लगाए और बाजार के लिए चित्र तैयार किए l
- कोलकाता आर्ट्स स्टूडियो 19 वीं सदी के आखिर के कोलकाता में स्थित की गई सबसे सफल प्रिंटिंग प्रेसों में से एक थी l
- 19वीं सदी में हिंदू देवी देवताओं की तस्वीरें सामने आई l
- 20 वीं सदी में राष्ट्रवाद के प्रचार-प्रसार के चलते जनसाधारण के तस्वीरों में राष्ट्रवादी संदेश दिए जाने लगे थे l इनमें से बहुत सारे तस्वीरों में भारत माता को देवी के रूप में देख सकते हैं जो राष्ट्रीय झंडा लिए होती है l
छायाचित्रकारी-
- 19वीं सदी के मध्य तक यूरोप से कई छायाचित्र कार( कैमरा) भी भारत आने लगे थे l
- उन्होंने तस्वीरें खींची स्टूडियो खोलें और छाया चित्रकारी की कला को बढ़ावा देने के लिए छाया चित्रकारी से जुड़ी समितियों का गठन किया l
- सैमुअल बुर्ने 1860 दशक के आरंभ में भारत आए थे और उन्होंने कोलकाता में बुर्ने एंड शेफर्ड के नाम से एक छायाचित्र कारी स्टूडियो की स्थापना की थी l यह कोलकाता का सबसे प्रसिद्ध स्टूडियो था l
नई इमारतें और नई शैलियां-
- ब्रिटिश शासन के साथ वास्तुशैलियों में भी बदलाव आया l अब नुकीली मेंहराबे और लंबाई पर जोर दिया गया इसे गोथिक शैली कहा गया l
- अंग्रेजों ने कोलकाता में इस शैली का इस्तेमाल किया और यह यूनान व रोमन की शास्त्रीय शैली पर आधारित थी l अंग्रेज चाहते थे कि उनकी इमारतें उनकी सत्ता और वैभव उनकी संस्कृति उपलब्धियों को अभिव्यक्ति करें l
- सेंट्रल पोस्ट ऑफिस कोलकाता 1860 के दशक में निर्मित किया गया l
- विक्टोरिया टर्मिनस मुंबई रेलवे स्टेशन का निर्माण 1878 से 18 87 के बीच किया गया था l
राष्ट्रीय कला की चाह-
- 19वीं सदी के आखिर में कला राष्ट्रवाद के बीच और गहरा संबंध स्थापित हो गया l अब बहुत सारे चित्रकार एक ऐसी शैली विकसित करने लगे जिसे आधुनिक और भारतीय दोनों कसौटियों पर कसा जा सके l
राजा रवि वर्मा की कला-
- राजा रवि वर्मा केरल में त्रावणकोर के महाराजाओं के परिवार से थे और उन्हें राजा का कर ही संबोधित किया जाता था l
- उन्होंने टेल चित्रकार और यथार्थ परक जीवन अध्ययन की पश्चिमी कला पर महारत हासिल की परंतु भारती पुराणों के चित्र बनाएं l
- उन्होंने रामायण और महाभारत के अनगिनत दृश्यों को किरमिच पर उतारा l
- अट्ठारह सौ अस्सी के दशक से रवि वर्मा के पौराणिक चित्र भारतीय रजवाड़ों और कला संग्रहको के बीच जुनून की हद तक लोकप्रिय हो चुके थे l राजाओं ने अपने महलों की दीवारें रवि वर्मा के चित्रों से पाठ दी थी l
राष्ट्रीय कला की विभिन्न छवि-
- बंगाल में राष्ट्रवादी कलाकारों का एक नया समूह रवींद्रनाथ टैगोर के भतीजे अरविंद नाथ टैगोर (1871 से 1951 ) के इर्द-गिर्द जुटने लगा l
- इस समूह ने रवि वर्मा की कला को नकल आधारित और पश्चिमी रंग ढंग की कह कर खारिज कर दिया l
- उनका मानना था कि पेंटिंग की असली भारतीय शैली गैर पश्चिमी कला परंपराओं पर आधारित होनी चाहिए और उसे पूर्वी दुनिया के आध्यात्मिक तत्व को पकड़ना चाहिए l
- उन्होंने मध्यकालीन भारतीय परंपरा और अजंता की गुफाओं में बने भित्ति चित्रों से प्रेरणा ली l
- यह लोग एशियाई कला आंदोलन खड़ा करने के लिए उसी दौरान भारत की यात्रा पर आए जापानी कलाकारों से भी प्रभावित है l
- नंदलाल बोस अरविंद नाथ टैगोर के विद्यार्थी थे l उन्होंने पुरानी शैलियों का अनुकरण ही नहीं किया बल्कि पुरानी शैलियों में संशोधन कर उसे अपने ढंग से अपनाया l
अन्यत्र-काकूजो तथा एशियाई कल आंदोलन-
- 1904 ओकाकुरा काकूजो ने जापान में पूर्व के आदर्श नामक एक पुस्तक प्रकाशित की जिसकी पहली पंक्ति एशिया एक है प्रसिद्ध हुई l
- उनका कहना था कि पश्चिम द्वारा एशिया का अपमान किया गया है और एशियाई राष्ट्रों को पश्चिमी प्रभुत्व का मिलकर विरोध करना चाहिए l
- वह पहली जापानी कला अकादमी के प्रधान संस्थापक थे l
- ओकाकुरा ने शांतिनिकेतन का दौरा किया था और रविंद्र नाथ टैगोर तथा अरविंद नाथ टैगोर पर गहरा प्रभाव डाला था l
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