Mahajanapada Period 6th century BC /महाजनपद काल छठी शताब्दी ई.पू.

 



महाजनपद काल (छठी शताब्दी ई.पू.)/Mahajanapada Period(6th century BC)

महाजनपदों का उदय:

·       जनपद उत्तरवैदिक काल में अस्तित्व में आ चुके थे और इसी काल में लोहे का प्रयोग भी प्रारंभ हो चुका था।

·       छठी शताब्दी ईसा पूर्व तक लोहे का व्यापक पैमाने पर प्रयोग होने लगा, जिसने मानवीय भौतिक जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया।

·        छोटे-छोटे जनपदों ने महाजनपदों का रूप ले लिया।

·       इस सयम समस्त उत्तरी भारत 16 बड़े राज्यों में विभाजित था।

·       इनकी सूची बौद्ध ग्रंथ के अंगुत्तर निकाय तथा जैन ग्रंथ के भगवतीसूत्र में दी गई है

·       उपर्युक्त राज्य दो प्रकार के थे राजतंत्रात्मक राज्य एवं गणतन्त्रात्मक राज्य |

·       राजतंत्रात्मक राज्य अंग, मगध, काशी, कौशल, चेदि, वत्स, कुरु, पांचाल, मत्स्य, सूरसेन, अश्मक, अवन्ति, गंधार तथा कंबोज ।

·       गणतंत्रात्मक राज्य वज्जि तथा मल्ल।

·       16 महाजनपदों में मगध, वत्स, कोशल एवं अवन्ति सर्वाधिक शक्तिशाली थे।

 

मगध राज्य का उदय

बृहद्रथ वंश:

·       महाभारत' तथा 'पुराणों में उल्लेख है कि मगध के प्रारम्भिक राजवंश की स्थापना “वसु" के पुत्र "जरासन्ध" के पिता "बृहद्रथ" ने की।

·        बौद्ध ग्रंथों में वृहद्रथ वंश का कोई उल्लेख नहीं है।

हर्यक वंश (544 ई.पू. - 412 ई.पू.):

·       बिम्बिसार (544-492 ई.पू.) इस वंश का सबसे प्रतापी राजा था।

·       जैन साहित्य में बिंबिसार को 'श्रेणिक' कहा गया है

·        सने वैशाली, कौशल आदि राज परिवारों से वैवाहिक संबंध स्थापित किये व अपने राज्य को कुशल प्रशासन दिया।

·        सने कोशल नरेश प्रसेनजित की बहन महाकोशला के साथ विवाह किया तथा दहेज में एक लाख की वार्षिक आय वाला 'काशी' प्रांत प्राप्त किया।

·       उसकी दूसरी पत्नी लिच्छवी राजकुमारी चेल्लना थी।

·       बुद्धघोष के अनुसार बिम्बिसार के साम्राज्य में 80,000 गाँव थे। उसने राजगृह नामक नवीन नगर की स्थापना करवाई थी।

·       बुद्ध से मिलने के बाद उसने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया तथा 'वेलुवन' नामक उद्यान बुद्ध तथा संघ के निमित्त प्रदान कर दिया।

·       'महावंश' के अनुसार उसने 52 वर्ष राज्य किया।

·       अंतिम समय में उसके पुत्र 'अजातशत्रु' ने उसका वध करके राज्य हथिया लिया।

 

अजातशत्रु (492-460 ई.पू.):

·       इसे कुणिक भी कहा जाता था. यह घोर साम्राज्यवादी था।

·        सने कोशल, काशी तथा वज्जि संघ पर विजय प्राप्त की।

·        वैशाली के लिच्छवियों के साथ हुए युद्ध में उसने "महाशिलाकण्टक" तथा "रथमूसल" का प्रयोग किया था।

·       सने राजगृह में एक मजबूत दुर्ग बनवाया।

·        अजातशत्रु धार्मिक दृष्टिकोण से उदार था। आरम्भ में वह बुद्ध का विरोधी था, मगर बाद में उसका अनुयायी बन गया।

·       भरहुत स्तूप की एक वेदिका के ऊपर 'अजातशत्रु के भगवान बुद्ध की वंदना करते हुए' उत्कीर्ण किया गया है।

·       बुद्ध के कुछ अवशेषों को लेकर सने राजगृह के एक स्तूप निर्मित कराया।

·       सके शासन काल में राजगृह में सप्तपर्ण गुफा में 483 ई.पू. में प्रथम बौद्ध सभा का आयोजन किया गया, जिसमें बुद्ध की शिक्षाओं का "सुत्तपिटक" तथा "विनयपिटक" में संकलन करवाया गया।

·       पुराणों के अनुसार उसने 28 वर्ष तथा बौद्ध साक्ष्य के अनुसार 32 वर्ष तक शासन किया।

·        अजातशत्रु की हत्या उसके पुत्र उदयिन द्वारा कर दी गई।

 

उदयिन या उदयभद्र (460-444 ई.पू.)

·        “महावंश" के अनुसार सने 16 वर्ष राज्य किया।

·        बौद्ध साहित्य में से पितृहंता बताया गया है।

·       "गार्गी संहिता" एवं "वायु पुराण" के आधार पर सने गंगा एवं सोन नदी के संगम पर 'पाटलिपुत्र' नामक नगर की स्थापना की।

·        ह जैन मतानुयायी था।

·       पुराणों के अनुसार सने 32 वर्ष तक राज्य किया।

·       बौद्ध साहित्य के अनुसार उदयन के बाद अनिरुद्ध, मुण्ड तथा नागदर्शक ने मिलकर 412 ई.पू. तक शासन किया।

 

शिशुनाग वंश (412 ई.पू. - 344 ई.पू.)

 

शिशुनाग (412-394 ई.पू.):

·       अजातशत्रु की मृत्यु के बाद पाँच पितृहंताओं शासकों के जल्दी-जल्दी सिंहासनारूढ़ होने के कारण जनता में असंतोष व्याप्त होता गया। संभवतः इसी कारण वहाँ की जनता ने बनारस के उपराजा शिशुनाग को गद्दी पर बैठा दिया।

·       शिशुनाग ने अवंति तथा वत्स को मगध साम्राज्य का भाग बना लिया।

·       वज्जि गणराज्य के ऊपर नियंत्रण स्थापित करने के लिए पाटलिपुत्र के अतिरिक्त वैशाली को अपनी दूसरी राजधानी बनाया।

·        शिशुनाग का उत्तराधिकारी कालाशोक इसके बाद मगध साम्राज्य का शासक बना।

 

कालाशोक ( 394-366 ई.पू.)

·       "पुराणों" और "दिव्यावदान' में कालाशोक का नाम 'काकवर्ण' मिलता है।

·        सने वैशाली के स्थान पर पाटलिपुत्र को राजधानी बनाया

·       सी के शासन काल में 383 ई.पू. दूसरी बौद्ध संगीति में बौद्ध संघ 'स्थविर' तथा 'महासंधिक' के रूप में बंट गया।

·        'दीपवंश' और 'महावंश' के अनुसार सने 28 वर्षों तक शासन किया।

·       उसकी मृत्यु के बाद उसके उत्तराधिकारियों ने 22 वर्षों तक शासन किया।

·       इस वंश का अंतिम शासक संभवतः नंदिवर्द्धन था।

·       "महाबोधिवंश" के अनुसार कालाशोक के उत्तराधिकारी उसके दस पुत्रों के नाम "भद्रसेन कोरण्डवर्ण, मंगुर, सर्वञ्ज, जलिक, उभाक, संजय, कोरव्य, नन्दीवर्द्धन (महानन्दिन) " था।

नन्द वंश (344 ई.पू. - 324 ई.पू.)

·       इस वंश का संस्थापक महापद्मनंद था।

·       पहले नन्द राजा को पुराणों में 'उग्रसेन', महापद्म या महापद्मपति कहा गया है।

·       'कर्टियस' के अनुसार उसका पिता 'नाई' था

·       पौराणिक अनुश्रुति के अनुसार उसे एक "शूद्र शासक" बताया गया है।

·       पुराणों में उसे एकच्छत्र 'पृथ्वी का राजा', 'अनुल्लंघित शासक' भार्गव (परशुराम) के समान 'सर्वक्षत्रान्तक' (क्षत्रियों का नाश करने वाला) एवं 'एकराट्' आदि उपाधियां दी गयी।

·       महापद्म नन्द के आठ पुत्रों में अंतिम पुत्र धनानन्द सिकन्दर का समकालीन था।

·       ग्रीक लेखकों ने इसे अग्रमीज (Agrammes) एवं जैन्द्रमीज (Xandrames) कहा ।

·       धनानन्द के शासनकाल में ही सिकन्दर में 325 ई. पू. में पश्चिमी तट पर आक्रमण किया।

·       धनानंद का विनाश चन्द्रगुप्त मौर्य ने किया।

भारत पर विदेशी आक्रमण

 

ईरानी आक्रमण (हखामनी वंश)

·       "हखामनी" साम्राज्य का संस्थापक सायरस द्वितीय (558 ई.पू. 529 ई.पू.) गैड्रोसिया या मकरान (Gedrosia or Makran) के रास्ते भारत की ओर आया। मगर उसे सफलता नहीं मिली।

·       डेरियस प्रथम (Darious) (522 ई.पू. 486 ई.पू.) के तीन शिलालेखों "बहिस्तून" (520-485 ई.पू.). "पर्सिपोलिस" (518-15 ई.पू.) तथा “नक्शेरुस्तम" से स्पष्ट होता है कि उसने गांधार तथा पंजाब को अपने साम्राज्य का अंग बना लिया था।

·       "हेरोडोटस प्रथम" के अनुसार "डेरियस प्रथम " के 20 प्रांतों में अंतिम प्रान्त भारत में था।

·       517 ई.पू. उसने साहसिक नाविक साईसेक्स के अधीन एक नाविक अभियान सिन्धु नदी की खोज करने के लिए भेजा।

·       भारतीय प्रदेशों पर ईरानी आधिपत्य डेरियस III के समय तक चलता रहा।

·       एरियन ने माना है कि डेरियस III ने 330 ई.पू. में सिकन्दर महान के साथ अर्थला के युद्ध में भारतीय सेना का प्रयोग किया।

यूनानी आक्रमण

·       मकदूनियावासी सिकंदर ने अंतिम हरवामनी सम्राट डेरियस तृत्तीय को परास्त किया

·       अपने लंबे अभियान के बाद हिन्दूकुश का दर्रा पार कर 326 ई.पू. में पश्चिमोत्तर भारत में प्रवेश किया।

·        सिकन्दर को तक्षशिला पहुँचते ही तक्षशिला के शासक "आम्भी" ने निकैया में उसके आक्रमण से पूर्व ही आत्म-समर्पण कर दिया।

·       अभिसार के राजा ने भी सिकन्दर की अधीनता स्वीकार कर ली।

·       उसके पश्चात् सिकन्दर ने हाइडेस्पेस (झेलम) के युद्ध (Battle of Hydaspes) में पोरस को पराजित किया, परंतु उसके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उसका राज्य उसे लौटा दिया और उसका मित्र बन गया।

·        फिर उसने चेना (अकॅसिन्ज) तथा रावी के बीच रहने वाली जातियों को पराजित किया और रावी को पार करके "कथेयोई" जाति को पराजित किया और "सौभूति" जैसे पड़ोसी राज्यों ने उसकी अधीनता मान ली।

·        नीसा जाति ने बिना युद्ध के ही सिकंदर की अधीनता स्वीकार कर ली एवं स्वयं को यूनानियों का वंशज बताया

·        अश्वक राज्य की स्त्रियों ने भी पुरुषों की मृत्यु के बाद युद्ध किया था।

·       कठों की सामूहिक हत्या कर दी गई।

·        व्यास 'या हाइडेस्पेस पहुंच कर सिकन्दर की सेनाओं ने आगे बढ़ने से इंकार कर दिया।

·       सिकन्दर के बार-बार अपील करने पर भी वे नहीं माने तो अंत में 326 ई.पू. में उसे वापस लौटने का आदेश देना पड़ा।

·       वापसी: सिकंदर जिस मार्ग से भारत आया था उसने उसी मार्ग से वापस लौटना तय किया।

·        इससे पूर्व उसने यूनानी देवताओं की स्मृति में व्यास नदी के तट पर अपनी समस्त विजय की सीमा निश्चित करने हेतु 12 विशाल वेदियाँ बनवाकर विधिवत् उनकी पूजा की।

·        वापसी पर उसे मिन्टगुमरी और मुल्तान जिलों में स्थित "मल्लोई" और ऑक्सिड्रेकोई लोगों का सामना करना पड़ा।

·       सिन्धु नदी की तराई में उसे यहां के शासक "मूसीकेनस" का सामना करना पड़ा।

·       “निर्याकस" के अधीन सेना का बड़ा भाग उसने समुद्र के रास्ते भेजा व शेष सेना के साथ ब्लूचिस्तान और ईरान के रास्ते चल दिया।

·        बगदाद के निकट बेबीलोन में 33 वर्ष की आयु में (323 ई.पू.) उसकी मृत्यु हो गयी।

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