NCERT Class 7 (Chapter-4 वायु ) Geography in Hindi pdf notes



hi friends आप सब कैसे है। आशा करता हु की आप सब अच्छे होंगे। आज हम सब hindi में NCERT Class-7 Geography ( Chapter- 4) (वायु Notes and summary in Hindi me आगे पढ़ेंगे और एक अच्छे से notes तैयार करेंगे जो आने वाले आगामी किसी भी प्रकार की प्रतियोगी परीक्षाओं में हेल्प करेगी। 

    Chapter-4

    वायु 

    वायुमण्डल:

    1. हमारी पृथ्वी चारो ओर से वायु की घनी चादर से घिरी हुई है, जिसे वायुमण्डल कहते है। 
    • यह वह वायु राशि है जिसने पृथ्वी के तापमान को रहने योग्य बनाया है। 

    वायुमण्डल का संघटन :

    1. वायु अनेक गैसों का मिश्रण है। 
    • नाइट्रोजन-78%
    • ऑक्सीजन-21%
    • ऑर्गन-0.93%
    • कार्बनडाई ऑक्साइड-0.03%
    • अन्य सभी-0.04 %
    2. पौधों को अपने जीवन के लिए नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है , लेकिन वे सीधे वायु से नाइट्रोजन नहीं ले पाते। 
    • मृदा तथा कुछ पौधों की जड़ों में रहने वाले जीवाणु वायु से नाइट्रोजन लेकर इसका स्वरूप बदल देते है। जैसे-एजोटो बैक्टर जीवाणु। 
    3. मनुष्य तथा पशु साँस लेने में वायु से ऑक्सीजन प्राप्त करते है। 
    • हरे पादप प्रकाश संश्लेषण द्वारा ऑक्सीजन उत्पन्न करते है। 
    • हरे पादप अपने भोजन के रूप में कार्बनडाई ऑक्साइड का प्रयोग करते है और ऑक्सीजन वापस देते है। 

    ग्रीन हाउस इफेक्ट :


    कार्बन डाई ऑक्साइड वायमंडल में फैलकर पृथ्वी से विकरित ऊष्मा को पृथ्वी पर रोककर ग्रीन हाउस प्रभाव पैदा करती है। किन्तु जब कारखानों एवं कार के धूएँ से वायुमण्डल में इसका स्तर बढ़ता है, तब इस ऊष्मा के द्वारा पृथ्वी का तापमान बढ़ता है। इसे भूमण्डलीय तापन (ग्लोबल वार्मिंग ) कहते है। 
    • तापमान की इस वृद्धि के कारण पृथ्वी के सबसे ठन्डे प्रदेश में जमी हुई बर्फ पिघलती है। जिसके परिणामस्वरूप समुद्र के जल स्तर में वृद्धि होती है। 

    वायुमण्डल की संरचना :

    क्षोभमण्डल : यह परत वायुमण्डल की सबसे महत्वपूर्ण परत है। इसकी औसत ऊँचाई 13 किलोमीटर है। 
    • मौसम की लगभग सभी घटनाएँ जैसे-वर्षा, कुहरा एवं ओलावर्षण इसी परत के अंदर होती है। 
    2. समतापमण्डल : यह लगभग 50 किलोमीटर ऊँचाई तक फैला है। 
    • बदलो एवं मौसम सम्बन्धी घटनाओं से लगभग मुक्त होती है। इसके फलस्वरूप यहाँ की परिस्थितियाँ हवाई जहाज उड़ाने के लिए आदर्श होती है। 
    • इसमें ओजोन गैस की परत होती है। यह परत सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैगनी किरणों से हमारी रक्षा करती है। 
    3. मध्यमण्डल : यह लगभग 80 किलोमीटर की उँचाई तक फैली है। अंतरिक्ष में प्रवेश करने वाले उल्का पिण्ड इस परत में आने पर जल जाते है। 
    4. बाह्य / आयन मण्डल : बाह्य वायुमण्डल /आयन मण्डल में बढ़ती उँचाई के साथ तापमान अत्यधिक तीव्रता से बढ़ता है यह 80 से 400 किलोमीटर तक फैला है। रेडियो संचार के लिए इस परत का उपयोग होता है। 
    5. बहिर्मण्डल : यह वायुमण्डल की सबसे ऊपरी परत है। यह वायु की पतली होती है। हल्की गैसें-जैसे-हीलियम एवं हाइड्रोजन यही से अंतरिक्ष में तैरती रहती है। 

    मौसम एवं जलवायु :

    1. मौसम :वायुमण्डल की प्रत्येक घंटे तथा दिन-प्रतिदिन की स्थित होती है। 
    2. जलवायु : दीर्घ काल में किसी स्थान का औसत मौसम , उस स्थान की जलवायु बताता है। 
    नोट- पृथ्वी सूर्य की ऊर्जा केवल एक भाग ( दो अरबवाँ ) ही प्राप्त करती है। 

    मौसम एवं जलवायु के कारक :

    तापमान :जिस तापमान का हम अनुभव करते है वह वायुमण्डल का तापमान होता है। यह केवल दिन व रात में ही नहीं वरन ऋतुओं के अनुसार भी बदलता है। 
    नोट- 
    • तापमापी-तापमान मापता है। 
    • वायुदाबमापी-वायुदाब मापता है। 
    • वर्षामापी-वर्षा की मात्रा मापता है। 
    • वात-दिग्दर्शी- पवन की दिशा दर्शाता है। 
    आतपन : सूर्य से आने वाली ऊर्जा जिसे पृथ्वी रोक लेती है उसे आतपन कहते है। 
    • आतपन ( सूर्यातप ) की मात्रा भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर घटती जाती है। 
    • गाँवो की अपेक्षा नगरों का तापमान बहुत अधिक होता है। दिन के समय में ऐसाफेल्ट से बनी सड़के एवं घातु और कंक्रीट से बने भवन गर्म हो जाते है। रात के समय यह ऊष्मा मुक्त हो जाती है। 
    वायुदाब : 
    • पृथ्वी की सतह पर वायु के भार द्वारा लगाया गया दाब , वायुदाब कहलाता है। 
    • समुद्र स्तर पर वायु दाब सर्वाधिक होता है और ऊँचाई पर जाने पर यह घटता जाता है। 
    • अधिक तापमान वाले क्षेत्रो में वायु गर्म होकर ऊपर उठती है। यह निम्न दाब क्षेत्र बनाता है। निम्न दाब, बादलयुक्त आकाश एवं नम मौसम के साथ जुड़ा होता है। 
    • कम ताप वाले क्षेत्रों में वायु ठंडी होती है। इसके फलस्वरूप यह भारी होती है। उच्च दाब के कारण स्पष्ट एवं स्वच्छ आकाश होता है। 
    • वायु सदैव उच्च दाब क्षेत्र से निम्न दाब क्षेत्र की ओर गमन करती है। 

    पवन :

    उच्च दाब क्षेत्र से निम्न दाब क्षेत्र की ओर वायु की गति को 'पवन 'कहते है। पवनों को मुख्यतः तीन प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है। 
    a) स्थायी पवने :व्यापारिक पश्चिमी एवं पूर्वी पवनें स्थायी पवनें है। ये वर्षभर लगातार निश्चित दिशा में चलती है। 
    b) मौसमी पवनें : ये पवनें विभिन्न ऋतुओं में अपनी दिशा बदलती रहती है जैसे-भारत में मानसूनी पवनें। 
    c) स्थानीय पवनें : ये पवनें किसी छोटे क्षेत्र में वर्ष या दिन के विशेष समय में चलती है जैसे-स्थल एवं समुद्री समीर। 

    आर्द्रता :

    1. जब जल पृथ्वी एवं जलाशयों से वाष्पित होता है ,तो यह जल वाष्प बन जाता है। 
    • वायु में किस भी समय जलवाष्प की मात्रा को 'आर्द्रता 'कहते है। 
    • जल वायु में जलवाष्प की मात्रा अत्यधिक होती है ,तो उसे हम आर्द्र दिन कहते है। 
    • आर्द्र दिन में कपडे सूखने में काफी समय लगता है। 
    • जैसे-जैसे वायु गर्म होती जाती है, इसकी जलवाष्प धारण करने की क्षमता बढ़ती जाती है और इस प्रकार यह और अधिक आर्द्र हो जाती है। 
    2. जलवाष्प संघनित होकर ठंडा होकर जल की बूँद बनाते है। बादल इन्ही बूंदो का ही एक समूह होता है। जब जल की ये बूँदें इतनी भारी हो जाती है कि वायु में तैर न सके, तब ये वर्षण के रूप में नीचे आ जाती है। 
    3. पृथ्वी पर जल के रूप में गिरने वाला वर्षण , वर्षा कहलाता है। ज्यादातर भौंम जल, वर्षा जल से ही प्राप्त होता है। 
    • वर्षा मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती है -a) संवहनी वर्षा b) पर्वतीय वर्षा एवं c) चक्रवाती वर्षा। 
    नोट- वर्षण के दूसरे रूप हिम सहिम वृष्टि एवं ओला है। 

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