प्रागैतिहासिक कालीन भारत का इतिहास | prehistoric history of india notes in hindi

    प्रागैतिहासिक कालीन भारत का इतिहास         


 Prehistoric Period/प्रागैतिहासिक काल:-



 प्रागैतिहासिक काल का वर्गीकरण

मानव का विकास क्रम:-

·       मानव के विकास क्रम को हम निम्नलिखित क्रम में देख सकते हैं।

·       ऑस्ट्रेलोपिथेकस(Australopithecus)_पिकँथ्रोपस(Pycanthropus) (होमो इरेक्टस) नियान्डरथल-क्रोमैगनन(Neanderthal Cromagnon) (होमोसेपिएन) ऑस्ट्रेलोपिथेक्स(Australopithecus) आधुनिक मानव का पूर्वज था यह अत्यंत नूतन काल (Pleistocene) में प्रकट हुआ।

·       सर्वप्रथम पिथिक्रैन्थ्रोपस(Pycanthropus) अथवा होमो इरेक्टस मानव रीढ़ सीधा कर चल सकता था।

·        ऐसे मानव को जावा मानव भी कहा गया है।

·        पिकिंग (चीन) की गुफा में सिनेन्थ्रोपस मानव की प्राप्ति हुई है यह मानव आग जलाना जानता था।

·        नियान्डरथल मानव के प्रथम जीवाश्म सी फूहल रोट ने 1856 ई. में जर्मनी के नियान्डरथल घाटी में प्राप्त किया था।

·        यह मानव मध्य पुरापाषण काल का प्रतिनिधित्व करता था। ऐसे मानव में वाणी केन्द्र विकसित हो चुके थे।

 हरबर्ट रिजले ने भारत वासियों को प्रजाति के हिसाब से निम्न श्रेणियों में विभाजित किया है—(1) मंगोल, (2) भारतीय आर्य, (3) द्रविड़, (4) मंगोल द्रविड़ (5) शक द्रविड़, (6) तुर्की ईरानी।

 पाषाण कालः

·        भारतीय भूतत्व सर्वेक्षण विभाग के विद्वान राबर्ट ब्रूस फुट ने 1863 ई. में मद्रास के पास पल्लवरम से पाषाणोपकरण प्राप्त किया।

·        सबसे महत्वपूर्ण अनुसंधान 1935 ई. में डी. रेरा तथा पीटरसन के निर्देशन में मेल कैम्ब्रिज अभियान दल ने शिवालिक पहाड़ियों की तलहटी में बसे हुए पोलवाट के पठारी भाग का व्यापक सर्वेक्षण किया था।

पाषाण काल को हम तीन भागों में बांटते हैं:

 

प्रागैतिहासिक काल ( पाषाण काल ):-

·       पुरापाषाण काल         (5.00000-10,000  ई.पू.) 

·       मध्यपाषाण काल        (10.000-6.000 ई.पू.)

·       नवपाषाण काल         (6.000 ई.पू. के पश्चात्)

पुरापाषाण काल:-         

·       निम्न पुरापाषाण काल          ((50.000-40.000)  

·       मध्यपुरापाषाण काल             (50.000-40.000)    

·       उच्चपुरापाषाण काल            (40.000-10,000 )

पुरापाषाण काल (5,00000-10,000 ई.पू.):-

·       पुरापाषाण काल को तीन भागों में बाँटा जाता है।

·        निम्न पुरापाषाण काल अधिकांशतः हिमयुग में ही बीता। इस काल के लक्षण थे कुल्हाड़ी या हस्तकुठार (हैंड-एक्स), विदारिणी (क्लीवर) और खंडक (गंडासा) के प्रयोग निम्न पुरापाषाण युग के स्थल वर्तमान पाकिस्तान के सोहन घाटी एवं महाराष्ट्र में पाए गए हैं।

·       भारत में सबसे पुराना हस्तकुठार 'सोहन घाटी' से प्राप्त हुआ है।

·        लोहदा नाला (वेलन घाटी, उत्तर प्रदेश) से पशु की हड्डी से बनी मूर्ति प्राप्त हुई है।

·       हथनौरा (मध्य प्रदेश) से हाथी का सबसे पुराना जीवाश्म मिला है।

 

·       मध्य पुरापाषाण युग के औजार मुख्यतः शल्क (Flake) के थे।

·       अत: इस संस्कृति को फलक संस्कृति की संज्ञा दी गई है।

·        यह काल नियान्डरथाल मानव का था।

·       मोस्तारी संस्कृति इसी काल से संबद्ध है।

·        खुरचनी, फलक, वेधनी, वेधक तथा तक्षणी इस संस्कृति के प्रधान उपकरण थे।

·       उच्च-पुरापाषाण युग में आर्द्रता कम हो गई थी।

·        इस युग की दो विश्वव्यापी विशेषताएं हैं नए चकमक उद्योग की स्थापना तथा आधुनिक प्रारूप के मानव (होमोसेपिएन्स) का उदय आन्ध्र, कर्नाटक, महाराष्ट्र. केन्द्रीय मध्य प्रदेश, दक्षिण उत्तर प्रदेश तथा बिहार के पठार में फलकों तथा तक्षणियों का प्रयोग होता था।

·        इस काल के मानवों की गुफाएं भीमबेटका से मिली हैं

·        उच्च पुरापाषाण कालीन चित्रों में भैंसे, हाथी, बाघ, गैंडे तथा सूअर के चित्र प्रमुख हैं।

·       भीमबेटका गुफा की खोज 1958 ई. में बी. एस. वाकणकर ने की थी।

·       उच्च पुरापाषाण काल में अस्थि उपकरणों का प्रयोग महत्वपूर्ण था आंध्र प्रदेश के वेटमचर्ला में अनेक अस्थि उपकरण मिले है।

·        भारत में सबसे पुराना हस्तकुठार 'सोहन' से प्राप्त हुआ है।

·        लोहदा नाला (बेलन घाटी) से पशु को हड्डी से बनी मूर्ति प्राप्त हुई है।

·        हथनौरा (मध्य प्रदेश) से हाथी का सबसे प्राचीन जीवाश्म मिला है।

मध्य पाषाण काल (10,000-6,000 ई.पू.):-

·       इस काल के लोग शिकार करके, मछली पकड़कर तथा खाद्य वस्तुएं बटोरकर पेट भरते थे।

·        मध्य पाषाण काल में पाषाण के लघु उपकरण बनाये जाते थे। इसलिये, इसे माइकोलिथ कहते हैं।

·        भारत में सबसे पहले लघु पाषाण उपकरण 1867 ई. में विंध्य क्षेत्र में सी. एल. कार्लाइल द्वारा खोजा गया।

·       प्रमुख मध्यपाषाणकालीन उपकरण हैं-इवधर फलक, बेधनी, अर्धचन्द्राकार, समलंब (Trapeze) इत्यादि ।

 

मध्यपाषाणकालीन स्थल

 

स्थल                   राज्य

आदमगढ़               मध्य प्रदेश

बागौर                 राजस्थान

सांभर झील निक्षेप         राजस्थान

महदहा                उत्तर प्रदेश

वीरभानपुर              बंगाल

भीमबेटका               मध्य प्रदेश

सरायनाहरराय            उत्तर प्रदेश

नव पाषाण काल (6,000 ई.पू. के पश्चात् )

·       विश्व स्तर पर इस काल की शुरुआत 9,000 ई.पू. से होती है।

·        पाकिस्तान के मेहरगढ़ (बलूचिस्तान प्रान्त) से मिली एक बस्ती का काल 7000 ई.पू. है।

·        नव पाषाण युग का प्रथम प्रस्तर उपकरण उत्तर प्रदेश की टोंस नदी घाटी में सर्वप्रथम 1860 ई. में लेमेसुरियर ने प्राप्त किया।

·       नव पाषाण युग के निवासी सबसे पुराने कृषक समुदाय के थे।

·        मेहरगढ़ में बसने वाले लोग गेहूं, जौं तथा रुई उपजाते थे तथा कच्ची ईंटों के घरों में रहते थे।

·       कुम्भकारी की कला इसी काल में दृष्टिगोचर होती है

·       कृषि का आरंभ, गर्त आवास (बुर्जहोम). आग का आविष्कार, कब्र में मानव के साथ कुत्ता दफनाना, बड़ी मात्रा में अस्थि के औजार, पोत-निर्माण, ऊन के साक्ष्य, स्थायी जीवन एवं समाज का निर्माण

नवपाषाणिक स्थल

·       मेहरगढ़               बलूचिस्तान

·       बुर्जहोम                कश्मीर

·       गुफ्फकराल             कश्मीर

·       कोल्डिहवा             उत्तर प्रदेश

·       चिरौंद                 बिहार

·       चौपानीमांडो             उत्तर प्रदेश

·       नागार्जुनकोंडा           आंध्र प्रदेश

·       पिकलोहल              कर्नाटक

आद्य ऐतिहासिक काल:-

·       आद्य ऐतिहासिक काल को दो भागों में बाँटा जाता है:

·        ताम्रपाषाण काल (3500 ई.पू. 1200 ई.पू.)

·       लौह काल (1000 ई.पू. 600 ई.पू.)

·       ताम्रपाषाण काल (3500 ई.पू. - 1200 ई.पू.) पुनः ताम्रपाषाण काल को तीन चरणों में विभाजित किया जा सकता है-

A.   ताम्र पाषाण काल चरण 1 ( 3500 ई.पू. 2500 ई.पू.):

·       यह हड़प्पा सभ्यता का पूर्व चरण है।

·       इस काल में ताँबे एवं पाषाण दोनों का उपकरण निर्माण में इस्तेमाल हुआ है।

·        यह मुख्यतः ग्रामीण संस्कृति थी।

·       इस काल की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित है—

a.     मेहरगढ़ से कपास की खेती का प्राचीनतम साक्ष्य

b.     मेही से तांबे के दर्पण की प्राप्ति, दाह संस्कार का प्रमाण

c.     राना धुंडई से घोड़े की अस्थियाँ प्राप्त।

d.    कोटडिजी-1 से गाँव के बाहर रक्षा प्राचीर का निर्माण तथा अग्निकांड का साक्ष्य।

e.     सोची से जुते हुए खेत का साक्ष्य तथा दो अलग-अलग फसलों को एक साथ खेती का साक्ष्य ।

ताम्रपाषाण काल चरण 11 (2500 ई.पू. 1700 ई.पू.):-

i.       ताम्रपाषाण कालीन लोग तांबे और पाषाण (पत्थर) का साथ-साथ प्रयोग करते थे, यह भारत में कई संस्कृतियों का आधार बना।

ii.     भारत में ताम्र पाषाण अवस्था के मुख्य क्षेत्र हैं- दक्षिण-पूर्वी राजस्थान – अहार एवं गिलुंद।

iii.  पश्चिमी मध्य प्रदेश मालवा, कयथा, एरण नवादाटोली पश्चिमी महाराष्ट्र – जोरवे, नेवासा, दैमाबाद (तीनों अहमदनगर में). चन्दोली, सोनगांव, इनामगांव, प्रकाश और नासिक (पुणे में)। दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान की संस्कृति को 'अहार संस्कृति' कहा जाता है।

iv.  अहार, बालाथल और गिलुंद इसकी प्रमुख बस्तियाँ है।

v.     बनास नदी घाटो के नाम से इसे 'बनास संस्कृति' भी कहा जाता है।

vi.  अहार में चावल की खेती होती थी। अहार का प्राचीन नाम ताम्बवती था अर्थात् तांबा वाली जगह।

vii.अहार से मछली, गाय, कछुए, मुर्गे, भैंस, बकरी, भेड़, हिरण, सुअर की पशु-अस्थियां प्राप्त हुई हैं।

viii. यहां से मृण्मूर्तियां, मनके, मुहरें भी प्राप्त हुई हैं। तांबे की वस्तुओं में अंगुठियां चूड़ियां, चाकू के फाल, कुल्हाड़ियां तथा सुरमे की सलाइयां प्राप्त हुई हैं।

·       नवदाटोली, एरण और नागदा मालवा संस्कृति के मुख्य स्थल हैं।

·       नवदाटोली का उत्खनन कार्य प्रो. एच.डी. संकालिया ने करवाया है।

·       यहाँ से प्राप्त फसलों में दो किस्म का गेहूं, अलसी, मसूर, काला चना, हरा चना, हरी मटर और खेसारी शामिल हैं।

·        मालवा संस्कृति (नवदाटोली) के मृदभांड उत्तम कोटि के हैं।

·       नागदा से कच्ची ईंटों से बना बुर्ज प्राप्त हुआ है।

लौह काल (1000 ई.पू. - 600 ई.पू.)

·       लौह काल का निर्धारण सामान्यतः 1000 ई.पू. से 600 ई.पू. के मध्य किया जाता है।

·       इस समय उपकरण निर्माण में लोहे का प्रयोग प्रारंभ हुआ।

·       उत्तर भारत में लौह काल के साथ-साथ चित्रित धूसर मृदभांड (पी.जी.डब्ल्यू.) संस्कृति कायम हुई।

·       दक्षिण भारत में लौह काल महापाषाण संस्कृति के समकालीन था।

महत्त्वपूर्ण तथ्य

·       मालवा से उत्कृष्टतम ताम्रपाषाण मृद्भाण्ड प्राप्त हुये हैं।

·       इस संस्कृति के लोग काले व लाल मृदभाण्डों का प्रयोग करते थे।

·       नवादाटोली (नर्मदा) से सर्वाधिक मात्रा में अनाज मिला है।

·       इनामगाँव से किलाबंद वस्ती, हाथी दांत, इत्यादि प्राप्त हुये हैं।

·       इनामगाँव और अहार के खुदाई स्थलों से चावल पाया गया है। • कयथा तथा एरण से किलाबंद बस्तियां प्राप्त हुयी हैं।

·       सर्वाधिक मात्रा में ताम्रनिधि मध्य प्रदेश के गुंगेरिया से प्राप्त हुयी है। ताम्रपाषाण स्थलों में बड़ी संख्या में अग्निकुंड का मिलना यह सिद्ध करता है कि अग्नि-पूजा का व्यापक प्रचलन था।

·        काले एवं लाल मृदभांड संस्कृति का पहला साक्ष्य अंतरंजीखेड़ा (1960 ई.)) से प्राप्त हुआ है।

·       दक्षिण भारत में अनेक स्थलों पर उत्खनन कार्य हुआ जिसमें ब्रह्मगिरि, मास्की, पिक्लीहल, उतनूर, संगनाकल्लू, पायमपल्ली, नागार्जुनकोंडा इत्यादि हैं। इनका उत्खनन कार्य ई.पू. 2300 से 900 के बीच हुआ।

·       सोने के आभूषण बहुत दुर्लभ थे और केवल जोवें संस्कृति में ही पाए गये हैं।

·       ताम्र निधान संस्कृति का पहला साक्ष्य बिठूर (कानपुर) से मिला है जबकिसबसे बड़ा भंडार गंगेरिया (मध्य प्रदेश) से प्राप्त हुआ है।

·       पी.जी. डब्ल्यू. संस्कृति का पहला साक्ष्य अहिच्छत्र (1946 ई.) से मिला।

·       उत्तरी काली पॉलिशदार मृदभांड संस्कृति का पहला साक्ष्य तक्षशिला (1930ई.) से प्राप्त हुआ है ।

·       हल्लूर तथा पिकलीहल से लोहे का साक्ष्य कब्रों से मिला है।


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