ncert class-7 civics/ polity chapter-4 notes in hindi
Hi friends आप सब कैसे है। आशा करता हु की आप सब अच्छे होंगे। आज हम सब hindi में NCERT Class-7 ( Chapter-4) (लड़के और लड़कियों के रूप में बड़ा होना) Notes and summary in Hindi me आगे पढ़ेंगे और एक अच्छे से notes तैयार करेंगे जो आने वाले आगामी किसी भी प्रकार की प्रतियोगी परीक्षाओं में हेल्प करेगी।
लड़के और लड़कियों के रूप में
बड़ा होना
महिलाओं का काम और समानता:-
·
लड़का या लड़की होना किसी
की भी एक महत्त्वपूर्ण पहचान है उसकी अस्मिता है।
·
जिस समाज के बीच हम बड़े होते
हैं. यह हमें सिखाता है कि लड़के और लड़कियों का कैसा व्यवहार स्वीकार करने योग्य है।
·
अधिकांश समाज पुरुष व स्त्रियों
को अलग-अलग प्रकार से महत्त्व देते है। स्वियों जिन भूमिकाओं का निर्वाह करती है. उन्हें
पुरुषों द्वारा निर्वाह की जाने वाली भूमिकाओं और कार्य से कम महत्व दिया जाता है।
·
इस पाठ में हम यह भी देखेंगे
कि स्वी और पुरुष के बीच काम के क्षेत्र में असमानताएँ कैसे उभरती हैं।
1920 के दशक में सामोआ द्वीप में बच्चों का बड़ा होना:-
·
सामोआ द्वीप प्रशांत महासागर
के दक्षिण में स्थित छोटे-छोटे द्वीपों के समूह का ही एक भाग है।
·
सामोअन समाज के बच्चे 1920 के दशक में स्कूल नहीं जाते थे।
a.
ये बड़े बच्चों और वयस्कों
से बहुत-सी बातें सीखते थे, जैसे-छोटे बच्चों की देखभाल
या घर का काम कैसे करना, आदि।
b.
द्वीपों पर मछली पकड़ना बड़ा
महत्त्वपूर्ण कार्य था इसलिए किशोर बच्चे मछली पकड़ने के लिए सुदूर यात्राओं पर जाना
सीखते थे।
c.
लेकिन ये बातें वे अपने बचपन
के अलग-अलग समय पर सीखते थे।
d.
छोटे बच्चे जैसे ही चलना शुरू
कर देते थे उनकी माताएँ या बड़े लोग उनकी देखभाल करना बंद कर देते थे। यह जिम्मेदारी
बड़े बच्चों पर आ जाती थी, जो प्रायः स्वयं भी पाँच वर्ष
के आसपास की उम्र के होते थे।
e.
लड़के और लड़कियाँ दोनों अपने छोटे भाई-बहनों की
देखभाल करते थे,
f.
जब कोई लड़का लगभग नौ वर्ष
का हो जाता था, वह बड़े लड़कों के समूह में सम्मिलित हो
जाता था और बाहर के काम सीखता था. जैसे मछली पकड़ना और नारियल के - पेड़ लगाना लड़कियों
जब तक तेरह चौदह साल की नहीं हो जाती थीं, छोटे बच्चों की देखभाल
और बड़े लोगों के छोटे-मोटे कार्य करती रहती थी, लेकिन एक बार
जब वे तेरह चौदह साल की हो जाती थीं, ये अधिक स्वतंत्र होती थीं।
g.
लगभग चौदह वर्ष की उम्र के
बाद ये भी मछली पकड़ने जाती थीं, बागानों में काम करती
थीं और डलियाँ बुनना सीखती थीं।
h.
खाना पकाने का काम,
अलग से बनाए गए रसोई घरों में ही होता था जहाँ लड़कों को ही अधिकांश
काम करना होता था और लड़कियों उनकी मदद करती थीं।
1960 के दशक में मध्य प्रदेश में में बड़ा होना पुरुष के रूप:-
·
कक्षा 6 में आने के बाद लड़के
और लड़कियाँ अलग-अलग स्कूलों में जाते थे। लड़कियों के स्कूल,
लड़कों के स्कूल से बिलकुल अलग
ढंग से बनाए जाते थे।
a.
उनके स्कूल के बीच में एक
आँगन होता था, जहाँ वे बाहरी दुनिया से बिलकुल अलग रह
कर स्कूल की सुरक्षा में खेलती थीं।
b.
लड़कों के स्कूल में ऐसा कोई
आँगन नहीं होता था बल्कि उनके खेलने का मैदान बस एक बड़ा-सा खुला स्थान था जो स्कूल
से लगा हुआ था।
·
समाज,
लड़के और लड़कियों में स्पष्ट अंतर करता है। यह बहुत कम आयु से ही शुरू
हो जाता है।
i.
लड़कों को प्रायः खेलने के
लिए कारें दी जाती हैं और लड़कियों को गुड़ियाँ दोनों ही खिलौने,
खेलने में बड़े आनंददायक हो सकते हैं, फिर लड़कियों
को गुड़ियाँ और लड़कों को कारें ही क्यों दी जाती है?
ii.
खिलौने बच्चों को यह बताने
का माध्यम बन जाते हैं कि जब वे बड़े होकर स्त्री और पुरुष बनेंगे,
तो उनका भविष्य अलग-अलग होगा।
·
अधिकांश समाजों में,
जिनमें हमारा समाज भी सम्मिलित है. पुरुषों और स्त्रियों की भूमिकाओं
और उनके काम के महत्व को समान नहीं समझा जाता है।
iii.
पुरुषों और स्त्रियों की हैसियत
एक जैसी नहीं होती है।
घरेलू काम का मूल्य:-
·
सारी दुनिया में घर के काम
की मुख्य
जिम्मेदारी स्त्रियों की ही होती है जैसे- देखभाल संबंधी कार्य,
परिवार का ध्यान रखना, विशेषकर बच्चों,
बुजुगों और बीमारों का।
a.
घर के अंदर किए जाने वाले
कार्यों को महत्त्वपूर्ण नहीं समझा जाता मान लिया जाता है कि ये तो स्त्रियों के स्वाभाविक
कार्य हैं, इसीलिए उनके लिए पैसा देने की कोई जरूरत
नहीं है।
b.
समाज इन कार्यों को अधिक महत्त्व
नहीं देता।
घर पर कार्य करने वालों
का जीवन:-
·
बहुत से घरों में विशेषकर
शहरों और नगरों में लोगों को घरेलू काम के लिए लगा लिया जाता है। ये बहुत काम करते
हैं - झाड़ लगाना, सफाई करना, कपड़े और बर्तन धोना, खाना पकाना, छोटे बच्चों और बुजुगों की देखभाल करना, आदि।
a.
घर का काम करने वाली अधिकांशतः
स्त्रियाँ होती हैं। कभी-कभी इन कार्यों को करने के लिए छोटे लड़के या लड़कियों को
काम पर रख लिया जाता है। घरेलू काम का अधिक महत्त्व नहीं है,
इसीलिए इन्हें मजदूरी भी कम दी जाती है।
b.
घरेलू काम करने वालों का दिन
सुबह पाँच बजे से शुरू होकर देर रात बारह बजे तक भी चलता है। जी-तोड़ मेहनत करने के
बावजूद प्रायः उन्हें नौकरी पर रखने वाले उनसे सम्मानजनक व्यवहार नहीं करते हैं।
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